
Chetan Gurung
उत्तराखंड को अस्तित्व में आए अभी 25 साल नहीं हुआ हैं लेकिन ढाई दशक से भी कम की उम्र वाले इस किशोर राज्य ने साबित किया कि उस पर शासन करना काँटों की सेज पर सोना है.मिसालें तमाम हैं.साल-2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ.अंतरिम सरकार BJP की बनी.नित्यानंद स्वामी पहले CM..पहला आम चुनाव आया भी नहीं था और सत्ताच्युत कर दिए गए.उनकी जगह 4 महीने के लिए अंतरिम सरकार के नए CM बने भगत सिंह कोश्यारी.साल-2002 में राज्य का पहला विधानसभा चुनाव हुआ.उत्तराखंड की अवाम का भरोसा उतना शायद नहीं उठा था जितना BJP में मुख्यमंत्री बनने के लिए हुई जूतम पैजार ने BJP को पहले Assembly Election में ही बाहर का रास्ता दिखा दिया.
और सुनो आगे की.हरीश रावत चुनाव के दौरान ही दो बार मिले.एक बार PCC ऑफिस में.Press Conference कर रहे थे.उन्होंने 50 सीटें जीतने का दावा किया था.PC के बाद चाय-नाश्ते पर यूं ही अनौपचारिक तौर पर मैंने उनसे खड़े-खड़े पूछा.सच में 50 सीटें जीत रहें आप?उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा था,`दावा तो करेंगे लेकिन आप भी जानते हैं.BJP ने उत्तराखंड राज्य दिया है.पहला चुनाव तो उनके ही खाते में जाने के अवसर अधिक हैं’.जिस दिन चुनाव मतगणना हो रही थी,उस दिन फिर मिले तो पूछा.Congress पिछड़ रही है.तब वह वाकई नतीजों में पीछे चल रही थी.कुछ और पत्रकार भी थे.प्रदेश Congress अध्यक्ष हरीश ने माना कि वे चूक गए हैं.बीजेपी जीत रही.
Chetan Gurung
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हैरत अंगेज ढंग से BJP अचानक पिछड़ने लगी.कांग्रेस ने मोर्चा मार लिया.शायद ये भी एक वजह रही होगी कि हरीश को CM बनाने के बजाए साल-1995-96 तक उत्तराखंड राज्य का एक किस्म से विरोध करने वाले नारायणदत्त तिवारी को अचानक मुख्यमंत्री बना दिया गया.ONGC के KDMIPE हॉल में जिस वक्त NDT शपथ ले रहे थे, उनको हरीश समर्थक इस कदर बुरी-बुरी गालियों से नवाज रहे थे कि कान बंद हो जाते तो ज्यादा बेहतर होगा.हरीश समर्थकों (प्रीतम सिंह-महेंद्र सिंह माहरा-गोविन्द सिंह कुंजवाल-रणजीत रावत-प्रदीप टम्टा-मदन बिष्ट) की टोली ने NDT की नाक में सदा दम कर के रखा.
NDT चातुर्य और बुद्धिमता से भरे हुए थे.घनघोर विपरीत हालात के बावजूद उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया.विकास उनके दौर में जम के हुआ.हालात माकूल न होने के बावजूद.आज जो औद्योगिक विकास और उत्तराखंड का बढ़ा हुआ Plan Size दिखता है, उसके पीछे उनका ही राजनीतिक और सरकार चलाने में उनके समृद्ध-व्यापक अनुभव की अहम भूमिका रही.उनकी सबसे खासमखास मंत्री डॉ इंदिरा हृदयेश थीं.वह भी बेहद चतुर और सियासी तौर पर बेहद महत्वकांक्षी थीं.CM बनने और पंडितजी के उत्तराधिकारी के लिए खुद को सर्वश्रेष्ठ करार खुद ही दिया करती थीं.आज NDT-इंदिरा दोनों दुनिया में नहीं हैं.
