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मोदी-शाह इस बार PSD को और सशक्त करेंगे!Cabinet फेरबदल से साफ होगी तस्वीर:केंद्र-संघ के हर एजेंडे पर अमल में उत्तराखंड अव्वल

अंतर्राष्ट्रीय सियासी उथल-पुथल व पहलगाम आतंकवादी हमले से मंत्रिमंडल फेरबदल में देरी मुमकिन! नौकरशाही में फेरबदल कभी भी!

The Corner View

Chetan Gurung

काफी दिनों की बीमारी से उठने के बाद पूरी तरह स्वस्थ न होने के बावजूद आज लिखने को मजबूर हुआ हूँ तो इसलिए कि पहलगाम में धरती के जन्नत का दर्जा हासिल कश्मीर घूमने गए सैलानियों-नव विवाहिता जोड़ों के कायर आतंकवादियों के हाथों कत्लेआम से दिल दुखी और बेहद क्षुब्ध है। इसके लिए मुझे केंद्र और राज्य सरकार तथा सुरक्षा से जुड़े हर शख्स-सुरक्षा एजेंसियों-फौज-अर्द्ध सैनिक बलों-पुलिस को कोसने और दोष देने से कोई नहीं रोक सकता है। बताते हैं कि 15 मिनट के आसपास तक गोलीबारी होती रही। लोगों को गोलियों से छलनी किया जाता रहा। आज के उन्नत दूरसंचार-मोबाइल फोन युग में इतनी देर तक आतंकवादी गलीज हरकतों को कैसे अंजाम दे सकते हैं। फिर वे सुरक्षित निकल कैसे सकते हैं! कश्मीर सरीखे बेहद संवेदनशील राज्य में इतने अहम पर्यटक स्थल पर सेना-अर्द्ध सैनिक बल-पुलिस की अंगुली पर गिनने लायक भी मौजूदगी नहीं थी। ये बिला शक बेहद हैरानी का सबब है। पर्यटकों को कश्मीर जाने का संदेश दे के सरकार ने उनको मौत के मुंह में धकेल दिया। एक नव विवाहिता को अपने पति के निष्प्राण देह के करीब बैठ के बिलखते हुए की फोटो वाकई हृदय को झकझोर डालने वाली है। सभी मृतकों को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि और परिवारजनों के प्रति संवेदनाएँ। अब उत्तराखंड के सियासी हालात और मुद्दे पर आता हूँ। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को उनके पसंद का और मुफीद मंत्रिमंडल दिया जाना है। अंदरखाने की जानकारी है कि ये तकरीबन एक महीने पहले हो जाना था। ऐसा लगता है कि जिन दो शक्तिशाली चेहरों PM नरेंद्र मोदी और HM अमित शाह को इस पर अंतिम मुहर लगानी है, उनके पास अभी इस छोटे से राज्य के लिए उतना वक्त नहीं है, जितना चाहिए।

अवाम का दिल जीतने की कला खूब ढंग से जानते हैं CM पुष्कर सिंह धामी

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Chetan Gurung

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उनके पास देश और विदेश से जुड़े तमाम बड़े और अहम मसले हैं। उनको निबटाना उनके लिए अधिक बड़ी ज़िम्मेदारी है। बजाए हिमालयी राज्य में कौन मंत्री बनेगा, किसको हटाना होगा, उस पर सोच-विचार करने के। अब पहलगाम की दर्दनाक आतंकवादी घटना, मुमकिन है कि इस Episode को और लंबा खींच दे। हालांकि ये तय है कि चेहरे बदले जाएंगे। नए नाम जुड़ेंगे। इसके बाद पुष्कर अधिक ताकतवर होंगे और अतिरिक्त आत्म विश्वास में नजर आएंगे, ये भी उतना ही निश्चित है। मोदी-शाह के साथ ही संघ का हर वह एजेंडा, जिसको संगठन और सरकार के दोनों असल आका चाहते हैं, को अंजाम देने में अगर देश भर की BJP सरकार के किसी CM ने Lead बनाई है, तो वह निर्विवाद तौर पर PSD हैं। अपने सबसे भरोसेमंद और तेज तर्रार युवा CM का सशक्तिकरण दोनों दिग्गजों के लिए सियासी तौर पर भी बहुत मुफीद माना जाता है।

