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सियासी शहकार का फनकार CM पुष्कर!! 3 साल पूरे करने का कारनामा:लंबी पारी की तैयारी!

The Corner View

Chetan Gurung

दो दशक पहले BJP युवा मोर्चे के उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर एक नौजवान बहुत तेजी से उत्तरांचल (तब राज्य का यही नाम था) सियासी पटल पर छा रहा था। आलम ये था कि उसने खुद की पहचान अहर्निश परिश्रम और संकल्प से इस कदर कायम कर ली थी कि पार्टी के तमाम कथित दिग्गज और सूरमा उससे रश्क करने लगे थे। जोश और उत्साह से लबरेज वह नौजवान पहली बार साल-2012 में खटीमा से विधायक बन के आया तो राज्य में सरकार Congress की बनी थी। विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री थे। एक दिन एक बेहद शक्तिशाली और सरकार के हर दुख हरता-हंता किस्म के नौकरशाह से हम दोनों एक साथ जा के सचिवालय में मिले। बातों-बातों में मैंने उनसे कहा,`ये भावी मुख्यमंत्री हैं’।

PM नरेंद्र मोदी (ऊपर) के साथ ही HM अमित शाह (नीचे) के सबसे विश्वासपात्रों में CM पुष्कर सिंह धामी को शुमार किया जाता है

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साल-2017 में BJP की त्रिवेन्द्र सरकार में वह युवा फिर से चुनाव जीतने और भरपूर संभावनाओं से परिपूर्ण होने के बावजूद राज्यमंत्री भी नहीं बन पाया। यूं ही 4 साल गुजर गए। फिर तीरथ सिंह रावत ने बेहद अप्रत्याशित अंदाज में त्रिवेन्द्र की जगह मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। इस नौजवान को अब की पूरी उम्मीद थी कि इस बार उसका नंबर Cabinet में आएगा। चर्चा ये शुरू हो गई थी कि Dy CM भी बन सकते हैं। गोपन महकमा, जो मंत्रियों की नियुक्ति और शपथ,महकमे के बंटवारे को देखता है, से फोन आया नहीं और न ही शपथ के लिए उनका नंबर नहीं आया। वह मायूस सा दिखा लेकिन हताशा चेहरे पर नहीं थी। संयोग ही है कि उस वक्त मैं और 2-3 कुछ और करीबी उनके साथ MLA Hostel (Race Course) में थे। मैंने यूं ही कहा,`छोड़ो मंत्री-वंत्री का चक्कर, सीधे CM बनोगे।‘ मैंने कुछ मिसालें भी दीं।‘

CM Pushkar Singh Dhami

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नजारा बदला। Covid-19 का काल चल रहा था और 4 महीने बाद ही ये काल तीरथ की कुर्सी के लिए आकस्मिक `काल’ बन गया। वह हटा दिए गए। बिना विधानसभा By-Election लड़े। तब फिर मुख्यमंत्री के लिए नामों की सुगबुगाहट चल पड़ी। जो नौजवान 4 महीने पहले राज्यमंत्री के लायक नहीं समझा गया था, सीधे सरकार का मुखिया बना दिया गया। पार्टी के वरिष्ठ तथा बेहद महत्वाकांक्षी तो बहुत परेशान हुए। एकदम अनुभवहीन और बेहद जूनियर CM के साथ कैसे काम कर सकते हैं किस्म का! ये तब हुआ जब BJP पायदान पर नजर आ रही थी। 15 सीटें भी विधानसभा चुनाव में जीतने के लाले पड़ने की बात खुद BJP के लोग कर रहे थे। चुनाव 8 महीने बाद ही थे। उस नौजवान के पास सरकार में रहने के अनुभव के नाम पर सिर्फ मंत्री रहने के दौरान भगत सिंह कोश्यारी के PRO और फिर उनके CM बनने पर उनका इकलौता लेकिन दमदार OSD का कार्यकाल था।

National Games का अभूतपूर्व सफल आयोजन मुख्यमंत्री के काँधों पर कामयाबी का चमकदार सितारा सजा गए

