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Current Issue!!नेपाल की सियासी तबाही के सबक!Corruption-Nepo kids-ओली-देऊबा-प्रचंड जिम्मेदार! Gen-Z-युवाओं ने लिखा अहिंसक क्रान्ति का इतिहास:राजनीतिक अस्थिरता से बर्बाद हुआ पशुपतिनाथ का देश

The Corner View

Chetan Gurung

विश्व विख्यात हिंदुओं के धार्मिक आस्थाओं के प्रमुख केंद्र पशुपतिनाथ मंदिर की धरती और हमारे पड़ोसी मुलुक नेपाल में सियासी तबाही से उपजे-निकले संदेश को पहचानना होगा। सरकार अगर अवाम-नई पीढ़ी को समझने में चूक करे और उसकी भावनाओं का सम्मान न करें तो `नेपाल’ हो जाता है। भ्रष्टाचार नई पीढ़ी को बर्दाश्त नहीं। मंत्रियों-राजनेताओं के बच्चों की राजसी जीवन शैली उसको भड़काती है। अपने हक और संवैधानिक अधिकारों के लिए जान देने से भी वह नहीं हिचकती। PM रहते खड़क प्रसाद ओली के अनियंत्रित और अवाम-युवाओं के लिए असम्मानजनक बोली बचन ने किशोर पीढ़ी को काठमांडू की सड़कों पर उतरने को बाध्य कर दिया। पुलिस गोलीबारी में स्कूल-कॉलेज में पढ़ रहे किशोर-युवाओं की जघन्य हत्या ने आग में घी का काम किया। इसने पूरे नेपाल को उद्वेलित कर डाला। सब एक मंच पर सत्ता के खिलाफ आ खड़े हुए। इसके बाद इतिहास बना। 24 घंटे खत्म होने से पहले ही मंत्रियों को इस्तीफे देने के लिए मजबूर कर दिया गया। हालात भाँप दूसरे दिन प्रधानमंत्री का भी इस्तीफा आ गया। इस सबके बीच सेना की शानदार भूमिका की तारीफ की जानी चाहिए। उसने बिना सरकार के देश को न सिर्फ अच्छे से संभालना शुरू कर दिया बल्कि अवाम की इज्जत भी अर्जित की। पूर्व PMs-Ministers की जिंदगी बचाई।उनको सुरक्षित निकाला। वह चाहती तो खुद ही सरकार बन सकती थी।

Chetan Gurung

हमारे इस पड़ोसी मुल्क को गरीबी और पिछड़ेपन के लिए जाना जाता है। ये उसकी असल पहचान नहीं होनी चाहिए। वहाँ जन साधारण की राजनीतिक जागरूकता कमाल की है। जो आम तौर पर सियासी नेताओं के खिलाफ रोष और नाराजगी के तौर पर घर-बाहर-चौक-दुकानों और Seminars में खुल के झलकती है। जब उन्होंने राजतंत्र के खिलाफ आवाज बुलंद की तो वहाँ साल-2008 में लोकतन्त्र ने जन्म लिया। साल-1951 में उस वक्त के तानाशाही राणा शासन के खिलाफ पूरा देश जनक्रांति में शामिल हो उठा था। भारत सरकार की मदद से श्री 5 सरकार राज सिंहासन में वास्तव में बैठी। उससे पहले राजा सिर्फ सांकेतिक प्रमुख होते थे। इस बार भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से त्रस्त किशोरों और युवाओं को पूरे अवाम ने चंद घंटों के भीतर साथ दिया और तख़्ता पलट हो गया।

