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भ्रष्टाचार के खिलाफ CM पुष्कर की जंग लाएगी रंग!तंत्र में खौफ! अवाम को भ्रष्टाचारियों से मुक्ति की मुहिम! 150 से ज्यादा को जेलों में ठूँसा जा चुका

The Corner View

Chetan Gurung

CM पुष्कर सिंह धामी का Operation Corruption Free Devbhumi छाया हुआ है। भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम को जंग के अंदाज में छेड़ा हुआ है। IAS-IFS-PCS और पुलिस-तहसील के लोग जेलों में ठूँसे जा रहे हैं। लोगों में सरकार को ले के विश्वास का माहौल बनाया जा रहा। घूसख़ोरों में खौफ मचने लगा है कि न जाने कौन शख्स नोट देने के बहाने उसके लिए जेल की रोटियों का बंदोबस्त कर रहा है। ये उस युवा मुख्यमंत्री की बहुत बड़ी जीत है, जो एक बार BJP को अपनी मेहनत और सियासी कौशल के बूते सरकार में लाने का कमाल दिखा चुके हैं। अब और जांबाजी से सरकार को चला रहे। Police का दारोगा और फिर तहसील का पेशकार भी Vigilance के हाथों हाल ही में धर-दबोच लिया जाना लोगों को हैरान कर रहा है कि ऐसा दिन भी कभी आ सकता है। बड़े-बड़े नाम और रुतबे वाले जेल भी जा सकते हैं। ये कोई हंसी खेल नहीं। PSD की इस जंग सरीखी मुहिम की अहमियत को आसान ढंग से यूं समझें।

भ्रष्टाचार के खिलाफ CM पुष्कर सिंह धामी की अहम जंग अवाम में फिर सरकार को ले के विश्वास उत्पन्न कर रही!

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तब नित्यानन्द स्वामी की अन्तरिम सरकार थी। उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ ही था। स्वामी नए नवेले राज्य के पहले CM बनाए गए थे। BJP के वह तब के सबसे तगड़े Profile वाले चेहरों में थे। अन्य नाम थे भगत सिंह कोश्यारी,डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, केदार सिंह फोनिया और कुछ-कुछ हरबंस कपूर-डॉ हरक सिंह रावत। 25 साल पहले का ये वाकया है। उस वक्त भ्रष्टाचार ढंग से अंगड़ाई ले भी नहीं पाया था। इसके बावजूद कुछ छोटे-छोटे टेंडर और खरीद को ले के हल्लाबाजी होने लगी थी। देहरादून को अन्तरिम राजधानी बनाया गया था। हकीकत ये है कि देहरादून के अलावा उस वक्त ऐसा कोई शहर था भी नहीं, जिसको एक-डेढ़ महीने के भीतर कामचलाऊ राजधानी की सूरत दे सकते।

राजधानी गठन के प्रभारी 1971 Batch के IAS अफसर डॉ रघुनंदन सिंह टोलिया बनाए गए थे। जिनके दिलों में पहाड़ बसता था। उनका साथ दिया था उनके शागिर्द रहे 1981 Batch के IAS अफसर राकेश शर्मा ने। दोनों ने रात-दिन एक कर के राजधानी के तौर पर देहरादून को खड़ा किया। उस वक्त देहरादून की DM निवेदिता शुक्ला ने भी बेशक जोरदार काम किया था। उन्होंने डॉ RST-RS का राजधानी तैयार करने में जम के हाथ बंटाया था। मैंने तीनों को उस दौर में लगन-मेहनत से रात-दिन काम करते देखा था। RST-राकेश तो सिर्फ Coffee-समोसों में दिन गुजारने से भी नहीं हिचकते थे। उसी दौर में फर्नीचर-पर्दे खरीद में अनियमितता के आरोप सरकार पर उछले। फिर CM के दामाद को ले के आरोप हिलोरे मारने लगे कि खरीद और टेंडर में उनका दखल रहता है।