सियासी विश्लेषकों के मुताबिक मोदी-शाह को मुख्यमंत्रियों और अन्य अहम ओहदों पर बैठे लोगों में निष्ठा और विश्वसनीयता भर ही नहीं चाहिए। वे उनमें काबिलियत को भी गहराई से तलाशते हैं। PSD उनके हर मानकों पर खरा उतरते रहे हैं। खुद में भविष्य में BJP के कर्णधार बनने की झलक दिखाते रहते हैं। लोकसभा-विधानसभा चुनावों में जबर्दस्त नतीजे दिलाते हैं। उत्तराखंड में चुनाव जितवाने का फॉर्मूला-लोकप्रियता अर्जित करने का तरीका बाखूबी जानते हैं। राज्य भले पहाड़-मैदान मुद्दे पर उबलता दिखता है, लेकिन मुख्यमंत्री के Road Show और जनसभाएँ, पहाड़-मैदान कहीं भी हो, जबरदस्त ढंग से सफल रहती हैं। इसके लिए भले आलोचक उनके रणनीति को अधिक जिम्मेदार ठहराएँ-श्रेय दें। सिल्क्यारा संकट को केंद्र सरकार की मदद से बिना किसी नुक्सान के हल होने तक उनका सुरंग के मुहाने पर डट जाने को लोग जल्दी नहीं भूल पाएंगे। वह आज के तक उत्तराखंड के इतिहास के सबसे और बेहद सक्रिय मुख्यमंत्री साबित हुए हैं, जो संगठन और मोदी-शाह को नतीजे भी धड़ा धड़ देते हैं।

पुष्कर सियासी तौर पर हमेशा ही बहुत चतुर और समझदार साबित होते रहे हैं। मैंने दशकों से उनको बहुत करीब से देखा-समझा है। जब उन्होंने युवावस्था में कदम रखा ही था,तब से। इसलिए मुझे इस पर हैरानी नहीं होती। जब वह नित्यानन्द स्वामी सरकार में भगत सिंह कोश्यारी के PRO हुआ करते थे, तब वह किशोर ही दिखते थे लेकिन ऊर्जा मंत्री का दायित्व संभाल रहे कोश्यारी के लिए वह तभी से ताकत बन गए थे। BSK फिर 4 महीने के लिए CM बने तो वह उनके इकलौते OSD भी रहे। खूब ताकतवर। पुष्कर ने साल-2002 में BJP की विधानसभा चुनाव में Congress के हाथों अप्रत्याशित पिटाई फिर सत्ता से रुखसती के तुरंत बाद ही कोश्यारी का दामन छोड़ के खुद को सियासत की दुनिया में स्थापित करने की शुरुआत कर दी थी। ये उनकी राजनीतिक परिपक्वता दिखाता था।

पुष्कर बड़े नाम का पिछलग्गू बने रहने के बजाए भविष्य का बड़ा स्तम्भ बनने के लिए तभी से जुट गए थे। बेशक कोश्यारी के प्रति उनका समर्पण और निष्ठा भाव आज तक बना हुआ है। वह जल्द ही BJP युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष (2 बार बने) बने और खूब TRP बटोरी। फिर साल-2012 में MLA भी बन गए। फिर बनते रहे। मंत्री बनने की लालसा-इच्छा पूरी नहीं हुई। मोदी-शाह ने उनमें भविष्य देखा और सीधे सरकार की कमान तब सौंप दी, जब BJP जमीन पर चिपक गई थी। साल-2022 के विधानसभा चुनाव में खुद BJP को जीत का यकीन नहीं था। पुष्कर ने ये नामुमकिन सा लक्ष्य हासिल कर दिखाया था। नकल कानून-भू कानून-धर्मांतरण कानून-UCC के साथ वह तमाम अहम कानून ले आए। इनको मोदी-शाह से भी खूब शाबासी मिली। युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों का बोरा खोला हुआ है और हर उम्र के लोगों की पसंद खेल को बढ़ावा देने में मौजूदा CM बेमिसाल साबित हुए हैं।

38 वें National Games को ऐतिहासिक ढंग से देहरादून समेत राज्य के अलग-अलग शहरों में आयोजित करना और उसमें उत्तराखंड का लाजवाब-अद्वितीय प्रदर्शन करना बहुत बड़ी उपलब्धि है। उनके साथ एक ही पहलू ऐसा माना जाता है, जो उनके मुफीद नहीं है। वह है मंत्रिमंडल में मौजूद सदस्य। समझा जाता है कि PSD ने मंत्रिमंडल के गठन में सब कुछ आला कमान पर छोड़ दिया था कि वह जो भी मंत्री देंगे, उनसे ही काम चला लेंगे। मोदी-शाह शायद अब उनको अब उनकी पसंद के हिसाब से मंत्री देने के हक में हैं। एक बार महीनों पहले मुझे किसी बड़े नाम ने कहा था कि 4 मंत्रियों की छुट्टी तय है। नाम भी गिनाए गए थे। फिर न जाने क्या हुआ, फेरबदल टल गया। फिर बीच में एक बार और हल्ला हुआ कि बदलाव होगा। हुआ नहीं। इस बार फिर तेजी से हफ्तों तक शोर मचा। कुछ मंत्री बाहर जा सकते हैं और कुछ नए आ सकते हैं। महसूस किया जा सकता है कि फिर ये शोर हल्का पड़ा हुआ है। मंत्रियों में सिर्फ प्रेमचंद अग्रवाल की रुखसती हुई। वह भी पहाड़-मैदान ज्यादा हो जाने और उनके बहुत गहरे विवाद में घिर जाने के चलते। दावा तो ये है कि अभी भी कुछ मंत्रियों को जाना ही होगा। कुछ उनके जगह और कुछ खाली 5 में से कुछ सीटों पर मंत्री बन के भीतर आएंगे।

