मंत्रिमंडल विस्तार-फेरबदल पर जल्द कदम उठाएगा आलाकमान! सरकार-BJP-CM पुष्कर के लिए सिरदर्द-नमूने साबित हो रहे कुछ मंत्री-MLAs
The Corner View

Chetan Gurung
CM पुष्कर सिंह धामी की सिफ़ारिश और रिपोर्ट पर BJP आलाकमान उत्तराखंड में जल्द बड़े कदम उठा सकती है। ऐसा हो-हल्ला लंबे समय से चल रहा। इसमें मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल दोनों किस्म की संभावनाएं शामिल हैं। यानि, किसी मंत्री को भले न हटाया जाए लेकिन खाली कुर्सियों को भर दिया जाए। फेरबदल तो मुमकिन है ही। वक्त का तकाजा है कि जो करना है,बिना वक्त गँवाए कर डाला जाए। PM नरेंद्र मोदी और HM अमित शाह अगर उत्तराखंड में अपनी सरकार की Hat trick देखना चाहते हैं तो झंझट-सिरदर्द बन चुके और मंत्रिमंडल में शामिल कुछ चेहरों को सबसे पहले और विधानसभा का रजतोत्सव सत्र खत्म होते ही फारिग करना होगा। साल-2027 का विधानसभा चुनाव इतना आसान नहीं रहने वाला। कुछ मंत्रियों और विधायकों ने पार्टी के लिए विषबेल की भूमिका निभा दी है। उनकी जड़ों को काट के ही पार्टी और सरकार को पल्लवित किया जाना मुमकिन है। आखिर हर कठिन मोर्चे पर मुख्यमंत्री पुष्कर खुद को झोंके लेकिन कुछ मंत्री-विधायक सिर्फ मलाई खाते रहे,इससे BJP-मोदी-शाह का सियासी गुजारा नहीं चलेगा।

PM नरेंद्र मोदी और HM अमित शाह के सबसे भरोसेमंद CM के तौर पर स्थापित करने में सफल रहे पुष्कर सिंह धामी।
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ऐसा नहीं है कि हर एक की और हल पल की खबर रखने वाले मोदी-शाह को भनक नहीं है। उनके पास हर रिपोर्ट होगी, इसकी उम्मीद की जा सकती है। वह खुफिया महकमों और निजी ढंग से अहम सूचनाएँ जुटाने में माहिर समझे जाते हैं। उत्तराखंड में कौन-क्या गुल खिला रहा या खेल कर रहा, इसकी भी उनके पास पूरी खबर होगी। उनके Action का हथौड़ा कब और कितनी ज़ोर से चलेगा, इसका अंदाज अलबत्ता, लगाना मुश्किल है। दोनों के काम करने का अंदाज औरों से एकदम जुदा किस्म का है। उनकी बाईं आँख कहाँ और किस को देख रही ये उनकी दाईं आँख को भी नहीं मालूम हो सकता। एक कान क्या सुन रहा-दूसरी कान नहीं समझ पाएगी। एक हाथ क्या करेगा दूसरे हाथ के लिए समझ-सोच पाना ना-मुमकिन है। वे जल्दबाज़ी नहीं करते हैं लेकिन उनके फैसले अचानक सामने आते हैं और परमाणु विस्फोट से बड़े होते हैं।

Chetan Gurung
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अपने गृह राज्य गुजरात में वह सियासी प्रयोग धड़ल्ले से करते रहे हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री छोड़ के उन्होंने गुजरात के तमाम मंत्रियों से इस्तीफे ले के उत्तराखंड और UP के भी होश उड़ा डाले हैं। ये भी दोनों को ले के साफ होता है कि वे मुख्यमंत्रियों को बदलने में आम तौर पर यकीन नहीं रखते हैं। ऐसा होता तो कई राज्यों के CM खाली बैठ के हवा खा रहे होते। अपवाद स्वरूप ही वे सरकार के मुखिया को बदलते हैं। उत्तराखंड में कम से कम भी गुजरे 2 सालों से कई मर्तबा ये हवा या यूं कहें कि आँधी उठती रही है कि कुछ मंत्रियों की छुट्टी हो रही। इस बारे में खुद BJP के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट हमेशा खुल के बोलते रहे हैं। उन्होंने इससे कभी इनकार नहीं किया। मुख्यमंत्री पुष्कर बेशक उतना खुल के नहीं लेकिन इशारों में इसकी पुष्टि करते रहे हैं।
