
The Corner View
Chetan Gurung
उत्तराखंड को बने एक-दो साल ही हुए थे। गृह सचिव विजेंद्र पाल दौरे से देहरादून लौट रहे थे। हरिद्वार में प्रवेश करते ही आधी रात को चिड़ियापुर पुलिस चौकी जा घुसे। खलबली मच गई। पुलिस महकमे के शासन के Boss सभी पुलिस वालों को अच्छे से समझा-फटकार के निकले। कई दिन तक लेकिन चौकी In-Charge और SSP की जान सांसत में रही कि क्या मालूम कब उन पर कोई आफत आ पड़ती है। एक और वाकया है। पाल नैनीताल की तरफ जा रहे थे। रास्ते में उनको कप्तान ने रोक के कहा कि आगे लोगों ने जाम लगाया है। दूसरे रास्ते चलते हैं। गृह सचिव ने कप्तान की बातों को नजर अंदाज किया और खुद ही धरना स्थल पहुँच गए। आंदोलनकारियों के बीच जा घुसे। उनसे बात की। उनकी समस्याओं-मांगों को सुना। हाथों हाथ निपटाया और मजे से आगे निकल लिए।

CM पुष्कर सिंह धामी-विधानसभा चुनाव में Hattrick का जिम्मा
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वह हिम्मती और बहुत तेज-तर्रार के साथ ही तीक्ष्ण बुद्धि वाले बेहद अनुभवी नौकरशाह थे। उनके कई किस्से हैं। एक बार मसूरी में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल आई हुई थीं। उसी वक्त राजेंद्र नगर में ONGC Colony में SoG के जवानों के नाम जुआ लूटने में आया। मैंने इस पर Story की थी। SSP ने फटाफट जांच बिठाई। पूरी SoG भंग कर डाली। जरूरी Action तो लिया ही। ऐसे कप्तान अब विरले ही मिलेंगे। पुलिस क्या-क्या उल्टे-सीधे और गैर कानूनी काम खुशी-खुशी या फिर दबाव में करती है, छिपी बात नहीं है। उस पर लेकिन लगाम लगाने में अफसर या सरकार अधिकांश मौकों पर या तो चूक जाती हैं, या फिर दिलचस्पी नहीं दिखाती है। इससे सबसे पहले तो आम शख्स पीड़ित और हताश होता है। फिर इसका नकारात्मक असर सरकार और उसको चला रही Party पर चुनाव के दौरान पड़ता है।

Chetan Gurung
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पुलिस अपनी पर आए या अपने फर्ज को ढंग से अंजाम देना शुरू करे तो Mafia तंत्र के होश ठिकाने आने में Seconds नहीं लगते हैं। उनको संरक्षण देने वाले राजनेता भी सहम जाते हैं या फिर हिचक उठते हैं। पिछली शताब्दी में 90 के दशक में सिख आतंकवाद को पुलिस ने अपने बूते देहरादून और उधम सिंह नगर में रौंद डाला था। तब Western UP के तमाम बड़े-बड़े कुख्यात जरायम भी इधर का रुख करने से कतराने लगे थे। या फिर यहाँ Hide Outs बना के रहने लगे थे। जरायम और माफियागिरी के साथ राजधानी को बेतरतीब Traffic ने बेहाल और बेचैन कर डाला है।
आलम ये है कि यातायात से परेशान हो के लोग मजबूरन दोपहिया की सवारी करने को बेहतर मानने लगे हैं। या फिर Rapido-Ola-Uber का सहारा ले रहे। CM पुष्कर सिंह धामी की प्रतिष्ठा आम लोगों से जुड़े रहने की और उनसे जुड़ी दिक्कतों को समझ के दूर करने की कोशिश करने वाले की है। वह यूं ही 19 दिसंबर को शहर के प्रमुख Police Station (डालनवाला) नहीं चले गए थे। मुख्यमंत्री पुलिस तंत्र और इससे जुड़ी लोगों की समस्याओं से अच्छी तरह वाकिफ हैं। SHO को Line हाजिर करने के साथ ही वह आम फरियादियों से कोतवाली में मुखातिब हुए। उनकी दिक्कतों को जाना। उनको दूर करने की कोशिश की। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब राजधानी के साथ ही राज्य के सभी जिलों में पुलिस अपनी कार्य प्रणाली सुधारने में जुटेगी।
