
Chetan Gurung
उत्तराखंड में UKSSSC Paper Leak जो दरअसल नकल का मामला अभी तक दिखता रहा है, सरकार के लिए गले की हड्डी बनती दिख रही थी। एक युवा बॉबी पँवार,जो बेरोजगार युवाओं की आवाज और पहचान बन के हाल के सालों में तेजी से उभरा है, उसमें लोग नेपाल वाले बेहद आक्रामक Gen-Z Leader सुदन गुरुंग की छवि देख रहे थे, ने देहरादून में युवाओं-छात्रों के साथ ही पूर्व सैनिक और अन्य संस्थाओं को जोड़ के सरकार के लिए बड़ा झंझट खड़ा कर दिया था। उसकी अगुवाई में उभरे आंदोलन को लोग CM पुष्कर सिंह धामी के लिए अभी तक की सबसे बड़ी चुनौती मानने लगे थे। आलोचक और विपक्षी दलों के साथ ही घर में छिपे विरोधी तक कुछ बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम होने का अंदेशा जतला रहे थे। भविष्यवाणी कर रहे थे। सरकार को घिरता देख वे उनका दिल बल्लियों उछल रहा था। विजय दशमी से पहले PSD ने बेहद चौंकाने वाला कदम उठाया। वह कारों-अफसरों के काफिला ले के परेड ग्राउंड पर धरना स्थल पहुँच गए। कोई और मुख्यमंत्री होता तो उस दिशा से गुजरने से भी बचना पसंद करते। अपने कदमों और फैसलों से लगातार हैरान करते रहने के अभ्यस्त और आदी नौजवान CM ने बॉबी को बेहद अपनत्व के साथ संबोधित करते हुए उनकी CBI जांच समेत सभी मांगों को बेझिझक मंजूर कर लिया। ऐसा कर के आंदोलनकारियों को भी उन्होंने हतप्रभ कर डाला। उनको न तो सरकार के मुखिया का अपने बीच आने की और न ही इतना बड़ा फैसला इस कदर सहजता के साथ इतनी जल्दी मान लिए जाने की ही शायद उम्मीद थी। सबसे बड़ा झटका उन कुछ महत्वाकांक्षी घर की पार्टी वालों को लगा होगा, जिन्होंने जल्दी ही सर्दियों से पहले बड़े ख्वाबों के स्वेटर बुन डाले थे। लब्बो-लुआब पर आएँ। उन्होंने आंदोलन को बेहद सुलझे अंदाज में गरिमापूर्ण-सम्मानजनक ढंग से खत्म कराने में सफलता पाई। अहंकार को कोसों दूर रख के दिखाया कि राजनीति में उम्र से अधिक हुनर-समझ और परिपक्वता की अधिक अहमियत है। वह तीनों में बेहद समृद्ध हैं। ये साबित कर डाला।
CM Pushkar Singh Dhami:आंदोलनकारी युवाओं के बीच जा के उनकी मांगों पर अमल का ऐलान करने की हिम्मत-हौसले का प्रदर्शन
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नेपाल में 24 घंटे के भीतर Gen-Z ने सत्ता उलट-पुलट कर भारत में भी युवाओं की सोच को परवान चढ़ा डाला है। कई राज्यों में युवा सड़कों पर अचानक आ गया है। पुष्कर ने ताजा घटनाक्रम में बेहद संयम और समझदारी का परिचय दिया। बेहद परिपक्वता-सूझबूझ का प्रदर्शन कर युवाओं के आंदोलन की उलझन को सुलझा डाला। इसमें शक नहीं कि UKSSSC नकल, जिसको Paper Leak के तौर पर प्रचारित किया जा रहा, में प्रारंभिक जांच और नजरिए से देखें तो और कार्रवाई करने के लिए कुछ खास दिखता नहीं। सिवाय कुछ लोगों को जबरिया मु-अत्तल किए जाने के। Sector Magistrate बनाए गए पंचायतीराज महकमे का एक अधिकारी और पुलिस कर्मियों को निलंबन की मार सहनी पड़ी। Sector Magistrate का जिम्मा प्रश्न पत्र परीक्षा केंद्र तक सुरक्षित ले जाने और उत्तरपुस्तिकाओं का Collection कर जमा कराना होता है। केंद्र की व्यवस्था से उसका कोई नाता नहीं होता। पुलिस के जवान कानून और व्यवस्था के लिहाज से तैनात किए जाते हैं। वे कोई बहुत तीक्ष्ण दिमाग वाले नहीं समझे जाते हैं। भीतर Examination Hall या Room में क्या हो रहा है, उससे उनका कोई ताल्लुक होता भी नहीं। ये सब काम Examination Centre के In-charge का होता है। लगता है वे दबाव को दूर करने के लिए सरकार के उठाए गए कदमों का नाहक शिकार हो गए।
