
The Corner View
Chetan Gurung
पुष्कर सिंह धामी को Smart और सियासी तौर पर बेहद परिपक्व CM समझा जाता है। मेहनतकश और हर वक्त कुछ न कुछ सोचते रहना और भावी रणनीति पर काम करने में फुर्ती दिखाना उनकी खासियत में शुमार है। वह कम बोलने लेकिन सरकारी के साथ ही निजी रिश्तों और सम्बन्धों के जरिये हालात की पूरी खबर रखते हैं। 3 साल पहले वह BJP को सरकार में फिर से यूं ही नहीं ले आए थे। विधानसभा चुनाव से 8 महीने पहले जब उनको PM नरेंद्र मोदी और HM अमित शाह ने मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी सौंपी थी, तो खुद BJP में ही 10 फीसदी लोग भी सरकार की वापसी को ले के आशान्वित नहीं थे। रात-दिन की मेहनत और कोशिशों से वह करामात कर BJP को फिर सत्ता दिलाने में कामयाब हुए थे। फिर लोकसभा चुनाव में मोदी-शाह के साए तले सभी 5 सीट जीत लाए। उन्होंने के के बाद एक तमाम कामयाबी पाई और उनकी निगाह अब सीधे साल-2027 विधानसभा चुनाव पर टिकती नजर आ रही। इसकी शुरुआत वह एक के बाद एक बड़े और अहम फैसलों पर अमल से कर चुके थे। ताजा कदम है, पार्टी के वफ़ादारों को सरकार में दायित्व सौंपना और उनको विधानसभा वार अभी से Assembly चुनाव की ज़िम्मेदारी भी देना।
पुष्कर ने दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद जो बड़े-बड़े फैसले लिए हैं, उनकी मिसाल उत्तराखंड छोड़ UP में भी नहीं मिलती है। उनके समकक्ष योगी आदित्यनाथ से तुलना की जाए तो प्रशासनिक और संघ-संगठन के एजेंडे पर अमल की दौड़ में वह बहुत आगे दिखाई देते हैं। धर्मांतरण-UCC-नकल विरोधी-भू कानून और भ्रष्टाचार-अतिक्रमण के खिलाफ कठोर प्रहार से वह देश भर में सुर्खियां बटोर रहे हैं। उनके UCC-नकल कानून को केंद्र भी अमल में ला रही। कई अन्य राज्यों को भी ये भा गए हैं। चुनावों के मामले में PSD पारस पत्थर साबित होते रहे हैं। जिन भी लोकसभा-विधानसभा चुनावों में वह प्रचार के लिए गए, वहाँ BJP के हक में शानदार नतीजे आए। उत्तराखंड में वह Local Bodies-Assembly By-Elections जीत दिखाने में बहुत आगे रहे।
पुष्कर के हक में जो अहम बात जाती है, वह उनका पहाड़ और मैदान में समान रूप से स्वीकार्य इकलौता चेहरा होना है। BJP के पास इस मामले में कोई और विकल्प नहीं दिखाई देता है। दौड़ धूप से वह न घबराते हैं न बचने की कोशिश करते हैं। उनको सुबह किसी शहर तो दोपहर कहीं और शाम कहीं देखा जा सकता है। रात फिर किसी अन्य शहर में समारोहों-बैठकों-कार्यक्रमों में निकलती है। इसमें शक नहीं कि हरीश रावत और रमेश पोखरियाल निशंक तथा 4 महीने के अन्तरिम CM रहने के दौरान भगत सिंह कोश्यारी भी बहुत सक्रिय दिखाई देते थे लेकिन PSD सभी को मीलों पीछे छोड़ चुके हैं। सिल्क्यारा Tunnel हादसा सरकार के लिए वाकई बहुत विकट था। मुख्यमंत्री आखिरी फंसे श्रमिक-कर्मचारी के बाहर सुरक्षित तक खुद ही डेरा डाल के बैठ गए थे। कुछ दिन पहले जब वह फिर सिल्कयारा थे तो पहाड़ों में लोगों की उत्सुक भीड़ देखने लायक थी।