CM का लगातार अतिक्रमण के खिलाफ अभियान छेड़ना और यातायात को ले के आए दिन आदेश देना और इनमें गहन दिलचस्पी दिखाना उम्मीद जगाता है कि शायद आने वाले दिन दोनों मामलों में बेहतर होंगे। राजधानी में Parking की समस्या बहुत ही बड़ी हो चुकी है। जो पार्किंग व्यवस्थाएँ की जा रही हैं, वे ऊंट के मुंह में जीरा सरीखा है। खाली जमीन न होना Parking व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा संकट है। इसके लिए आधुनिक तकनीकी और सार्वजनिक परिवहन का सहारा लिया जा सकता है। ऊपर जमीन भले न मिले। इसका विकल्प जमीन के भीतर तलाशा जा सकता है। Under Ground Parking और Under Pass पर भी काम किया जा सकता है।
सवाल यही है कि आखिर ये सब क्या सिर्फ मुख्यमंत्री पुष्कर को ही करना है! मंत्री-सांसद-विधायक और नगर निगम के मेयर के साथ ही जिला प्रशासन और शासन में बैठे आला संबन्धित अफसरों को भी इसमें आगे आना होगा। सरकार के मुखिया होने के बावजूद PSD को डालनवाला कोतवाली में FIR Register जांचते और महिला Help Desk पर जा के मौजूद लोगों से बात करते देखा गया। ये काम कभी-कभी या फिर नियमित रूप से गृह सचिव-Commissioner-DM-सचिव (मुख्यमंत्री) तथा DGP-ADG (कानून-व्यवस्था) और IG-Range क्यों नहीं कर सकते हैं?
बेशक,सक्रिय मंत्रियों की राज्य को शुरू से ही कमी रही। सिवाय नारायण सिंह राणा को छोड़ के। जो साल-2000 में उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद राज्यमंत्री हुआ करते थे। अन्तरिम सरकार के पहले CM नित्यानन्द स्वामी से सम्बद्ध थे। उनके साथ समस्या System को न समझ पाने की थी। वह एक बार गढ़ी कैंट थाने में चले गए। सभी को हड़काया। फिर GD (General Diary) ले के मुख्यमंत्री के पास चल दिए कि आज मैंने ये किया। खास पहलू ये है कि राणा खेल महकमा देख रहे थे। उनका GD ले के चला जाना बहुत बड़ा मुद्दा बन गया था। ये आपराधिक कृत्य सा था। मंत्री सक्रिय हों लेकिन सरकार के लिए उनकी रफ्तार और हरकत सिरदर्द न हो, बस।
आज की तारीख में रेखा आर्य और कुछ हद तक सुबोध उनियाल को छोड़ के कोई मंत्री ऐसा नहीं दिखाई देता, जो अपनी कार्यशैली से छाप छोड़ सके। विवादों से नाता अलबत्ता, सिर्फ सौरभ बहुगुणा का नहीं रहता है। वह Low Profile मंत्री कहे जा सकते हैं। ये अलग बात है कि उनकी सियासी और पारिवारिक पृष्ठभूमि सबसे अधिक समृद्ध है। नौकरशाहों में भी कोई ऐसा नजर नहीं आता, जो कामकाज और कार्य शैली के बूते मुख्यमंत्री का बोझ कुछ कम कर सके।
मैंने निजी तौर पर मधुकर गुप्ता-डॉ रघुनंदन सिंह टोलिया-सुरजीत किशोर दास-विभा पुरी दास-विजेंद्र पाल-सुभाष कुमार-विनीता कुमार-आलोक जैन-शत्रुघन सिंह-डॉ राकेश कुमार और सबसे ऊपर राकेश शर्मा को देखा है, जो लोगों की मदद में बढ़-चढ़ के सामने आते थे। इनमें कई मुख्य सचिव बने। कुछ स्वर्ग सिधार चुके हैं। उनके दफ्तरों में साधु-संतों और गाँव-पहाड़ के साधारण लोगों को भी बैठे और चाय पीते देखा जा सकता था। वे सभी को उचित सम्मान देने के साथ ही उनकी हर मुमकिन मदद करने से नहीं हिचकते थे।
