पुष्करनीति::अपने-परायों को साधा:मंत्रियों को हौसला-मंत्री बनने की आस वालों को बंधाई उम्मीद:आपदा के मारों संग मनाई दिवाली
The Corner View

Chetan Gurung
ये दिवाली सियासी नजरिए से CM पुष्कर सिंह धामी के लिए बहुत अहम कही जा सकती है। उनके आवास पर मंत्री बनने की ख़्वाहिश रखने वाले BJP MLAs ने माथा टेका। जो मंत्री हैं, वे कुर्सी में बने रहने की अनंत इच्छा से ऐसा ही करने पहुंचे। सरकार के मुखिया ने और खास काम किए। दिवाली सहस्त्रधारा के मझाड़ा गाँव में उन लोगों के साथ मनाई, जो हाल ही में आपदा के शिकार हुए थे। इससे पहले उन्होंने सियासी कूटनीति का अच्छा इस्तेमाल किया। वह अपने पूर्ववर्तियों भगत सिंह कोश्यारी-रोग शैय्या पर लेटे BC खंडूड़ी-डॉ रमेश पोखरियाल निशंक-त्रिवेन्द्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत के साथ ही Congress सरकार में खुद के समकक्ष रहे हरीश रावत से भी उनके आवास जा के रिश्तों के दिये रोशन कर आए। BCK से वह बेहद अपनत्व भरे अंदाज में मिले।



दिवाली पर CM PSD को बधाई देने पहुंचे सुबोध उनियाल (सबसे ऊपर)-सौरभ बहुगुणा (मध्य में) और MLA खजान दास (नीचे)
————-
उत्तराखंड के सबसे ज्ञानी-विद्वान मुख्यमंत्री के तौर पर ND तिवारी की जगह कोई नहीं ले सकता। वह हरीश रावत Lobby के लगातार ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगा के उनको हटाने की कोशिशों को खामोशी के साथ निबटाते रहे। पूरे 5 साल सरकार चलाने के बाद सत्ता हस्तांतरण BJP को कर के आंध्र प्रदेश के राज्यपाल बन के निकल लिए। उनका कद और पार्टी में रुतबा उनके काम हमेशा आया। उस वक़्त के PM डॉ मनमोहन सिंह को मैंने दो मौकों पर Telephonic बातचीत में बेहद आत्मीय-अपनत्व लेकिन सम्मानजनक अंदाज में ऐसे बात करते देखा, जब उत्तराखंड को अपना Plan Size बढ़ाना जरूरी था। योजना आयोग (आज का NITI आयोग) की बैठक में योजना का आकार बढ़ाने संबन्धित बैठक में NDT की गुजारिश पर PM डॉ सिंह ने कहा था,`आपके आदेश को कैसे अस्वीकार कर सकता हूँ। मैं आपका सचिव रह चुका हूँ’। आयोग के उपाध्यक्ष डॉ मोंटेक सिंह आहलुवालिय ने भी फौरन कहा था,मैं भी आपका Deputy Secretary रहा हूँ। दोनों तब की बात कर रहे थे जब पंडितजी Finance Ministry के सर्वेसर्वा (मंत्री) हुआ करते थे।
BHEL (हरिद्वार) से जमीन वापिस ले के वहाँ शानदार SIDCUL विकसित करना भी NDT के बूते ही मुमकिन हो पाया था। सितारगंज में भी SIDCUL उनकी ही कोशिशों से बना था। उनका सियासी हुनर भी ऐसा गज़ब का था कि उस वक्त का विपक्ष (BJP) एक किस्म से उनकी जेब में हुआ करता था। उनका विरोध सिर्फ Congress में बैठे महत्वाकांक्षी (इनमें हरीश रावत अगुवा थे) ही करते थे। BJP वालों को उन्होंने अपने वश में किया हुआ था। उनका कोई भी काम उस वक्त शायद ही रुकता था। मित्र विपक्ष शब्द तभी गढ़ा गया था। बाद में मुख्यमंत्री बने BJP के एक बड़े नेता तो तिवारी कूटनीति के शिकार हो के आला कमान के कोप का भाजन भी बनते-बनते रह गए थे। एक बार ऐसा भी हुआ कि लालकृष्ण आडवाणी देहरादून के मधुबन (होटल) में ठहरे थे और उसी दिन मैंने एक स्टोरी लिख डाली थी। आडवाणी जी ने मुझे BJP के एक नेता के जरिये नाश्ते पर बुलवाया। उन्होंने अनौपचारिक ढंग से मुझसे उन बड़े नेता के नाम के बाबत खुल के जानना चाहा। नाश्ते का मकसद भी यही था। मैंने नाम न लिख के सिर्फ इशारा किया था। आडवाणी जी को मालूम चल गया था लेकिन मेरे मुंह से नाम सुन्न चाहते थे। जो मैंने नहीं खोला। अपने भी कुछ उसूल रहे हैं। अलबत्ता, NDT ने देखा जाए तो BJP के कई दिग्गजों को कहीं का नहीं छोड़ा था।