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जब PM नरेंद्र मोदी और HM अमित शाह ने उस नौजवान को मुख्यमंत्री बना के सभी को हैरान कर डाला तो पहली 2 भविष्यवाणी लोगों ने हाथों-हाथ कर दी थी। 1-BJP की Assembly Election में शिकस्त और अधिक तय है। उत्तराखंड की सियासी परिपाटी इसके हक में थी। 2-ये सरकार और बेकार चलेगी। उस युवा शख्स ने सभी की सोच को गलत साबित कर दिया। चुनाव हुए और उसने अपने बूते पहाड़ों की कन्दराओं-गलियों-मोहल्लों-शहरों को छान-छान के मोदी-शाह की छाया में BJP को फिर सरकार में लाने का अद्भुत और अभूतपूर्व कारनामा कर दिखाया। उसको पार्टी के कुछ लोगों और नौकरशाहों ने मिल के उनकी सीट पर बुरी तरह ऐसा घेरा कि उसका सियासी अंत ही हो जाए। उसको सब मालूम था। वह अपनी सीट सियासत से दूर-दूर का भी नाता कभी न रखने वाली गृहणी पत्नी (गीता) के भरोसे छोड़ अन्य सीटों पर ज़ोर लगाता रहा।

आखिर में सभी कयासों-पूर्वानुमानों-भविष्यवाणियों और राज्य की सियासी परिपाटी को चकनाचूर करते हुए उसने वह किया, जो सिर्फ चमत्कार और सोच से परे समझा जाता था। BJP लगातार दूसरी बार सरकार में आए। और अधिक सीटों के साथ। उसने दिखाया कि सरकार और पार्टी को एक साथ ले के कैसे चला जाता है। कैसे चुनाव जीते जाते हैं। कैसे लोगों का विश्वास आला कमान के साथ फतह किया जाता है। उसको फिर से मुख्यमंत्री बनने से भला कौन रोक लेता। मोदी-शाह-संघ ने विश्वासघातियों-जयचंदों-मीरा जाफ़रों-विभीषणों और कौरवों की साज़िशों-धोखे के चलते खटीमा में उसकी हार के बावजूद फिर सरकार का मुखिया लगातार दूसरी बार बनाने में Second की हिचक नहीं दिखाई। ये एक किस्म से उसके पार्टी में छिप के बैठे विरोधियों और साजिशकर्ताओं को High Command-मोदी-शाह का करारा तमाचा था। आज इस युवा और स्फूर्ति से भरपूर मुख्यमंत्री को देश भर में चुनाव जीतने की मशीन और इस मामले में पारस समझा जाता है।

लोकसभा, विधानसभा और Local Bodies Election में उसका Strike Rate पार्टी को 90 फीसदी सीटों पर सिर्फ विजय का तोहफा देता है। आंकड़े इसको साबित करते हैं। बात इतने में खत्म नहीं होती। दूसरी बार फिर मुख्यमंत्री बनते ही फिर ये शोर और फुसफुसाहट उभारी गई। बस, 6-8 महीने के लिए है। एक साल भी मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे। इस किस्म की Gossip और चर्चाओं का भी इस मुख्यमंत्री ने कत्लेआम कर डाला। UCC और नौकरियों के लिए आयोजित होने वाली लिखित इम्तिहानों में नकल को खत्म करने वाला सख्त कानून ला के, धर्मांतरण कानून भी लगे हाथों लागू कर वह आज मोदी-शाह-संघ के Agenda को तेजी से लागू कर तीनों के लाडले मुख्यमंत्री के तौर पर यह युवा शुमार किया जाता है। उत्तराखंड सरकार का एक लाख करोड़ रूपये का सरकार का सालाना बजट लाने वाले भी वह पहले मुख्यमंत्री बने।

उत्तराखंड को मिले 38वें National Games का ऐसा अभूतपूर्व आयोजन अपनी सीधी अगुवाई में इस नौजवान CM ने किया कि इसको बाहरी Media-Indian Olympic Association और अन्य Sports Federations के Top लोगों ने किसी भी Commonwealth Games या फिर Asian Games के समकक्ष माना। ये सब याद करने और लिखने की वजह है। दूसरी बार मुख्यमंत्री के ओहदे की शपथ ले के कामयाबी की गाथा या महागाथा, जो भी कहें, लिखने वाले पुष्कर सिंह धामी आज अपनी मौजूदा सरकार की तीसरी सालगिरह मना रहे हैं। आज के कठिन सियासी दौर और दुश्मन-विरोधियों के रहते एक किस्म से बतौर मुख्यमंत्री लगातार पौन 4 साल गुज़ारना हातिमताई के सवालों के जवाबों से कहीं अधिक कठिन हैं। एक फौजी के अनुभवहीन बेटे ने ये कर दिखाया।