आम और खास किस्म के लोगों से उनका इतना अधिक और नियमित वास्ता रहता था कि उनको प्रदेश के हर खास शख्स तथा चल रही गतिविधियों की जानकारी गहन रहती थीं। वे उनके लिए अहम जानकारी के स्रोत होते थे। सरकार की नीतियाँ बनाने में उनके Feedback बहुत काम आते थे। खास बात ये है कि स्वभाव में बहुत सुलझे और दयालू होने के बावजूद फैसले लेने में उनकी सख्ती का कोई सानी नहीं था। सुरजीत-सुभाष को देख के लगता ही नहीं था कि वे कुछ कठोर कदम भी उठा सकते हैं। वे सिर्फ व्यवहार के उदार थे। दोनों के वक्त ही दारोगा भर्ती घोटाले-पटवारी भर्ती घोटाले (पौड़ी) में बड़े-बड़े IAS-IPS नाप दिए गए थे।
सुरजीत राजस्व और गृह महकमा देख रहे थे। सुभाष दोनों मामलों में जांच अधिकारी थे। वह तब प्रमुख सचिव और Commissioner हुआ करते थे। दोनों की जुगलबंदी ऐसी रही कि DGP प्रेमदत्त रतूड़ी को कुर्सी छोड़नी पड़ी। CBI जांच झेल रहे अब। 52 साल की उम्र में ही IPS राकेश मित्तल को Suspend हो के अपने चमकदार दिख रहे Career को विराम देना पड़ा था। विजेंदर पाल न होते तो श्रीनगर का Medical College न बन पाता। सर्वे चौक इतना खुला होता। दोनों उनकी निजी मेहनत का नतीजा है।
आलोक जैन CM और CS के सामने गलत को गलत बोलने का दम रखते थे। उनको चापलूसी नहीं आती थी। इसका खामियाजा उन्होंने एक साल में ही मुख्य सचिव की कुर्सी गंवा के भुगता। विनीता कुमार जब प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) थी तो हीमोफीलिया के रोगियों को राहत संबंधी एक शासनादेश सर्द आधी रात में अफसरों को सचिवालय बुला के तैयार किया। फिर मध्य रात करीब 2 बजे हाथ में थमा के फरियादियों को भेजा था। उनको बेहद मूडी नौकरशाहों में शुमार किया जाता था लेकिन मानवता उनमें कूट-कूट के भरी थी। सुरजीत दास की तरह।
राकेश शर्मा मदद के लिए किसी भी हद तक जाने और हर मर्ज की दवा तैयार करने के लिए जाने जाते थे। आज के दौर में ऐसे नौकरशाहों को तलाशना अंधेरे में सुई ढूँढना है। कुछ में वह प्रतिभा दिखाई देते है लेकिन वे खुद ही खोल में छिपते नजर आने लगे हैं। CM पुष्कर इन नौकरशाहों को आगे ला के प्रोत्साहित कर सकते हैं। अपने मंत्रियों को भी महज Sample के तौर पर या फिर मौज-मजे में डूबे रहने के आगे आ के अवाम के लिए जुटने के लिए कहा जा सकता है। उत्तराखंड का विधानसभा चुनाव कब सिर पर आ पहुंचेगा, खबर ही नहीं होगी।
बचा हुआ सवा साल पुष्कर को अब कुछ अलग शैली में गुज़ारना होगा। इसमें को शुबहा किसी को नहीं है कि चुनाव उनकी ही अगुवाई में PM नरेंद्र मोदी-HM अमित शाह के साए में होने हैं। BJP को Hattrick जीत दिलाने की अहम ज़िम्मेदारी उनके ही काँधों पर है। पार्टी के पास वह सबसे बेहतर विकल्प और आज तक के सबसे सुलझे हुए मुख्यमंत्री हैं। उनकी जुबान न फिसलती है न ही राजनीतिक या विपक्षी प्रतिद्वंद्वियों को नाराज-नाखुश होने का मौका देते हैं।
मोदी-शाह के बहुत अधिक विश्वासपात्र हैं। BJP की फिर सरकार बनने पर CM बनने की Hattrick लगाने का श्रेय भी PSD को ही मिलेगा। बस उनको जमीन-शराब-खनन माफिया और इनके धंधे मे लगे कुख्यातों को भी ज़मींदोज़ करना होगा। कुछ नौकरशाहों-HoDs को इधर-उधर के भूकंपीय झटके देने होंगे। इतिहास बनाना उनके लिए असंभव नहीं होगा।