CM पुष्कर की सियासी गुरु भगत सिंह कोश्यारी (सबसे ऊपर) और गुरु भाई पूर्व CM त्रिवेन्द्र सिंह रावत से उनके आवास पर दिवाली की बधाई-शुभकामना मुलाक़ातें
————-



पूर्व CMs डॉ रमेश पोखरियाल निशंक (सबसे ऊपर)-तीरथ सिंह रावत (बीच में) और हरीश रावत (नीचे) को दिवाली की बधाई देने मुख्यमंत्री PSD उनके आवास पहुंचे।
—————


मुख्यमंत्री पुष्कर ने BJP की नई कार्यकारिणी के साथ पार्टी प्रदेश मुख्यालय में दिवाली मनाई
—-
पुष्कर के राजनीतिक विरोधी, जो कुछ अरसे से राजनीतिक शत्रु अधिक कहे जा सकते हैं, कम नहीं हैं। उनकी बड़ी खासियत ये है कि उन्होंने सियासत की पढ़ाई कोश्यारी विवि से की है तो NDT को गुरु और खुद को एकलव्य मान के उनसे भी ढेरों ऐसे हुनर-गुर सीखे हैं कि उनको अभिमन्यु की तरह घेर के सियासी रण में ढेर करने की मंशा रखने वालों में कुव्वत हर बार कम पड़ जा रही। Congress में थोड़ा-बहुत ऐसा रुख-कौशल हरीश रावत मुख्यमंत्री होने के दौरान रखते थे। PSD को अप्रत्याशित रूप से कुर्सी संभालते ही घर के भीतर से लगातार छिपे-शिखंडी हमले खूब होते रहे हैं। BJP को कब्रगाह से निकाल के जिंदा और विजयी बनाने वाला मुख्यमंत्री और PM नरेंद्र मोदी-HM अमित शाह की तरफ से CM Project होने के बावजूद वह खटीमा का अपना चुनाव यूं ही भला कैसे हार जाते वरना!

Speaker ऋतु खंडूड़ी ने भी CM पुष्कर सिंह धामी को मिल के दिवाली की बधाई दी
—

CM PSD ने जमीन पर बैठ के आपदा पीड़ितों के साथ वक्त गुजारा और उनकी तकलीफ सुनी
——-
इसके बाद और ज्यादा सीटों के साथ BJP के फिर सत्तारूढ़ होने और उत्तराखंड सियासत में नया इतिहास बनने के बाद उनका चुनाव हारने के बावजूद मुख्यमंत्री बनना तय होना ही था। खटीमा की हार-जीत से कोई फर्क नहीं पड़ना था। नुकसान खटीमा के लोगों को हुआ। उनके हाथ से 5 साल वाला मुख्यमंत्री छिटक गया। चंपावत के लोगों ने उनको हाथों-हाथ लपक के अपना सितारा चमका लिया। बड़े सियासी और नीतिगत-ज्वलनशील किस्म के सरकारी फैसले लेने और कदम उठाने में उनका सानी नहीं रहा। वह जो फैसले ले रहे, वे मोदी-शाह संग RSS और पार्टी के निष्ठावानों-विचारधारा के प्रति समर्पित लोगों को जम के रास आ रहा है। कठोर-अहम और लोगों से जुड़े निर्णय करने में वह कतई नहीं हिचकते दिखते हैं। भ्रष्टाचार पर उनका डंडा ज़ोरों से पड़ रहा। कई IAS-PCS और सरकारी अधिकारी-कर्मचारी जेलों की हवा खा रहे।

