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हिमालय पर शोध करें Students:पर्यावरण विशेषज्ञ:10 फ़ीसदी ग्लेशियर पिघल रहे:Graphic Era Hill Uni में सेमिनार

Chetan Gurung
पर्यावरण की दुनिया के विशेषज्ञों ने छात्र-छात्राओं को हिमालय के संरक्षण एवं संवर्धनके लिए शोध कार्यों से जुड़ने के लिए बल दिया.ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी में हिमालयन दिवस के अवसर पर ’दशा और दिशा’ विषय पर कार्यक्रम में पद्मभूषण व पर्यावरणविद् डा. चण्डी प्रसाद भट्ट ने कहा कि युवा संवेदनशील हिमालय में मानवीय गतिविधियों से कई बड़े और अनिच्छित बदलाव आ रहे हैं।

उन्होंने कहा कि ये बदलाव आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर प्रभाव डाल रहे.पूरी दुनिया के मौसम में भी परिवर्तन कर रहे हैं। डा. भट्ट ने कहा कि जनसंख्या में विस्तार, अतिक्रमण, जलवायु परिवर्तन से हिमालयी क्षेत्रों में बाढ़, भूस्खलन, भूमि कटाव और जंगलों में आग की समस्याओं में वृद्धि हो रही है। छात्र-छात्राओं को हिमालयी क्षेत्रों के संरक्षण में योगदान देना जरूरी है.स्लाइड्स के जरिए हिमालयी क्षेत्रों में पहले और अब के बदलावों, विभिन्न ग्लेशियरों, झीलों, बुग्यालों और वास्तुकलाओं पर विस्तार से जानकारी साझा की।

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलोजी के वैज्ञानिक डा. PS नेगी ने कहा कि मनुष्य के जीवन को बनाए रखने के लिए जरूरी हर सेवा को हिमालय का ईको सिस्टम प्रदान करता है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालय का तापमान करीब 14 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है.इसी वजह से 10 प्रतिशत ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। 5 करोड़ वर्ष पहले बने हिमालय तीन पर्वत श्रंखलाओं से मिलकर बना है।

उन्होंने बताया कि इसमें ग्लेशियर व औषिधिय पौधों वाले ग्रेट हिमालयाज़, पेड़ और कृषि वाले लेसर हिमालयाज़ और नदी व चैड़े पत्तों वाले शिवालिक रेंज शामिल हैं। उन्होंने स्लाइड्स के जरिए ब्लैक कार्बन की विस्तार से जानकारी साझा की। पर्यावरणविद् मितेश्वर आनन्द ने कहा कि पर्यावरण के संरक्षण के लिए खुद से जिम्मेदारी लेना आवश्यक है। कार्यक्रम का संचालन प्रियांशी अग्रवाल और मनिका मनवाल ने किया।
कार्यक्रम को आयोजन डिपार्टमेण्ट ऑफ़ इन्वायरमेण्टल साइंसेज और डिपार्टमेण्ट ऑफ़ कम्प्यूटर साइंस एण्ड इंजीनियरिंग ने किया। कार्यक्रम में कुलपति डा. संजय जसोला, इन्वायरमेण्टल साइंसेज के HoD डा. कमल कांत जोशी भी मौजूद रहे।

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