CM के तौर पर पुष्कर के सामने ये बहुत बड़ा और उत्तराखंड की सियासत के इतिहास को और मोटे हरफ़ों में लिखने का स्वर्णिम अवसर है कि वह BJP को लगातार तीसरी बार सत्ता में ले आएँ। उत्तराखंड की सियासत को समझना आसान नहीं और यहाँ कुछ भी ना-मुमकिन नहीं। विकास पुरुष के तौर पर जाने-समझे जाने वाले ND तिवारी की अगुवाई में Congress साल-2007 में चारों खाने चित हो गई थी। उससे पहले साल-2002 में BJP पहले ही विधानसभा चुनाव में पानी भी नहीं मांग पाई थी। पहाड़ के लोगों ने इतना भी लिहाज नहीं किया था कि वह उस BJP को हरा रही, जिसने उसकी अलग राज्य की दशकों पुरानी मांग पूरी की। फिर साल-2012 में एक ही सरकार में दो बार CM बन चुके BC खंडूड़ी को कोटद्वार में पराजित करा दिया। वह भी तब जब वे जानते थे कि उनका विधायक मुख्यमंत्री है और सरकार बनने पर तीसरी बार फिर गद्दीनशीं होंगे।
खटीमा में साल-2002 में मुख्यमंत्री पुष्कर को पार्टी के ही लोगों और मनसबदारों-कथित नवरत्नों ने पीठ में खंजर घोंप के हरवा डाला। मोदी-शाह ने फिर नौजवान और उत्तराखंड की सियासत में नया इतिहास लिखने वाले PSD को मुख्यमंत्री बनाए रख के उनके खिलाफ साजिश कर चुके जयचंदों-मीर जाफ़रों के तलवे गरम तवे पर रखवा के जलवा दिए। इसके बाद भी ये सियासत अंदरखाने खत्म हो गई हो, ऐसा नहीं है। जो कर सकते हैं और जितनी हैसियत है, उतनी सियासत और साजिश घर में छिपे विरोधी कर ही रहे। CM पुष्कर के लिए उनसे निबटना इतना कठिन नहीं हो रहा, जितना कुछ मंत्री और विधायकों से काम लेना या फिर जुबान-कार्यशैली को नियंत्रित करना।
आलम ये है कि मुख्यमंत्री को ऐसे मंत्रियों के संरक्षण और सरकार-पार्टी की साख के लिए भी रात-दिन एक करना पड़ रहा। कुछ मंत्रियों से अवाम ही नहीं पार्टी कार्यकर्ता तक बेहद नाखुश हैं। जिनके बयान अजीबो-गरीब और कॉमेडियन कपिल शर्मा किस्म के होते हैं। बतौर मंत्री जिनकी छवि-प्रतिष्ठा हर कोण से सरकार-BJP के खिलाफ जा रही है। कुछ की राजनीतिक ख्वाहिशें बहुत बड़ी हैं। वे भी खूब चालें चल रहे। राजनीति और BJP की अंदरूनी समझ अच्छे से रखने वालों का मानना है कि ऐसे चेहरों की छुट्टी कभी भी हो सकती है। पुष्कर ने खुद को हाल के सालों में खुद को बेहद मँझा हुआ साबित किया है। इसके साथ ही अपनी राजनीतिक परिपक्वता तथा सूझ-बूझ को लगातार परिष्कृत किया है।