3 Ex PMs:Sher Bahadur Deuba-KP Oli-Pushp Kamal Dahal Prachand

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ये सत्ता परिवर्तन इतिहास के पन्नों में दर्ज होगा। फ्रांस की क्रांति की तरह। हालांकि ये भी लिखा जाएगा कि आंदोलनकारियों ने एक भी हत्या नहीं की। पूर्व PM झलनाथ खनाल की पत्नी की घर के भीतर ही जल के मौत होने की इकलौती खबर उनकी तरफ से हिंसा की है। ये भी इसलिए हुआ कि वह बाहर निकल नहीं पाईं। आंदोलनकारियों ने अलबत्ता, खूब पीट-पाट करने और दौड़ा-दौड़ा के मारने-पत्थरों से मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सबसे ज्यादा बार PM रहे शेर बहादुर देऊबा और उनकी पर राष्ट्र मंत्री (विदेश मंत्री) आरजू राणा,वित्त मंत्री और अन्य मंत्रियों-नेताओं को लात-घूंसों से जम के पीटा गया। पुलिस के अफसरों-जवानों को खलनायक की तरह देखा गया। उनको हथियार फेंक-वर्दी उतार के भागने और आत्म समर्पण के लिए मजबूर किया। ये ताज्जुब से कम नहीं है कि Gen Z ने बिना हथियारों के खाली हाथों ये सब किया। उनकी रायफलें आंदोलनकारी किशोरों ने ये कहते हुए सेना के सुपुर्द की कि ये हथियार रखना उनके लिए ठीक नहीं है।

इसको नेपाल के राजनेताओं की बची हुई शर्म कहा जाए या फिर सब कुछ हाथ से निकल चुके होने का एहसास कि अवाम के Gen-Z के साथ जुड़ने से पहले ही उन्होंने झटपट गद्दी छोड़ दी। इसने दुतरफा हिंसा नहीं पनपने दी। काठमांडू में सिंह दरबार-संसद-Supreme Court को धू-धू कर जलाने के बाद देश के सबसे अमीर और वाई-वाई चाउ-चाउ के स्वामी बिनोद चौधरी के आलीशान बंगले-Hilton Hotel तथा बहुत बड़े कारोबारी मीन बहादुर गुरुंग के भाट-भटेनी Chain के Super Stores को आग के हवाले करने और लूट-पाट होने से Gen-Z आंदोलन-प्रतिष्ठा पर अंगुली उठने लगी तो नया चेहरा भी आंदोलनकारियों का दिखने लगा। PM-मंत्रियों के इस्तीफ़ों के बाद हो रही लूट पाट को रोकने और सड़कों को साफ करने Gen-Z ही सामने आ रहे। उन्होंने लुटेरों को रोक के उनकी मार-पिटाई की। उनको नसीहतें दीं। महिलाओं ने भी आगे आ के ऐसा करने वालों की लानत-मलम्मत की।

ऐसे बड़े और व्यापक आंदोलनों में असामाजिक और स्वार्थी तत्वों का घुस आना ना-मुमकिन नहीं होता है। ऐसा ही नेपाल में भी हुआ। अच्छा हुआ कि उनको रोकने खुद Gen-Z उठ खड़ा हुआ। ये आंदोलन शुरू क्यों हुआ? इसको बारीकी से समझना होगा। कहने को ये Social Media Apps पर रोक के खिलाफ Gen-Z के भड़के गुस्से के चलते उपजा। ये पूरी तरह सत्य नहीं है। ओली सरकार के खिलाफ लोगों में नाराजगी और असंतोष लगातार बढ़ रहा था। भ्रष्टाचार से लोग तंग आ चुके थे। X (Twitter)-Instagram-FB-Whats app पर मंत्रियों-राजनेताओं के बच्चों की एशो-आराम भरी Life Style को देख के वे और भड़कते गए।

वे Social Media पर सरकार के खिलाफ अपनी भड़ास जम के निकालने लगे थे। इससे नाराज हो के ओली ने Social Media को परोक्ष तौर पर प्रतिबंधित करने का फैसला किया। उनका असल मकसद अपनी सरकार के भ्रष्टाचार की खबरों को दबाना और लोगों को अपने खिलाफ बोलने से रोकना था। उन्होंने सभी Social Media कंपनियों को नेपाल में दर्ता (Registration) कराने और Local Office न खोलने पर उनका संचालन बंद करने का नोटिस दिया। ये सब करने के लिए सिर्फ 1 हफ्ते का वक्फ़ा दिया। जाहिर है कि ये संभव नहीं था। बाहरी कंपनियों के लिए नेपाल में दफ्तर तलाशना,उसको तैयार करना, Staff की भर्ती करना इतनी कम अवधि में संभव नहीं था। फिर जिस काम के लिए उनका एक पैसा नेपाल में खर्च नहीं हो रहा हो, उस पर साल में करोड़ों खर्च करना उनको भला क्यों रास आता! उनको बंद होना ही था। कुछ दिनों के लिए वे बंद भी हुए। जब तक दबाव में ओली सरकार को उनको फिर खोलने का आदेश करने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ा।