पुष्कर के पास मंत्रिमंडल मनमाफिक नहीं है, ऐसा समझा जाता है लेकिन मुमकिन है कि इस बार मंत्रिमंडल फेरबदल उनके हक में रहेगा। वह जिनको चाहते हैं, उसको मंत्री बना सकते हैं। जिनसे उनका आंकड़ा सुखद किस्म का नहीं है, या फिर जिन मंत्रियों के प्रदर्शन से वह संतुष्ट नहीं हैं, उनको वह Exit Door दिखा सकते हैं। अंदरखाने की खबर ये है कि मंत्रिमंडल फेरबदल और विस्तार में देरी भले हो रही लेकिन इसने अंजाम तक पहुँचना ही है। मुख्यमंत्री की एक खूबी ये भी है कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश में किसी को विरोधी बनाने से आम तौर पर बचते हैं। पार्टी के वरिष्ठों और बड़े नामों के साथ उनकी Chemistry की तारीफ की जाती है। भले सियासी लड़ाई अंदरखाने चलती रहे।
PSD ने दायित्वधारियों की नियुक्ति से ये संदेश दे दिया कि वह अब 2 साल से भी कम समय बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस चुके हैं। इसके लिए अपने मरजीवड़े किस्म के लोगों को दायित्व सौंप के खुद को और BJP-सरकार को सशक्त कर रहे। इतनी अहम और इतनी अधिक तादाद में दायित्वधारियों की नियुक्तियों ने उत्तराखंड में सियासी अस्थिरता से जुड़े पसोपेश को एक किस्म से मिटा डाला। इसमें दो राय नहीं कि Outgoing CM को कोई भी आला कमान कभी भी इतनी ताकत और अधिकार नहीं देता है कि वह दायित्वधारियों का मनोनयन अपने हिसाब से कर सके। पुष्कर ने हाल ही में मुख्य सचिव के तौर पर आनंदबर्द्धन की ताजपोशी की।
CM ने दायित्वधारियों को सिर्फ ज़िम्मेदारी ही नहीं दी है बल्कि उनको ये अहसास भी कराने की कोशिश की है कि सरकार चलाने में उनकी भूमिका भी अहम रहेगी। सरकार की और खास तौर पर उनके अपने मंत्रालय और विभाग से जुड़ी हर बैठक में वे भी रहेंगे। ये साफ कर दिया है। पूर्व सरकारों में दायित्वधारियों को मंत्री का दर्जा होने के बावजूद सिर्फ सुख-सुविधा भोगने तक सीमित रखा जाता था। उनको सरकार के System से दूर रखा जाता था। महकमे के मंत्री और सचिव भी उनकी मौजूदगी या सक्रियता को पसंद नहीं करते थे। PSD के दौर में वे खुद को अहमतरीन मान रहे हैं। उनसे पुष्कर विधानसभा चुनाव से पहले ही जम के काम लेने में जुट गए हैं।
PSD अच्छी तरह जानते हैं कि अगला विधानसभा चुनाव उनकी सियासी जिंदगी में बहुत अहम मोड़ साबित होगा। BJP फिर सत्ता में वापसी करती है तो पार्टी में उनका दर्जा बहुत आला होगा। मोदी-शाह-संघ उनको BJP के भावी नेतृत्वकर्ता पंक्ति के प्रमुख सदस्य के तौर पर देखना शुरू कर सकता है। दायित्वधारियों की नियुक्तियों के जरिये मुख्यमंत्री ने ये भी संदेश देने की कोशिश की है कि फिलहाल वही ही हैं। विकल्प की बात करना बेमानी है। उनकी छवि कम लेकिन दुरुस्त बोलने की है। बड़बोलापन से दूर रहते हैं। राजनीतिक अस्थिरता की हवा फैलाने वाले भी अब मन मसोस के बैठ गए हैं। ऐसे चुनिन्दा लोग Congress के एक बड़े चेहरे को लुभा के कमल के फूल पर बिठाने और अपना दांव खेलने की कोशिश में हैं।
खास खबर ये है कि उस काँग्रेस नेता ने दबाव के बावजूद साफ इन्कार कर दिया है। उस नेता को ला के मुख्यमंत्री को दबाव में लाने की कोशिश बताई जा रही। ये पासा उल्टा पड़ता दिख रहा। काँग्रेस भी अपने नामी और साफ छवि वाले चेहरे को हाथ से जाने न देने के लिए बेहद सतर्क हो गई है। ये भी PSD के पाले में ही जा रहा है।