ताज्जुब की ही बात है कि विकास की राह पर राज्य को ले आने के बावजूद NDT की उपलब्धियां किसी काम नहीं आईं.साल-2007 में विधानसभा चुनाव हुए तो खंडित जनादेश के साथ BJP सरकार में आई.निर्दलीयों राजेन्द्र भंडारी-यशपाल बेनाम के समर्थन से वह सरकार बनाने में सफल रही.राजू-बेनाम को अपने कब्जे में लेने के लिए होटल Great Value में जो नाटक आधी रात को हुआ, वह भी गजब का रहा था.भारी पुलिस के बूते दोनों को होटल के कमरे से सुरक्षित निकाल के BJP के कब्जे में पहुँचाया गया था.
मुख्यमंत्री बनने की होड़ में उस वक्त BJP के सभी सरदार साहेबान जी-जान एक किए हुए थे.सरकार बनने से पहले ही एक-दूसरे का सिर कलम करने की जंग BJP में शुरू हो गई थी.BC खंडूड़ी ने मोहरे जम के सजाए हुए थे.उनकी जगह खुद CM बनने की ख्वाहिश रखने वालों में कोश्यारी-KL फोनिया-डॉ रमेश पोखरियाल निशंक सबसे आए थे.कोश्यारी के बंगले (शहीद मेख गुरुंग मार्ग पर स्थित आज के मंत्री गणेश जोशी का सरकारी बंगला) पर रातों-रात लम्बी बैठक चली.खंडूड़ी को मुख्यमंत्री न बनने देने और खुद में से किसी के सरकार के मुखिया बनने पर सहमति बनी.अगले दिन पैसिफिक होटल में भाजपाइयों (खंडूड़ी-कोश्यारी समर्थकों में) बवाल हुआ.कल्याण सिंह (दिवंगत UP के CM) Observer थे.वह BCK को CM घोषित कर के भारी शोर-गुल के बीच निकल लिए.
खंडूड़ी CM तो बने लेकिन एक दिन भी सुकून से शायद ही रह पाए.ढाई साल होते-होते सत्ता पलट दी गई.कोश्यारी के समर्थन से डॉ निशंक CM बन गए.नाम लेकिंग तब कोश्यारी का चल रहा था.मैं उस दिन CM के प्रमुख सचिव (बाद में मुख्य सचिव बने) सुभाष कुमार के साथ सचिवालय में चतुर्थ तल पर था.दिल्ली में अगले मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा के लिए विधायकों में कुछ देर बाद मतदान होना था.तभी डॉ निशंक का फोन आया कि चेतन जी,मुझे अगला मुख्यमंत्री चुनाव लिया गया है.मैंने उनको बधाई दी.सुभाष जी की भी बात मैंने उनसे अपने फोन से करा दी.अगला नंबर तनाव में जीने का अब डॉ निशंक का था.उनकी सत्ता की गाड़ी जिस दुपहरी पलटी,उस दिन मैं सुबह उनसे मिला था.वह अन्त्योदय योजना कार्यक्रम में टिहरी रवाना हुए थे.
मैं दिन में 3 घंटे के करीब उस दुपहरी बिशन सिंह चुफाल के साथ उनके यमुना कॉलोनी बंगले में गप्पें मारता रहा.वहां से निकल के कुछ देर ही हुए थे.दिल्ली से मुझे कॉल आई कि CM गया और जनरल फिर आ गया.मैंने निशंक और चुफाल दोनों को फोन मिलाया.दोनों ने इससे इनकार किया.चुफाल तब BJP के प्रदेश अध्यक्ष थे.मैंने कहा कि पक्की खबर है.आप पता कर लो.थोड़ी देर में खुद निशंक ने फोन कर पुष्टि कर दी और तल्खी से कुछ लोगों के नाम ले के कहा कि ये बहुत गलत कर रहे हैं.खंडूड़ी फिर CM बने लेकिन साल-2012 में वह खंडूड़ी है जरूरी के नारे के बावजूद खुद कोटद्वार की जंग हार गए.BJP सत्ता से बाहर हो गई.खंडूड़ी और उनकी टीम को हालात का अहसास बहुत देर से हुआ.मैंने BCK के एक बेहद करीबी को सचिवालय में उस वक्त के शक्तिशाली नौकरशाह राकेश शर्मा के दफ्तर में हफ्ते भर पहले बताया था कि तुम जंग गंवा चुके हो.