आज की तारीख में कई लोग और खास तौर पर किशोर-युवा Social Media पर बहुत सक्रिय हैं। उसके जरिये तमाम लोग जीविकोपार्जन कर रहे हैं। पूरी दुनिया में फैले अपने नातेदारों-जानने वालों से संपर्क में रहते हैं। नेपाल के लोग बहुत बड़ी तादाद में रोजगार के सिलसिले में दुनिया भर में फैले हुए हैं। Messenger-Whats App-Instagram और अन्य App के जरिये वे उनसे आसानी से संपर्क करते रहते हैं। ओली सरकार ने Apps पर रोक के जरिये उनको अपने खिलाफ जुबान बंद करने के लिए ही मजबूर करने की कोशिश नहीं की बल्कि एक किस्म से उनका रोजगार छीन लिया। अपनों से संपर्क करने से भी रोक दिया था।

Social Media की ताकत इससे जाहिर होती है। ये कम हैरानगी का मसला नहीं है कि एक तरफ उसको प्रतिबंधित करने के खिलाफ अवाम सड़कों पर उतरी तो दूसरी तरफ वहाँ के सबसे बड़े Media House और सबसे बड़े अखबार (दैनिक कान्तिपुर-Daily Kathmandu Post) का प्रकाशन तथा TV Channels का प्रसारण करने वाले समूह की बहुमंज़िली इमारत को खुद उन्होंने ही भस्म कर दिया। इस समूह के मालिक की बेटी और पूर्व Miss Nepal के एक X Post से भड़के गुस्से को भी इसकी वजह माना जाता है। अराजक तत्वों ने भी आंदोलन में घुसपैठ कर फायदा उठाया। उनको Departmental Stores लूटते Viral Videos में देखा जा सकता है। ये भी दिखाई दिया कि राजनेताओं-मंत्रियों को लात-घूंसों-पत्थरों से मारते लोग दिखे तो उनको बचाने वाले भी आंदोलनकारी ही थे।

ये मुमकिन नहीं है कि पुलिस के भाग खड़े होने के बाद पूरी तरह Gen-Z के रहमोकरम पर रह गए पूर्व PMs देऊबा-झलनाथ खनाल-पुष्प कमल दहल प्रचंड-कई मंत्री और अन्य राजनेता जिंदा बच जाते। उनकी जिंदगी बख्श दी गई। उनको नसीहत दे दी गई कि अब भ्रष्टाचार ही नहीं बेहतर होगा राजनीति से भी संन्यास ले लें। झलनाथ की पत्नी की जल की मौत को छोड़ दिया जाए तो अब तक 30 से अधिक आंदोलनकारी युवाओं-किशोरों की मौत की पुष्ट खबरें सामने आई हैं। ये एकतरफा हिंसा के बावजूद सत्ता बदल की लाजवाब मिसाल है। किशोर-युवा-अवाम की एकता-उनकी हिम्मत-साहस और भ्रष्ट सत्ता-प्रतिष्ठान को उखाड़ फेंकने के दृढ़ संकल्प ने साबित किया कि ना-मुमकिन कुछ नहीं है।

