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भाभा एटोमिक रिसर्च सेण्टर के स्वास्थ्य सुरक्षा और पर्यावरण समूह के निदेशक डा. दिनेश कुमार असवाल ने वायुमंडल में मौजूद कुदरती रेडिएशन को भी जीवन का अस्तित्व बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण करार दिया।
डा. दिनेश ने आज ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में रेडिएशन पर केन्द्रित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि कहा कि रेडिएशन प्रत्यक्ष रूप से कैन्सर जैसी गम्भीर बीमारियों के लिए जिम्मेदार नहीं होता। मानव निर्मित आपदा या फिर प्राकृतिक आपदाओं का हस्तक्षेप इसे हानिकारक बनाता है।
उन्होंने कहा कि न्यूक्लियर एनर्जी देश के ह्यूमन डेवलपमेण्ट इन्डैक्स को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है.रेडिएशन पर भ्रमित लोग न्यूक्लियर एनर्जी को अपनाने में संकोच करते हैं। शोधकर्ताओं को चाहिए कि न्यूक्लियर एनर्जी व रेडियेशन के प्रति समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य भी करें।
नेशनल नेडोन नेटवर्क सोसायटी (रेडनेट) के अध्यक्ष प्रो.RC रमोला ने कहा कि सोलर व टेरिस्ट्रियल सहित विभिन्न प्रकार के रेडिएशन वायुमंडल में मौजूद हैं। सामान्य तौर पर प्रतिदिन 0.31 रेम रेडिएशन मनुष्यों के लिए सुरक्षित है। रेडिएशन पर मौजूदा शोधकार्य ज्यादातर यूरोपीय देशों और अमेरिका पर आधारित हैं। इन देशों का वातावरण अन्य देशों की तुलना में अलग है।
प्रो. रमोला ने एशियाई देशों में रेडिएशन पर शोधकार्यों के लिए वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को संयुक्त रूप से योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया। कुलपति डा. नरपिन्दर सिंह ने कहा कि रेडिएशन का उपयोग एक्स-रे, थायराइड और बिजली उत्पादन में भी होता है। हिमालयी क्षेत्रों में नियमित रूप से इसकी मात्रा जांचने के लिए मोनिटरिंग सिस्टम का उपयोग किया जाना चाहिए।
पहले दिन आज स्मारिका का विमोचन किया गया. 12 से ज्यादा शोधपत्र पढ़े गए। शोधपत्र प्रस्तुत करने वालों में पैनोइआ यूनिवर्सिटी, हंगरी के प्रो. टिगोर कोवाक्स व डा. मिकलोर हेगेडूस, हिरोसाकी यूनिवर्सिटी जापान के डा. वाई. ओमोरी, भाभा एटोमिक रिसर्च सेण्टर मुम्बई की डा. रोसालिन मिश्रा, नेताजी सुभाष यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलोजी दिल्ली के डा. पी. बंगोत्रा और कैरियर ट्रांसफोरमेशन यूनिवर्सिटी, जालन्धर के डा. सतवीर सिंह शामिल थे।
संगोष्ठी का संचालन छवि कौशिक ने किया। आयोजन डिपार्टमेण्ट ऑफ़ फिजिक्स ने नेशनल रेडोन नेटवर्क सोसायटी के सहयोग से किया। संगोष्ठी में संयोजक डा. संजीव किमोठी, रेटनेट के समन्वयक प्रो. कुलदीप सिंह, डा. किरण शर्मा सहित विभिन्न शोधकर्ता, वैज्ञानिक और पीएचडी स्कॉलर मौजूद रहे।