चुनाव जिताने और फिर से सरकार में पार्टी को लाने की उपलब्धि ND तिवारी-BC खंडूड़ी और हरीश रावत मुख्यमंत्री रहने के दौरान हासिल नहीं कर सके। पुष्कर ने बहुत सहजता से सिर्फ मेहनत और Vision के बूते कर दिखाया। उनमें वक्त के साथ जोश और उत्साह अब और अधिक दिखता है। सुबह-सवेरे किसी पहाड़ी गांव में दोपहर किसी दूसरे शहर या राज्य में, शाम कहीं और राज्य में और देर रात किसी अन्य राज्य या शहर में व्यस्त दिखना उनकी USP हो चुकी है। ऐसा वह निरंतर करते हैं। कभी-कभार वाला सीन नहीं है। पुष्कर की सियासी कामयाबी के पीछे की वजह जानी जा सकती है। वह विरोधियों को नेस्तनाबूद करने के लिए कड़े और दृष्टिगोचर होने वाले हथकंडे अपनाने से दूर रहते हैं।

उन्होंने अपने बर्ताव से विपक्ष को भी एक किस्म से विवश किया हुआ है कि वह उनके लिए सीधा-निजी-कठोर वचन के इस्तेमाल से बचता है। उनको हरीश रावत और अपनी ही पार्टी के पूर्ववर्तियों के घरों में जा के उनका आशीर्वाद लेते और होली खेलते देखा जा सकता है। इसको सियासी समीक्षक उनके Smart Move में शुमार करते हैं। नौकरशाही को लगातार कसे रहते हैं। मंत्रियों के कामकाज में गैर जरूरी दखलअंदाजी से बचते हैं। बहुत जरूरत पड़ी तो ही प्रेमचंद अग्रवाल सरीखा कदम उठाते हैं। वह सब जानते हैं कि कौन मंत्री और विधायक या फिर संघटन के चेहरे बाहर से उनके साथ कैसा दिखते हैं और भीतर से वे क्या कर रहे या सोच रहे हैं।

वह बस, सही मौके का इंतजार करना पसंद करते हैं। फालतू उलझ के उनको सतर्क करना या फिर विवाद को जन्म या हवा देने से वह साफ बचना पसंद करते हैं। यही उनकी समझदारी है और लंबी पारी खेलने का एक प्रमुख मंत्र भी। हकीकत ये है कि वह नौकरशाही को भी अधिक छेड़ने से बचते हैं। जब तक कि पानी सिर से ऊपर न चला जाए। वह DMs-SSPs को भरपूर वक्त देते हैं कि अपनी काबिलियत दिखाएँ। ये नहीं कि 2-4 महीने में हटा दिए जाएँ। वह नौकरशाहों का आत्मविश्वास बढ़ाने में यकीन रखते हैं। इसके लिए उनको महकमा हो या फिर Field Posting, लंबी डोर देते हैं। वरिष्ठता से अधिक वह काबिलियत को तवज्जो देने को तरजीह देते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि ये पुष्कर का स्वर्ण काल चल रहा। वह हर बाधाओं और विघ्न को ध्वस्त करते आगे बढ़ रहे।

आज का दिन कोई सुझाव देने का नहीं लेकिन नौकरशाही का चुनाव किसी खास लक्ष्य के लिए करते वक्त बहुत सोच-समझ के न करने के चलते खंडूड़ी-विजय बहुगुणा-हरीश रावत-त्रिवेन्द्र सिंह रावत और सबसे पहले ND तिवारी ने बहुत बड़े झटके खाए थे। इस मोर्चे पर लगातार ध्यान देते रहना होगा। ये बेहद संवेदनशील मसला साबित होता रहा है। आखिर में, दुनिया में सुर्खियां बटोर रहे X GROK-3 से पूछा तो उसने जवाब दिया,`फिलहाल, पुष्कर के सामने कोई सियासी संकट नहीं आने वाला है,और भविष्य उज्जवल है’। मैं सिर्फ बधाई और शुभकामनाएँ दे सकता हूँ..

 

 

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