फिर से कांग्रेस सरकार में लौटी लेकिन इस बार हरीश को फिर निराशा हाथ लगी.हेमवती नंदन बहुगुणा के सुपुत्र और पूर्व Justice विजय बहुगुणा ने उनको धकेल के CM की कुर्सी हासिल कर ली.हरीश समर्थकों ने उनको भी जीने न दिया.उसी तरह, जैसे NDT को.3 साल भी न हुए थे.VB सत्ता से बाहर और हरीश की धमाकेदार Entry बतौर मुख्यमंत्री आखिरकार हो गई.हरीश को अब VB-हरक सिंह रावत ने तगड़ी घेराबंदी में उलझा लिया.तब तक केंद्र सरकार में मोदी-शाह वाली BJP आ चुकी थी.उसने हरीश की सरकार को अगला विधानसभा चुनाव आने से पहले लुढ़का डाला.VB-हरक को BJP में ले लिया गया था.हरीश लड़-भिड़ के SC से अपनी सरकार वापिस पाने में सफल रहे.
साल-2017 में विधानसभा चुनाव हुए तो फिर BJP सत्ता में आ गई.त्रिवेंद्र सिंह रावत बतौर मुख्यमंत्री ठीक-ठाक सरकार चला रहे थे.उनको जल्द अहसास नहीं हुआ कि गीली लकड़ी जलते-जलते सूखते हुए अब आग पकड़ चुकी है.उनके विरोधी इतने सक्रिय और चतुर थे कि त्रिवेंद्र को भनक तक नहीं लगी कि वे उनको अपनी सरकार के 4 साल भी पूरे नहीं होने देंगे.सब कुछ ठीक चलता दिख रहा था.जब 4 साल पूरे होने का जश्न मनाने के लिए 4 ही दिन रह गए थे, उनको हटा दिया गया.सरल और कपट रहित किस्म के तीरथ सिंह रावत MP रहने के दौरान घनघोर Covid-19 के दौर में CM की कुर्सी पर बिठाए गए.उन पर फटी जींस-भारत में 200 साल तक अमेरिका के राज और कुछ अन्य बयान और उससे ज्यादा अंदरूनी राजनीति बेहद भारी पड़ गई.चुनाव से 8 महीने पहले उनको अचानक और बेहद आश्चर्यजनक ढंग से विदा कर दिया गया.
अब हुई आज के CM पुष्कर सिंह धामी की धमाकेदार Entry..किसी को कानोकान भनक तक नहीं थी कि क्या होने वाला है.कभी राज्यमंत्री तक न बने PSD को मोदी-शाह-संघ ने CM बना दिया.उस वक्त हालात BJP के लिए बेहद विकट थे.कोरोना से त्रस्त लोग सरकार से नाराज-नाखुश थे.दो मुख्यमंत्रियों (TSR-1 और 2) से कार्यकर्ता और अवाम हताश हो गए थे.उनका आत्मविश्वास रसातल पर चला गया था.खुद BJP के लोग मान बैठे थे कि उनको 20 सीटें भी अगले चुनाव में आती हैं तो संतोषजनक नतीजा माना जाएगा.उत्तराखंड में यूं ही एक बार BJP और एक बार Congress की सरकार का समीकरण चला आ रहा था.इस हिसाब से घोड़े खोल देने के बावजूद अगली बार कांग्रेस की सरकार बनने की थी.कोरोना का प्रकोप चल ही रहा था.