ये तब की बात है जब खरीद चंद लाख से आगे नहीं बढ़ पाती थी। फिर भी बवाल खूब होता था। हैरानी हो सकती है कि जब साल-2002 में राज्य का पहला विधानसभा चुनाव हुआ तो इस किस्म के टटपुंजिये घोटाले संबंधी आरोप भी छाए। कइयों ने माना कि ये आरोप भी BJP को आपसी भीषण गुटबाजी सरीखे ही भारी पड़े। उत्तराखंड राज्य के गठन का तोहफा देने के बावजूद BJP को सरकार किसी भी कोने में न दिख रही Congress को सौंपनी पड़ी। फिर हरीश रावत का सपना तोड़ते हुए ND तिवारी को Congress ने CM की कुर्सी अप्रत्याशित अंदाज में पेश कर दी। ये उस सरकार की प्रतिष्ठा के बाबत विरोधाभासी दौर था। एक तरफ NDT विकास पुरुष का दर्जा पा गए। BJP भी इसको मानने में नहीं हिचकती। भले Of The Record सही। उत्तराखंड का जो विकास उस दौर में हुआ वह फिर सीधे PSD काल में ही ही नजर आ रहा। इसके बावजूद इस कड़वी सच्चाई को को नजर अंदाज नहीं कर सकता कि तिवारी अपने दौर में Corruption को ढंग से थाम नहीं पाए।

उनके वक्त में दारोगाओं और पौड़ी में पटवारियों की भर्ती, होम्योपैथी Doctors की भर्ती में घोटाले हुए। SIDCUL में अरबों रूपये का घोटाला हुआ। कई IAS अफसर इसकी जांच के फंदे में आए। इन घोटालों ने तिवारी और Congress सरकार की एक किस्म से Band बाजा बजा के साल-2007 के Assembly Election में छुट्टी कर दी। इस सरकार में उसके मंत्री डॉ हरक सिंह पर जैनी Sex Scandal में घिरने और फिर दबाव में रुँधे गले से हिचकियाँ भरते हुए उनका विधानसभा सत्र के दौरान इस्तीफा भी देखने को मिला। इसने भी सरकार और Party की छवि को बिला शक क्षति पहुंचाई। Sidcul घोटाले को ले के BJP की BC खंडूड़ी सरकार ने जांच आयोग का गठन तक किया था।

मुझे इसलिए ये सब याद है कि इन सभी कालजयी किस्म के घोटालों-Scandal पर शुरू से ले के आखिर तक कलम मैंने ही चलाई थी। तब मैं Daily Amar Ujala में सरकार-System-Politics पर छुरी किस्म के शब्दों का इस्तेमाल करना पसंद करता था। इसके बाद निशंक CM बने। फिर उनको हटा के दुबारा BCK को CM बनाया गया। दोनों सरकारें भ्रष्टाचार के आरोपों से बच नहीं पाई। कुछ नौकरशाहों के कांड-कारस्तानी और उससे सरकार-BJP की Image को भारी नुकसान हुआ। साल-2012 में Assembly Election में एक सीट से पिछड़ जाने के चलते BJP सरकार फिर नहीं बना पाई। दरअसल, खंडूड़ी है जरूरी नारे के साथ दुबारा सत्ता के सरताज बन के आए BCK को पार्टी के सूबेदारों-मनसबदारों ने मिल के कोटद्वार विधानसभा की जंग में चारों खाने चित कर डाला। वह जीत जाते तो सरकार फिर कमल के फूल की बनती।

आज BJP में मौजूद विजय बहुगुणा तब Congress में थे। वह Congress सरकार के CM बने। पुष्कर सरकार के साफ-सुथरे छवि वाले मंत्री सौरभ बहुगुणा के पिता VB पर लेकिन एक और बेटे साकेत के दिशा-निर्देशों पर उल्टे-सीधे काम करने के जम के आरोप लगे। फिर केदारनाथ विभीषिका के दौरान राहत और पुनर्वास कार्यों में घोटालों ने सरकार को बहुत बदनाम कर डाला। हरीश रावत के खेमे ने मौका देखा और VB को कुर्सी से बेदखल करने में कामयाबी पा ली। तकरीबन एक दशक पहले CM बनने का हरीश का सपना तब पूरा हो गया। हरीश लेकिन लोकप्रिय होने के बावजूद भ्रष्टाचार की बाढ़ और आरोपों में ऐसे डूबे कि फिर आज तक किनारा तलाश रहे। रही-सही कसर BJP के सिद्धहस्त रणनीतिकारों ने उनकी जोरदार घेराबंदी कर उनको निबटा के पूरी कर दी।