Chetan Gurung
—-
जाहिर है कि उनके खिलाफ Tool Kit चलना ही है। मैं दावे से नहीं कह सकता हूँ कि कौन लोग इसके पीछे हैं, लेकिन कोई बड़ा और कद्दावर शख्स और उनकी कार्यशैली रास न आने वाले इस टूल किट के जनक निस्संदेह हो सकते हैं। ऐसा कई बार हुआ जब नेतृत्व परिवर्तन की हवा अचानक से उडी। संयोग ऐसा बनता रहा कि नेतृत्व परिवर्तन तो नहीं लेकिन मंत्रिमंडल में फेरबदल की हवा तेजी से चली। मुख्यमंत्री बनने की आकांक्षा रखें वाले मंत्री तब अपनी कुर्सी बचाने के लिए रह-रह के उनकी चौखट में ऐड़ लगाने के मजबूर दिखे। कुछ पत्रकारों को नोटिस का भी पुष्कर के विरोधियों ने फायदा उठाने से परहेज नहीं किया। जो पत्रकारिता करने पर स्वाभाविक रहता है। लिखेंगे-दिखाएंगे तो झेलना भी पड़ता है। मैंने खूब नोटिस और दबाव सहे। मैंने ठेंगे पर ही रखा। उल्टा,इसकी भनक तक नहीं लगने दी। खुद ही अकेले सबको अपने बूते-सुबूतों के दम पर हौसले के साथ ठिकाने लगा डाला।
नोटिस तो छोटी सी चीज है। क्या कोई यकीन कर सकता है कि एक DM-Collector किसी खबर पर इस कदर तिलमिला जाए कि उसे लिखने वाले पत्रकार के खिलाफ आधिकारिक Press Conference ही कर डाले। आप अंदाज नहीं लगा पाए होंगे तो बता दूँ कि ये सम्मान मुझे मिला था। दौर था खंडूड़ी के CM काल का। SIDCUL घोटाले पर मेरी लगातार छप Stories-Series इसकी वजह थी। साल-2007 था। उस वक्त मैं उत्तरांचल Press Club का President भी संयोगवश था। पौड़ी में DM गोपाल कृष्ण द्विवेदी ने अपने साथ SSP अजय प्रकाश अंशुमन को बिठा के मेरे खिलाफ PC कर डाली थी। अब ADG अंशुमन आजकल Intelligence Chief और Police Headquarter में सबसे अहम Admin Section संभाल रहे। उनको लेकिन द्विवेदी ने ये नहीं बताया कि पत्रकारों से बातचीत का संदर्भ क्या होगा। उनको लगा कि शायद कोई विकास योजनाओं पर बात होनी होगी।
द्विवेदी ने PC में इस बात पर ऐतराज जताया कि उनको SIDCUL घोटाले (इसको मैंने ब्रेक किया था और इस पर खंडूड़ी सरकार ने जांच आयोग बिठाया था। तमाम IAS अफसर इसमें घिरे थे। कुछ उत्तराखंड Cadre के भी थे लेकिन अधिकांश Deputationist थे) में उसी दिन प्रकाशित मेरी एक खबर की एक लाइन पर गहरा ऐतराज था। शायद घबरा भी गए थे। ये घोटाला रोज ही उस अखबार (तब मैं अमर उजाला का Chief of State Bureau हुआ करता था) में प्रमुखता से छप रहा था, जिसमें छपने का मतलब हुआ करता था। आज कल का नहीं मालूम। आयोग तब गठित हुए चंद दिन ही हुए थे। मैंने Story में द्विवेदी पर कोई आरोप नहीं लगाए थे। सिर्फ एक पंक्ति उन पर लिखी थी कि आयोग उनको भी पूछताछ के लिए तलब कर सकता है। ऐसा इसलिए लिखा था कि घोटाले के वक्त वह उस उधमसिंह नगर के DM-Collector और SIDCUL के Joint MD थे, जिसके अंतर्गत सितारगंज SIDCUL आता था। आयोग गठित हुआ और मैंने खबर लिखी तो वह तब Transfer हो के पौड़ी के DM हो चुके थे।