रजतोत्सव विधानसभा सत्र में CM PSD ने BJP सरकार के मुख्यमंत्रियों की उपलब्धियों का जिक्र करने के साथ ही काँग्रेसी मुख्यमंत्री NDT की भी तारीफ की, वह उनके बड़े दिल और सोच को जाहिर करता है। ये कोई छिपा हुआ पहलू नहीं है कि पुष्कर सरकार को विपक्ष की तरफ से काफी हद तक समर्थन और सहयोग मिलता साफ दिखता है। ये गुण PSD ने NDT से सीखा होगा और इस गुण के चलते ही मंत्रियों को भी अधिकांश मौकों पर विपक्षी हमलों को उतनी तीव्रता से नहीं सहना पड़ता है, जितने की उम्मीद की जाती है। सरकार और BJP में कौन-क्या कर रहा है,PSD बाखूबी जानते हैं। कौन मंत्री किस तरह और किस सेवक के जरिये फैसले लेते हैं या फिर मंत्रालय में दखल पूरा सौंपे हुए हैं, पूरी रिपोर्ट लिए हुए हैं।
समझा जाता है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सही समय आते ही वह अपना दांव चलेंगे। पहले हो-हल्ला करना उनकी फितरत नहीं लगती है। वह कम बोलने या फिर जुबान खामोश रख के बड़ा दांव चलने में यकीन रखने वाले मुख्यमंत्री के तौर पर उभर के सामने आए हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत मोदी-शाह-संघ का उन पर फौलादी यकीन होना है। ऐसा भरोसा किसी भी भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री पर तीनों का शायद नहीं है। पुष्कर ने हर वह फैसले लिए और कदम उठाए हैं, जो तीनों को भाते हैं। उनके उठाए कुछ कदम ऐसे हैं, जो देश के साथ ही दुनिया में भी सुर्खियां बटोरने में सफल रहे हैं। इनमें UCC-नकल विरोधी-धर्मांतरण कानून बेहद चर्चित है। भू-कानून स्थानीय लोगों की भावनाओं से जुड़ा है। इसको भी लागू किया जा चुका है। बाकी फैसले भी बहुत बड़े हैं, लेकिन वे प्रशासनिक अधिक हैं।
मौजूदा सरकार के पास सवा साल काम करने के लिए है। जिन मंत्रियों को बदलना है, उनको बदल के अधिक बेहतर और संभवनाशील और विश्वासपात्र चेहरों को तत्काल मौका दिया जाना BJP के लिए मुफीद साबित हो सकता है। कुछ की मंत्रिमंडल से छुट्टी तो कुछ विधायकों को विधानसभा टिकट के बँटवारे में दूर रखना पार्टी की सेहत के लिए बहुत जरूरी है। सरकार और पार्टी के लिए वे कुछ अच्छा करें न करे, सिरदर्द न साबित हों, इसका ख्याल शायद आला कमान रखेगा। मंत्री और विधायकों के हास्यास्पद बयानों और विवादित जुबान-हरकतों से मुताल्लिक Videos लगातार Viral हो रहे हैं। ये वे चेहरे हैं, जो अपने बूते पंचायत या पार्षद का चुनाव भी नहीं जीत सकते हैं। खुद को बड़ा नाम-चेहरा-फन्ने खाँ समझते हैं।
हालात एकदम उल्टे हैं। उनका कामकाज भी मुख्यमंत्री को कई बार संभालने पड़ रहे। उनकी नाकामियों और जग-हँसाई भरे बयानों को ढंकना-दबाना पड़ रहा। इस किस्म के कुछ मंत्रियों तो कुछ विधायकों की मुमकिन है कि मोदी-शाह अगले चुनाव में छुट्टी कर डालें। भीतर की और भरोसेमंद स्रोतों की रिपोर्ट पर यकीन करें तो कभी भी कुछ भी सबसे पहले तो मंत्रियों को ले के खबर आ सकती है। तब पुष्कर को उनकी पसंद की Cabinet Team या फिर मंत्रिपरिषद मिल सकती है। जिसके साथ वह साल-2027 के विधानसभा महासमर में अश्वमेध यज्ञ शुरू कर सकते हैं।