कुछ भी नहीं तो मेरा मोटा अनुमान कम से कम 5-6 नए मंत्रियों के बनने का है। ये सिर्फ अनुमान है। आखिर होगा क्या, ये तो ऊपर वाला भी नहीं जान सकता है। ये कोई छिपा तथ्य नहीं है कि BJP में असल फैसले सिर्फ मोदी-शाह लेते हैं। वहाँ तक की Direct पहुँच राज्यों में तो दूर, केंद्र में भी किसी की नजर नहीं आती। दोनों का इस कदर दबदबा है कि किसी की मजाल भी नहीं कि उनसे किसी मुद्दे पर कुछ उनकी मर्जी के बगैर पूछ भी लें। उनसे अपने मुद्दे पर चर्चा और मंथन करने और मार्गदर्शन के लिए वक्त लेना ही बहुत टेढ़ी खीर है। उत्तराखंड के CM पुष्कर जरूर मोदी-शाह से गाहे-बागाहे खूब वक्त ले लेते हैं। ऐसे में कौन मंत्री बाहर जा रहा और कौन अंदर आ रहा, उनके नाम धड़ल्ले से लेने वालों को देख के हैरानी होती है। सोच का जन्म लेना स्वाभाविक होता है कि क्या वे सीधे PM-HM से बात कर के आए हैं या फिर उनके आका से मोदी-शाह दिल की बात खुल के करते हैं। कुछ लोग बस इसी में अपना धंधा पानी कर रहे।

कुछ लोग मंत्रिमंडल फेरबदल में ठहराव को नौकरशाही में फेरबदल के रुकने से भी जोड़ के देख रहे। दोनों का दूर-दूर तक कोई रिश्ता कभी नहीं रहा है। सरकार में BJP रही हो या फिर Congress। CM चाहे कोई भी रहे हों। मंत्री से पूछ के सचिव नहीं दिया करते हैं। ऐसी परंपरा नहीं है। कोई खास वजह हो तो दीगर बात है। मसलन एक वाकया अच्छे से मुझे याद है। ND तिवारी (अब मरहूम) CM थे। Lt General तेजपाल सिंह रावत पर्यटन मंत्री। नरेश नन्दन प्रसाद (अब दिवंगत) पर्यटन और सूचना सचिव थे। Tourism Mart का हिस्सा होने TPS शायद Germany गए हुए थे। उनसे पूछे बिना या बताए-जिक्र किए बिना, उनके India-Uttarakhand लौटने से पहले उनकी गैर मौजूदगी में NNP ने Press Conference कर नई पर्यटन नीति घोषित कर दी। TPS को मालूम चला तो वह बहुत बिफरे। राजधानी लौटते ही उन्होंने पहला काम प्रसाद की पर्यटन से छुट्टी कराने का किया। वह सफल रहे और कुछ वक्त तब ACS M रामचंद्रन ने ये महकमा देखा।

TPS उनको भी नहीं चाहते थे। उनको सुलझे और मनमानी न करने वाले सचिव की तलाश थी। एक दिन आलोक कुमार जैन (1979 Batch IAS) से उनकी विधानसभा में अपने दफ्तर में बैठक हुई। दोनों पक्ष एक-दूसरे के साथ काम करने के लिए राजी हुए। उसी शाम जनरल की NDT से मुलाक़ात हुई। आलोक जैन के नाम की मांग रखी। जो पूरी हो गई। जनरल और जैन में खूब अच्छा तालमेल रहा। ये बात दीगर है कि प्रसाद खेल सचिव भी थे। एक बार परेड ग्राउंड के Multipurpose Hall के उद्घाटन के मौके पर लगाए गए पत्थर पर खेल मंत्री प्रीतम सिंह का नाम समारोह की अध्यक्षता की, के स्थान पर मौजूद रहे लिख दिया था। इस पर गहरा ऐतराज जताते हुए प्रीतम ने CM ND तिवारी के समारोह में पहुँचने के बावजूद जाने से इंकार कर दिया।