1993 Batch के द्विवेदी की PC होते ही शासन में बैठे और जिलों में तैनात कुछ बड़े IAS-IPS अफसर साथियों में भी हलचल मची। मुझे फौरन उनके फोन आए कि द्विवेदी ने अपरिपक्व कदम उठाया। एक प्रमुख जिले के DM ने मुझे ये भी कहा कि द्विवेदी को मैंने समझाया है। कुछ दिन बाद ही मैं एक दोपहरी उस वक्त के प्रमुख सचिव (कार्मिक-गृह-CM) और Commissioner सुभाष कुमार के दफ्तर में सचिवालय के Fourth Floor पर था। एक दुबले-पतले शख्स ने अनुमति ले के कक्ष में प्रवेश किया। मेरी बगल की कुर्सी पर इजाजत ले के बैठा। हम दोनों एक-दूसरे से एकदम अंजाम थे। सुभाष जी ने सपाट चेहरे के साथ उस शख्स से मेरी तरफ इशारा कर पूछा इनको पहचानते हो? उसने इन्कार किया। फिर मुझसे मुसकुराते हुए पूछा कि आप जानते हैं इनको? मैंने भी इन्कार में सिर हिलाया। उन्होंने उस शख्स से मुखातिब हो के कहा। ये ही हैं, चेतन गुरुंग। जिनके खिलाफ आपने (उन्होंने तुमने शब्द का इस्तेमाल किया था) पत्रकार सम्मेलन किया था। उन्होंने इस कदम को बचकाना करार दिया और खबर की लाइन का भी जिक्र किया कि उसमें कोई आरोप तक नहीं है। गैर जरूरी विवादों से बचना चाहिए। द्विवेदी भी उनके मूल Cadre (आंध्र प्रदेश) के लिए कुछ वक्त बाद कार्यमुक्त कर दिए गए। ये बात दीगर है कि वह अनुभव के साथ अपने मूल कैडर में अच्छे नौकरशाह साबित हुए। इसी साल वह Aditional Chief Secretary बन के Retire हुए। उनसे मेरे रिश्ते बाद में काफी अच्छे रहे। Social Media पर बातें भी हुईं।
मुद्दों से भटक न जाऊँ। CM पुष्कर ऐसे अपरिपक्व कदम उठाने से बचना पसंद करते हैं। सियासी विरोधियों-असहमति रखने वालों के साथ ही पत्रकारों से भी रिश्ते बेहतर रखने की कोशिश करते हैं। मुझे याद है कि उनको आजकल अधिक विज्ञापन जारी कर पत्रकारों की मदद को ले के घेरा जा रहा। ऐसा एक भी पत्रकार संगठन नहीं है, जिसने पूर्व में मुख्यमंत्रियों से विज्ञापन का Budget बढ़ा के उनको अधिक से अधिक विज्ञापन जारी कर आर्थिक मदद करने की गुहार न की हो। मौजूदा सरकार ने ये किया तो उसको और DG (Info) बंशीधर तिवारी को भी निशाने पर लिया जा रहा है। इसके बावजूद कि PSD से मिलना पत्रकारों के लिए न सिर्फ बहुत आसान रहता है बल्कि पत्रकारों की मदद और संगठनों पर नेमतों की बारिश भी उनके दौर में इफ़रात में रही है। इसको लेकिन अब नकारात्मक ढंग से उछाला जा रहा। मुमकिन है कि कुछ लोग खुद्दार हों और उनको सरकारी इमदाद की दरकार न हो। कुछ लोगों को गलत नोटिस चला गया हो। मेरा अनुभव कहता है कि विवाद किसी भी पक्ष के लिए उचित नहीं रहता है। अधिकांश कोर्ट-कचहरी में उलझ जाते हैं। अपने काम पर Focus नहीं रख पाते हैं।
सौ बात की एक बात है कि CM के तौर पर पुष्कर बेहद सुलझे और परिपक्व्व हो के उभरे हैं। उनकी उम्र और सरकार में अनुभवहीनता को देख के ऐसा नजर आना ताज्जुब से कम नहीं। वह रात-दिन दौरे-बैठक-जनसभा करने वाले और लोगों से मिलने से न बचने की सशक्त प्रतिष्ठा रखते हैं। हर पूर्व मुख्यमंत्रियों से वह वक्त निकाल के लगातार मिलते-जुलते रहते हैं। सियासी विरोधियों को एहसास नहीं होने देते हैं कि उनकी कारस्तानियों-चालों को वह बाखूबी जानते हैं। मोदी-शाह ने उनको यूं ही इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी नहीं सौंप रखी है। आज आलम ये है कि फिर से मंत्रियों में बेचैनी है। गुजरात में मोदी-शाह ने CM छोड़ के अधिकांश मंत्रियों को Exit Door दिखा दिया। इसने उत्तराखंड में मंत्रियों को ये एहसास हो गया कि उनकी कुर्सी कभी भी जा सकती है। खास तौर पर अगर CM उनके विरोध में चले जाते हैं। मोदी-शाह बेशक PSD की सिफ़ारिशों-Report को भारी तवज्जो देंगे। इशारा शायद समझ आ गया होगा।