PM रहते यही ओली Gen-Z पर कटाक्ष करते नजर आते थे। नेपाल में सत्ता पर चंद दलों के कुछ ही चेहरों का राज रहा है। PM की कुर्सी सिर्फ देऊबा-प्रचंड और ओली के बीच Musical Chair बनी हुई थी। किसी और को मौका मिलता ही नहीं था। इसको ऐसे समझें। 17 साल (साल-2008 में महाराजा ज्ञानेन्द्र ने कुर्सी छोड़ी थी) में देऊबा सबसे ज्यादा 5-प्रचंड और ओली 3-3 बार प्रधानमंत्री की कुर्सी को गरम कर चुके हैं। नेपाल में राजनीतिक जागरूकता बहुत अधिक है। वहाँ के लोगों और विशेष रूप से Gen-Z ने इसका आखिर प्रतिकार कर डाला। मुमकिन है भविष्य में नेपाल की सियासत में अब ये तीनों चेहरे शायद ही कभी अहम भूमिका में सार्वजनिक तौर पर नजर आएंगे।

मुलुक इस वक्त बिना सरकार के है। सेना हालत पर नजर रखे हुए है। कानून-व्यवस्था भी पुलिस के नाकाम होने के बाद उसने अपने हाथों में ली हुई है। अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर देश की पहली महिला Chief Justice रहीं सुशीला कार्की का नाम अब उस बालेन शाह से ऊपर चल रहा, जिनको युवाओं-किशोरों के नए नायक के तौर पर शुरू में अकेले देखा जा रहा था। बालेन काठमांडू के Mayor हैं। भारत के कर्नाटक के विश्वेसरैया विवि से M-Tech हैं। 35 साल के मधेसी हैं। उनको ले के उपजा दीवानापन और उनकी प्रतिष्ठा भी Gen-Z के सत्ता परिवर्तन आंदोलन से बहुत कम हुआ है। पहले उनको Interim PM बनाने की आवाज उठी थी।

बिना ये सोचे कि छोटी सी नगर पालिका चलाने और देश को चलाने में जमीन-आसमान का अंतर होता है। दूसरा उनका Attitude प्रशासक से ज्यादा Activist और कानून-संविधान को भी न मानने वाला दिखता रहा है। उन्होंने सेना के खेल के मैदान को ध्वस्त कर दिया था और पुलिस मुख्यालय के बाहर से कूड़ा-कचरा उठवाना-सफाई कराना बंद कर दिया था। अलग-अलग कारणों से। Supreme Court को भी चुनौती दे चुके हैं। मधेसी तबके को भारत समर्थक समझा जाता है। इसके उलट बालेन की छवि भारत विरोधी की है। शायद ऐसा वह खुद बनाना चाहते हैं। इसके जरिये वह राजनीति की ऊंची सीढ़ी चढ़ना चाह सकते हैं। हिन्दी फिल्म आदि पुरुष को उन्होंने काठमाण्डू में प्रदर्शित होने नहीं दिया था। कुछ संवादों में बदलाव के बाद ही इसको वहाँ दिखाया जा सका था।

आंदोलन के दौरान वह सामने आने से बचे। इससे Gen-Z में उनको ले के भी गुस्सा है। ये भी कहा जा रहा है कि नेपाल में पैदा हालात के लिए चीन या अमेरिका जिम्मेदार हो सकते हैं। ओली को चीन का पिट्ठू समझा जाता था। सोचने की बात है कि चीन क्यों उनको अस्थिर करेगा! उनका चीन के अधिक करीब जाना अलबत्ता,अमेरिका को अखरना स्वभाविक है। हो सकता है कि उसकी भूमिका इस आंदोलन में हो। बांग्लादेश-श्रीलंका की हालात के लिए अमेरिका का नाम लिया ही जाता है। नेपाल में लेकिन किसी ने इज्जत और प्रतिष्ठा अर्जित की तो वह सेना है। बिना सरकार के मुल्क को सेना ने अपनी हिफाजत में ले लिया है।

