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UP की योगी सरकार-BJP में बवंडर मचा है लेकिन CM पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड में सरकार-संगठन में पूरी तरह शांति-असंतोष मुक्त माहौल कायम कर साबित किया है कि Leadership काबिलियत के मामले में उनका जवाब नहीं है.लोकसभा की सभी 5 सीटों पर फतह समेत तमाम बड़े फैसलों और उनकी सफलताओं के तोहफों का गुलदस्ता PM नरेंद्र मोदी और HM अमित शाह को सौंपने में वह कामयाब हुए हैं.दोनों के Scoresheet पर PSD ने खासे नंबर जुटा लिए हैं.ये माना जा सकता है.
योगी की देश के साथ ही दुनिया में भी पहचान है.जो आशीर्वाद पुष्कर के साथ है बिल्कुल वैसा ही हाथ योगी के सिर पर भी था.फर्क ये आ गया कि CM बनने के बाद योगी आदित्यनाथ खुद को संभाल पाने में कहीं न कहीं नाकाम दिख रहे हैं.आला कमान से उनका तालमेल बिखरता झलकने लगा है.वह Team Work और Team Spirit पैदा करने में भी सफल नहीं हो पाए.आज उनको सरकार के भीतर से Dy CM केशव मौर्य और उनके साथ के कई मंत्री तनाव और सिर दर्द दे रहे हैं.
CM-Dy CM में दंगल ने BJP और सरकार की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाई है. योगी को केशव मौर्य खुल के टक्कर दे रहे.ये बात दीगर है कि न उनका मुख्यमंत्री कुछ बिगाड़ पा रहे न ही वह किसी किस्म का बिगाड़ मुख्यमंत्री का कर पाए हैं.आए दिन देश के Media घरानों में UP की अंदरूनी सियासत और योगी बनाम Others की सियासत छाई रहती है.इससे मोदी-शाह-BJP का असहज रहना स्वाभाविक है.बची-खुची कसर आंतरिक संकट को बढ़ाने में लोकसभा चुनाव में BJP के बेहद खराब प्रदर्शन ने पूरी कर दी.
PSD ने बेहद परिपक्वता के साथ योगी के उलट सरकार और संगठन की रास थामी और दोनों के रथ को कुशलता से दौड़ाया है.वह ऐसा कोई मौक़ा भी नहीं दे रहे, जो भीतर के क्षत्रप उन पर हमला खुल के तो दूर भीतर ही भीतर ख़ामोशी के साथ भी करने का हौसला दिखा सके.देश में अधिकांश राज्यों में BJP को लोकसभा चुनाव में झटके लगे लेकिन उत्तराखंड में 100 फ़ीसदी नतीजा दे के ये कहा जा सकता है कि उन्होंने मोदी-शाह का दिल तो जीत ही लिया.UP में ये प्रतिशत महज 40 के आसपास रहा.
उत्तर प्रदेश सरकार में भीषण समुद्र मंथन सत्ता के केंद्र में आने या बने रहने के लिए हो रहा है.उत्तराखंड में सियासत का महासागर शांत दिखता है.देखा जाए तो सत्तारूढ़ होने के बावजूद BJP के बजाए मुख्य विपक्षी दल Congress में सिर-फुटव्वल अधिक नजर आती है.एक भी मंत्री को मुख्यमंत्री के खिलाफ या फिर उनसे अलग तटस्थ नहीं देखा जा सकता है.हर मंत्री-हर दम पुष्कर के साथ हर जगह खड़े और जूझने के लिए तैयार दिखते हैं.3 साल से अधिक की सरकार के बावजूद ये बहुत बड़ी बात है.
सियासी समीक्षक इसको PSD की सियासी परिपक्वता का नतीजा मानते हैं.BJP के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट और महामंत्री (संगठन) अजेय कुमार या फिर RSS के प्रान्त प्रचारक शैलेन्द्र नौटियाल के साथ उनका सामंजस्य नरम-उदार दिखता है.राज्य के सभी MPs में भी सभी के साथ वह तालमेल रखने में यकीन दिखाते रहे हैं.इस सबके चलते उनको सरकार और संगठन में तारतम्य कायम करने और संचालित करने में बहुत सहज माहौल मिल रहा है.
बद्रीनाथ और मंगलौर विधानसभा Assembly By-Elections के नतीजों से उन पर अंगुली उठाने की एकाध कोशिशें हुईं लेकिन आला कमान पर इसका असर नहीं दिखता है.बद्रीनाथ में प्रत्याशी को ले के पार्टी कार्यकर्ताओं और Voters-सिपहसालारों में ही भारी असंतोष था.CM-BJP प्रमुख की प्रत्याशी चयन में भूमिका नहीं थी.सीट हार रहे हैं, ये रिपोर्ट आला कमान को नतीजे घोषित होने या चुनाव से बहुत पहले ही दे दी गई थी.
मंगलौर में BJP ने शिकस्त के बावजूद भीषण टक्कर Congress को दी.जीत जाने के बावजूद भविष्य में इस सीट को ले के कांग्रेस में ही फ़िक्र के बादल मंडरा दिए हैं.ये सीट जीतने के बारे में खुद BJP कभी आश्वस्त नहीं रही.कयास तो हार के अंतर को ले के लगाए जा रहे थे.मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा सीट होने के बावजूद यहाँ कई बार मतगणना के दौरान BJP ने कांग्रेस से बढ़त ली.ये हैरतनाक रहा. आला कमान और मोदी-शाह की राय दोनों उप चुनावों के नतीजों के चलते पुष्कर के बाबत बदलेगी,इस किस्म की सोच रत्ती भर भी किसी की न थी न है.
दोनों दिग्गजों का वास्ता सिर्फ लोकसभा चुनाव में अधिक से अधिक सीटें जीतने से था.उसमें उनको उत्तराखंड से बोरी भर के सीटें मिल गईं.पुष्कर ने मरी-दबी समझी जा रही BJP को विधानसभा के आम चुनाव में ऐतिहासिक फतह दिलाई. फिर देश-दुनिया में सुर्खियाँ बटोरने वाले UCC-नक़ल कानून (प्रतियोगी परीक्षा)-धर्म परिवर्तन-Land जिहाद पर ठोस कार्रवाई की.BJP की Second Line में आज उनको बहुत प्रमुखता देखा जा रहा है, तो ये स्वाभाविक है.उनको पार्टी के भावी नेतृत्व में शुमार किया जा रहा है.लोकसभा चुनाव में उनको बतौर सितारा प्रचारक जबरदस्त जिम्मेदारी देने की बड़ी वजह भी ये ही थी.