मैं उनके साथ ही था। और सुबह 11 बजे के करीब का वक्त था। CM को मंत्री को समारोह में आने के लिए मनाने के लिए प्रसाद को भेजना पड़ा था। प्रसाद को बदलने के लिए मंत्री ने NDT से कई बार गुजारिश की लेकिन कभी पूरी नहीं हुई। प्रसाद उस वक्त की Super CM समझी जाने वाली दिवंगत डॉ इन्दिरा हृदयेश को भी अतिरिक्त तवज्जो नहीं दिया करते थे। वह सूचना मंत्री थीं। वह भी किसी अन्य को सूचना सचिव लाना चाहती थीं। उनकी भी कोशिश कभी रंग नहीं लाई। CM इसका ख्याल भी रखते हैं कि मंत्रियों को सचिव उनके मन के मुफीद न दिया जाए। इसकी एक मिसाल पेश करता हूँ। एक बार मुख्य सचिव सुभाष कुमार थे। मुख्यमंत्री Congress राज में विजय बहुगुणा। साल शायद 2013 की शुरुआत या फिर 2012 के आखिर का था। नौकरशाही में फेरबदल होने थे। कुछ देर हो रही थी। मैंने यूं ही CS सुभाष से पूछा। क्या List बनाते समय ये कहा गया है कि मंत्री-सचिव में समन्वय अच्छा रहे, तबादला सूची में इसका ख्याल रखा जाए!

उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। नहीं इसका उल्टा बोला है CM साहब ने। उन्होंने कहा है कि ध्यान देना कहीं मंत्री और सचिव आपस में गोटी न बिठा लें। उनमें आपस में बने न, इसका ख्याल रखते हुए Transfer List बनाई जाए। बात भी सही है। मंत्री और सचिव आपस में मिल जाए तो फिर CM की वकत ही कुछ नहीं रह जाती है। बल्कि उनको तो महकमे में क्या पक रहा, इसका भी पता नहीं चल पाएगा। ऐसे में ये माना जाना कि आनंदबर्द्धन के नौकरशाही का Boss बनने के बाद शासन स्तर पर तबादला सिर्फ मंत्रिमंडल फेरबदल के चलते लटक रहा है,एकदम बेमानी है। मुख्यमंत्री इस पर कसरत कर रहे होंगे कि किस नौकरशाह को कहाँ फिट करना मुफीद रहेगा। बार-बार बदलना अच्छा संदेश नहीं देता है।

कुछ अफसरों को छोड़ दिया जाए जाए तो PSD की फितरत नौकरशाहों को जल्दी छेड़ने और बदल डालने की है भी नहीं। वह अफसरों को काबिलियत दिखाने का पूरा वक्त देना पसंद करते हैं। शासन स्तर के साथ ही कुछ जिलों में DM और शायद SSP भी बदले जा सकते हैं। ये संवेदनशील Posting होती हैं। तमाम पहलुओं को देख के हटाए और भेजे जाने होते हैं। खास तौर पर जब सवाल बड़े और प्रमुख जिलों से ताल्लुक रखते हों। आनंदबर्द्धन Chief Secretary बनने से पहले Finance-कार्मिक समेत तमाम अहम महकमे संभाले हुए थे। ये महकमे जिनको भी दिए जाएंगे, उनसे कुछ हटेंगे, उनके किसी और को जाएंगे, जिनको जाएंगे, फिर उनसे कुछ महकमे हटेंगे-जुड़ेंगे, लंबी कसरत इसमें होती है।

मुख्यमंत्री के कई करीबी और भरोसेमंद समझे जाने वाले सचिव एक किस्म से सचिव बनने के बाद खाली हैं या फिर नाम के महकमे ले के बैठे हैं। उनका सशक्तिकरण किया जा सकता है। इन दिनों सरकार के नवरत्नों में RK सुधांशु-विनय शंकर पांडे-R मीनाक्षी सुंदरम शीर्ष पर हैं। फेरबदल में वे प्रभावित होते हैं या नहीं, इस पर लोगों की नजर है। कुछ सचिवों-अफसरों के कारण सरकार को किरकिरी का सामना करना पड़ रहा है। इनमें से एक को तो भरी बैठक में CS रहने के दौरान डॉ सुखबीर सिंह संधु (आजकल केंद्रीय चुनाव आयुक्त) ने साफ लफ्जों में कह दिया था कि तुम और मैं एक ही सेवा (IAS Cadre) में हैं, इसके लिए मैं शर्मिंदा महसूस करता हूँ। ऐसे अफसरों के विकल्प भी तलाशने पड़ सकते हैं। या उनको कुछ हल्का करने की विवशता आ सकती है। माने ये कि नौकरशाही में फेरबदल की देरी का मंत्रिमंडल फेरबदल से दूर-दूर का नाता नहीं है। ये जरूर है कि जो मंत्री बनेंगे, उन पर अब की बार PSD का गहरा ठप्पा लगा हो सकता है।

 

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