पुष्कर ने 8 महीने के बचे हुए कार्यकाल में रात-दिन और हर दिन इतनी दौड़-धूप की कि उनको उत्तराखंड के सबसे फुर्तीले-हर जगह और कभी भी कहीं भी-आम लोगों के बीच अचानक पहुंच जाने वाले Phantom किस्म का मुख्यमंत्री माना जाने लगा.ये उनकी मेहनत का कमाल था कि मोदी-शाह की छाया में वह BJP को बेहद प्रतिकूल हालात से निकाल के फिर सत्ता में ले आने में सफल रहे.उत्तराखंड की सियासत में नई पटकथा लिखी.पहली बार कोई पार्टी साल-2022 में अपनी सत्ता बचाने में सफल रही.BJP के ही कई सरदारों-सूबेदारों-मनसबदारों-जमींदारों को एक युवा और अनुभवहीन का CM बनना रास नहीं आ रहा था.उनको खटीमा सीट पर कांग्रेस के साथ मिली भगत कर के हरवा दिया गया.मोदी-शाह सियासत पर मजबूत नजर रखते हैं.
दोनों को समझते देर नहीं लगी.जो शख्स हताश-निराश पार्टी को भारी बहुमत से फिर जितवा दे, वह खुद कैसे और क्यों हारेगा!उन्होंने फैसला लिया और पुष्कर फिर CM बने.लगातार दो बार ऐसी उपलब्धि उनके सिर सजी.उन्होंने चम्पावत से By-Election लड़ा और इतिहास गवाह है कि जो अंतर उन्होंने जीत का हासिल कर दिखाया वह अजूबा सा था.BJP आला कमान और मोदी-शाह-संघ जो चाहता है, उसको पुष्कर पहले ही बखूबी समझ लिया करते हैं.उनका फरमान आया इच्छा सामने आने से पहले वह कदम उठा लेते हैं.UCC (सबके लिए एक क़ानून)-प्रतियोगी परीक्षा में नक़ल रोकने का कानून-लैंड जिहाद-धर्मान्तरण कानून और अधिक से अधिक रोजगार तथा सरकारी नौकरियाँ देने के उनके फैसले देश में मिसाल बन के उभरे हैं.मोदी सरकार और कुछ राज्यों ने भी उनके कई फैसलों को अंगीकार किया है.
लोकसभा चुनाव में पुष्कर छोटे से पहाड़ी राज्य के CM होने के बावजूद देश भर में BJP के प्रमुख सितारा प्रचारक के तौर पर चमके.उनको शायद पार्टी ने सबसे ज्यादा प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी.एक दिन में उन्होंने 11 कार्यक्रम अलग-अलग राज्यों में कर के आला कमान को भी हैरान किया.देश और UP में इस बार BJP को झटका लगा लेकिन उत्तराखंड में उसको 100 फ़ीसदी नतीजा मिला.पुष्कर की खासियत है कि वह नाहक विवादों से दूर रहते हैं.कौन मंत्री-विधायक क्या कर रहा है, सारी खबरों से बावस्ता रहते हैं.जब जरूरी हो तभी कदम उठाना पसंद करते हैं.मंत्रियों के कामकाज में नाहक दखल देने से दूर रहते हैं.हर कठिन चुनौती को पुष्कर ने जिया और कामयाब रहे.पूर्ववर्ती BJP-कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों की तरह हथियार डालना उनका शगल और फितरत नहीं.उन्होंने इसको जाहिर किया है.
उनको दोनों बार मंत्रिमंडल अपनी पसंद का नहीं मिला है.जो मिला,उसी से काम चला रहे हैं.हो सकता है कि इस बार उनको जन्मदिन पर मोदी-शाह पसंदीदा मंत्रिमंडल के लिए अपने हिसाब से फेरबदल के ली Free Hand देंगे.मेरा और पुष्कर का रिश्ता अलग किस्म का है.परिभाषित नहीं किया जा सकता है.बेशक मिलना कम हो पाता है.फोन पर बात हो जाया करती है.कभी कॉल तो कभी Message पर.वह व्यस्त भी बहुत हैं.इतना कह सकता हूँ कि उनकी सफलता मुझे ख़ुशी देती है और मेरी ख़ुशी उनको भाती है.आज उनका जन्मदिन है.PSD को ढेर सारी बधाइयां..सफल-प्रसन्न-स्वस्थ रहें..आमीन….