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Germany में Higher Education कैसे लें,बताया Expert क्रिस्टीन फस्त्र ने:Graphic Era में Workshop में Experts ने पेश की अहम राय

Chetan Gurung

जर्मनी में Higher Education का ख्वाब पालने वाले Students को आज उसी देश की मार्टिन लूथर यूनिवर्सिटी की वाइस रेक्टर प्रो. (डा) क्रिस्टिन फस्र्ट ने वहाँ पढ़ाई के साथ ही Career को सुनहरा बनाने के लिए अवसरों को तैयार करने के गुर बताए। Graphic Era विवि के सिल्वर जुबली कन्वेंशन सेण्टर में भारतीय छात्रों के लिए जर्मनी में सहयोग और फेलोशिप पर Workshop में उन्होंने आज व्याख्यान दिया।

प्रो. फस्र्ट ने छात्र-छात्राओं को स्लाइड्स के जरिए विश्वविद्यालय की व्यवस्थाओं, इन्फ्रास्ट्रक्चर, पाठ्क्रमों व शिक्षा पद्वति के बारे में बताया। जर्मनी से PhD व Masters करने की तमन्ना रखने वाले छात्र-छात्राओं को स्कालरशिप, फेलोशिप व ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी।

इस मौके पर Australia में पढ़ने के इच्छुक छात्र-छात्राओं के लिए भी आस्ट्रेलिया में उच्च शिक्षा के अवसर पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें आस्ट्रेलिया की प्रख्यात विश्वविद्यालय के प्रतिनिधियों ने छात्र-छात्राओं को अपने-अपने विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों व शिक्षा व्यवस्था के बारे में जानकारी दी। कार्यशाला का आयोजन Office of International Affairs ने किया।

कार्यशाला में ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के कुलपति डा. नरपिन्दर सिंह, डीन इण्टरनेशनल अफेयर्स डा. DR गंगोडकर, वाइल्ड लाईफ इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डिया (देहरादून) के वैज्ञानिक प्रो. रमेशकृष्णा मूर्ति और छात्र-छात्राएं मौजूद रहे। कार्यशाला का संचालन डा. भारती शर्मा ने किया।

बद्रीफल से सुधरेगा हिमालयी क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था:Grpahic Era में Workshop के दौरान Experts की राय-सोच

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Experts ने आज Graphic Era Deemed University में हिमालय संरक्षण पर आयोजित Workshop में व्याख्यान के दौरान हिमालयी क्षेत्रों के पर्यावरण व आर्थिक सुधार के लिये सीबकथोर्न (बद्रीफल) उत्पादन को बढ़ावा देने को अहम करार दिया।

हिमालय के संरक्षण में सीबकथोर्न तकनीकों की भूमिका पर 2 दिन के राष्ट्रीय सम्मेलन में राज्य के फोरेस्ट फोर्स के प्रमुख डा. धनंजय मोहन ने कहा कि ज्यादातर औषधीय पेड़-पौधे हिमालयी क्षेत्रों में हैं। लेह, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखण्ड के सूदूर इलाकों में उगने वाला सीबकथोर्न हिमालयी क्षेत्रों की जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण संसाधन बन सकता है।

उन्होंने कहा कि यह झाड़ी सीमांत क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव की रोकथाम, भूमि सुधार के साथ आर्थिक व सामाजिक विकास में योगदान देगा। बद्रीफल के व्यावसायीकरण के लिए किसानों को जागरूक करने की आवश्यकता पर जोर दिया। ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के कुलपति डा. नरपिन्दर सिंह ने कहा कि बद्रीफल में पाए जाने वाले ओमेगा 3, 6, 9 फैटी एसिड व अन्य पोषक तत्वों का उपयोग त्वचा के स्वास्थ्य, गैस्ट्रिक अल्सर, कोलेस्ट्राल व मांसपेशियों की मरम्मत में किया जाता है।

सम्मेलन में सीबकथोर्न एसोसिएशन ऑफ इण्डिया की उपाध्यक्ष डा. मधु बाला ने बद्रीफल पर की गई अपनी शोध प्रस्तुत करते हुए कहा कि इसकी पत्तियों का उपयोग रेडिएशन एक्सपोजर के प्रभावों को कम करने में किया जा सकता है। सीबकथोर्न एसोसिएशन ऑफ इण्डिया के सचिव प्रो. विरेन्द्र सिंह ने देश-विदेश में सीबकथोर्न उत्पादन की नीतियों पर प्रकाश डाला।
सम्मेलन में डिफेंस इन्स्टीट्यूट ऑफ बायोएनर्जी रिसर्च हल्द्वानी के डा. रंजीत सिंह, दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रो. रेनू देसवाल, डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ फिजियोलाजी एण्ड एलाइड साइंसेज दिल्ली के डा. राजकुमार तुल्सवानी, बायोसैश बिजनेस के MD अर्जुन खन्ना, विवेकानन्दा इंस्टीट्यूट आफ प्रोफेशनल स्टडीज नई दिल्ली की डा. परनीता चैधरी व थापसू LLP मनाली की अम्शु ने सीबकथोर्न के उपयोगो पर विस्तार से जानकारी साझा की।

सम्मेलन में आज स्मारिका व जैव प्रौद्योगिकी विभाग की HoD डा. मनु पंत की किताब ’टिशू कल्चर टैकनिक्स एण्ड मेडिसिनल प्लांट्स’ व प्रो. विरेन्द्र सिंह की किताब ’सीबकथोर्न – मल्टीपर्पज हिमालय बेरीज’ का विमोचन किया गया। पहले दिन 7 शोध पत्र, 24 पोस्टर प्रस्तुत किए गए।सम्मेलन का आयोजन यूनिवर्सिटी के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने सीबकथोर्न एसोसिएशन ऑफ इण्डिया के सहयोग से किया।

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