साल-2017 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो हरीश के लिए कोई उम्मीद ही नहीं बची थी। वह 2 सीटों से लड़े और दोनों जगह खेत रहे। फिर BJP की त्रिवेन्द्र सिंह रावत की सरकार का दौर आया। खुद TSR की प्रतिष्ठा में दाग और आंच नहीं थीं लेकिन कुछ नौकरशाहों के खेल और मुख्यमंत्री के खासमखास समझे जाने वालों ने उनकी लुटिया डुबो दी। TSR के बाद दूसरे TSR (तीरथ सिंह रावत) सिर्फ 4 महीने मुख्यमंत्री रहे। तब Covid-19 का घोर आपातकाल चल रहा था। तीरथ पर कोई आरोप नहीं थे लेकिन सियासी अपरिपक्वता और प्रशासनिक अनुभवहीनता उनको भारी पड़ गया। उनको विधानसभा चुनाव से 8 महीने पहले हटा के आज के CM और अपनी अति सक्रियता के चलते Phantom समझे जाने वाले पुष्कर को ना-मुमकिन सी ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। यानि, साल-2022 का Assembly Election फतह करने का।

खुद BJP के लोग मानते थे कि आरोपों और कोरोना के चलते सरकार तथा पार्टी की छवि बुरी तरह गिर चुकी है। चुनाव जीतने के कोई आसार नहीं। उत्तराखंड का सियासी इतिहास भी BJP-Congress के बारी-बारी से सत्ता में आने का था। PSD ने सबसे पहले तो सबसे जरूरी और असंभव से Election विजय के Task को अंजाम दिया और BJP आज भी उनकी ही अगुवाई में सरकार चला रही है। अगला लक्ष्य उन्होंने मानो पहले से ठान रखा था। उन्होंने सियासी और प्रशासनिक कठोर फैसले लेने के साथ ही सबसे जबर्दस्त प्रहार उस भ्रष्टाचार पर किया, जो हर पूर्ववर्ती सरकार का काल साबित होता रहा। कोई सोच भी नहीं सकता था कि कभी सरकार के लाडले रहे लोग, IAS-IFS-PCS और सचिवालय तथा अन्य महकमों में अहम ओहदों पर बैठे अफसरों-कर्मचारियों के खिलाफ भी भ्रष्टाचार का बिगुल ऐसे बजेगा कि वे जेलों में खुद को कोस रहे होंगे।

हाल ही में पुलिस चौकी In-charge और फिर तहसील में पेशकार को सतर्कता महकमे ने ऐसे दबोचा कि वे कसमसा भी नहीं पाए। ये सब हैरान करता है कि कभी ये सब सोचा भी नहीं जा सकता था। आज अवाम में यकीन पैदा हो रहा कि शिकायत करेंगे तो भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में उनको भी शामिल किया आएगा। उनके हिस्से भी कामयाबी आएगी। आंकड़े गवाह हैं। 3 सालों में 150 से अधिक भ्रष्टाचारी जेलों में हैं। कुछ जमानत पर हो सकते हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर पुष्कर ने विकास और प्रशासनिक सुधार से जुड़े कई बड़े फैसले लिए हैं और कदम उठाए हैं लेकिन भ्रष्टाचारियों के खिलाफ उनकी एक सूत्रीय मुहिम उनकी पार्टी और खास तौर पर PM नरेंद्र मोदी तथा HM अमित शाह को भी सुकून देती है, जो ये कहने से रह-रह के नहीं चूकते कि, ` खाऊँगा-न खाने दूँगा’।

BJP शासित  किसी और राज्य के मुख्यमंत्री ने उनकी तरह दम-हिम्मत और हौसला भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं दिखाया है। मोदी-शाह के लिए एक के बाद एक हर किस्म के Election (लोकसभा-विधानसभा-Local Bodies) जीतने के साथ PSD भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम से भी दोनों के आज सबसे भरोसेमंद CM में शुमार किए जाते हैं। 4 साल होने आए हैं। एक बार किसी विवादित बयान से उनका पाला नहीं पड़ा है।

CM पुष्कर का कमाल है कि विपक्ष को उन्होंने अपने बर्ताव से मित्र के तमगे से सजा दिया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई और तेज होने के आसार है। साल-2027 के विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार का जिक्र हो सकता है लेकिन सत्तारूढ़ BJP के शस्त्र-अस्त्र के तौर पर। हमने इतने भ्रष्टाचारियों पर Surgical Strike की है। आगे भी करते रहेंगे। पुष्कर समझदार मुख्यमंत्री हैं। वह जानते हैं कि अवाम आज भ्रष्टाचार से बुरी तरह त्रस्त है। उसका यकीन जीतने के लिए उसको भ्रष्टाचार मुक्त माहौल और System मुहैया कराना होगा। यही पार्टी और सरकार का अगले चुनावों में बड़ा और धारदार हथियार साबित हो तो चौंकिएगा नहीं।

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