Army Chief जनरल अशोक राज सिगदेल ने हालात को काबू करने के लिए सेना को अपने स्तर पर झोंका हुआ है। दुनिया के कई देशों में ऐसी मिसालें हैं जब मौका पा के सेना और उसके प्रमुख ने सत्ता हथिया ली। जनरल अशोक इसके उलट अन्तरिम सरकार के गठन और तब तक व्यवस्था को पटरी पर लाने में जुटे हुए हैं। नेपाल उन्होंने संभाला हुआ है। उन्होंने अभी तक कहीं से ये संकेत नहीं दिया है कि वह सत्ता में काबिज होने की मंशा रखते हैं या फिर होना चाहते हैं। कुछ लोग नेपाल के मौजूदा हालात के पीछे राजतंत्र की वापसी की कोशिश में लगे लोगों और प्रचंड-बालेन का भी हाथ देख रहे हैं। प्रचंड का बाल भी बांका न होने और उनको नुक्सान न करने के लिए इसकी वजह मानी जा रही। कभी देश से राजशाही को उखाड़ फेंकने वाले विद्रोही माओवादियों के इस पूर्व सर्वोच्च Commander को फिर सत्ता में वापसी की फिराक में डूबे रहना माना जाता है। बालेन को अपनी लोकप्रियता देखते हुए हालात बिगड़ने पर प्रधानमंत्री की कुर्सी मिलने की उम्मीद रही हो। बिना राजनीतिक दल के उनका सरकार का मुखिया बनना संभव नहीं है। ऐसे हालात ही उनको PM बना सकते हैं।

नेपाल में पिछले कुछ अरसे से एक बार फिर राजशाही की मांग तेजी से उठी है। साल-2001 के राजमहल नर संहार में महाराजा-महारानी-दोनों राजकुमारों की मौत के बाद तब सिर्फ महाराजा वीरेंद्र के छोटे भाई ज्ञानेन्द्र ही वयस्क जीवित बचे थे। उनके बेटे पारस छोटे थे और उनको Drugs में ही डूबे रहने के लिए जाना जाता है। राजशाही के समर्थक अब चाहते हैं कि पारस के युवा हो चुके पुत्र हृदयेन्द्र शाह या फिर खुद ज्ञानेन्द्र एक बार फिर देश की कमान संभाले। हृदयेन्द्र की मां हिमानी शाह राजस्थान राज घराने से है। वह नेपाल में ख़ासी लोकप्रिय हैं। हृदयेन्द्र का विदेश से इन दिनों ही नेपाल आना भी चर्चाओं में है। नर संहार में मारी गईं राजकुमारी श्रुति की दोनों बेटियाँ गिरवानी राज्यलक्ष्मी राणा और सुरंगना राज्यलक्ष्मी राणा भी विदेश से इन्हीं दिनों नेपाल आई हुई है। इन सभी को संयोग कहा जाए या फिर रणनीति का हिस्सा! क्या वे राजशाही वापसी का माहौल बनाने का हिस्सा होंगी!इस पर भी समीक्षा हो रही। क्या राजशाही की वापसी की भी पटकथा लिखने की कोशिश हो रही! इसका जवाब वक्त ही देगा।

इसमें दो राय नहीं कि नेपाल को राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता-PM की कुर्सी का सियासतदानों में बढ़ते या फिर कभी खत्म या कम न होते लोभ का भारी खामियाजा भुगतना पड़ा। बहुमत विहीन सरकार होने और बटोरू सत्ता से सरकार कभी मजबूत नहीं दिखी। कमजोर सत्ता और राजनीतिक अस्थिरता ने नेपाल में अफसरशाही-लाल फीताशाही को बढ़ावा दिया और विकास को थाम डाला। भारत में भी लोग निस्संदेश नेपाल से सबक लेंगे कि सरकार मजबूत होनी चाहिए और राजनीतिक स्थिरता का कोई विकल्प नहीं है। उत्तराखंड के संदर्भ में देखें तो CM पुष्कर सिंह धामी के पास मजबूत बहुमत और राजनीतिक स्थिरता की प्रचुरता है। इसके चलते ही वह UCC-नकल विरोधी कानून-Land Laws-धर्मांतरण विरोधी कानून-3 तलाक पर रोक सरीखे अहम फैसले धड़ल्ले से ले सके।

 

 

 

 

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