Chetan Gurung
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जिस Assistant Professor सुमन को Suspend किया गया, वह जरूर उचित दिखता है। उसने प्रश्न मिलने के बाद उनको सरकार के हवाले करने के बजाए किसी खास आंदोलनकारी नेता को भेज दिया। उस पर अब साजिश का हिस्सा होने का गहरा शक है। पुष्कर ने एक साथ कई लक्ष्य आंदोलनकारियों की मांगों को स्वीकार कर भेद डाले। अपने खिलाफ माहौल बनने से पहले ही ध्वस्त कर डाला। ये सबसे बड़ा लाभ उनको हुआ। समझा जा रहा है कि इसमें खुद BJP के भी कुछ लोग जुटे हुए थे। उनको अब फिर से कोई नहीं चाल सोचनी होगी। मुख्यमंत्री ने आंदोलनकारियों से अपने लिए तालियाँ बजवाई लेकिन ऐसा लगता है कि CBI जांच हुई तो बड़ी दिक्कत सरकार को नहीं बल्कि प्रश्नपत्र के परीक्षा केंद्र से बाहर आने से जुड़े लोगों को होगी।
PSD को राजनीतिक तौर पर बेहद Smart-तीक्ष्ण मस्तिष्क का स्वामी समझा जाता है। विरोधियों की दाल वह गलने या स्वादिष्ट होने का मौका नहीं देते हैं। वह या तो दाल अधपकी करा देते हैं, या फिर बुरी तरह जला के उसको किसी काम का नहीं रहने देते हैं। उन पर जितने भी सियासी हमले अंदर-बाहर से अभी तक हुए या होते रहे, सभी चूर-चूर हो गए। उन्होंने परीक्षा लीक-नकल मामले की जांच Special Investigation Team और HC के पूर्व Justice UC ध्यानी की अगुवाई में कराने का ऐलान किया था। ये जांच शुरू भी हो गई है। फिर भी CBI जांच का फैसला CM पुष्कर ने सिर्फ युवाओं-बेरोजगारों और अपने ही कुछ सियासी लोगों के दबाव में ले लिया, इसकी गुंजाइश बहुत दिखती नहीं।
मामले में बहुत जान होती या फिर सरकार और खुद पर ही आंच आने का जोखिम होता तो CBI को जांच सौंपने की सिफ़ारिश करने का वादा मुख्यमंत्री इस कदर आसानी से शायद ही करते। इतने दिनों में उन्होंने निस्संदेह इस मामले के अंदर-बाहर को ढंग से छान मारा होगा। CBI जांच होने पर उसके हर संभावित नतीजों और उसके असर का अध्ययन कर लिया होगा। अव्वल तो इस पर ही शक जताया जा रहा है कि सरकार चाहे तो भी शायद ही केन्द्रीय जांच ब्यूरो इसको हाथ में लेगी। प्रारम्भिक जांच में और अभी तक ये नकल का व्यक्तिगत मामला बन के ही सामने आया है। खुद आंदोलनकारी भी ऐसा कोई पुख्ता या कमजोर प्रमाण नहीं दे पाए हैं, जो ये साबित कर सके कि ये सुनियोजित माफिया संरक्षित और सरपरस्ती वाला Paper leak मामला है। जिसने नकल की वह और उसके समर्थक जेल में हैं। नकल में मदद का वादा करने वाली नई टिहरी की शिक्षक महोदया मु-अत्तल की जा चुकी है। ऐसे अन-उलझे केसों को पहले ही केसों के बोझ से दबी CBI अपने हाथों में तभी ले सकती है, जब HC या SC उसको आदेश करे। ऐसा मेरा खुद के अनुभव के आधार पर मानना है। ये मेरी खामोख्याली-बुद्धि जड़ता भी हो सकती है।
फर्ज करिए कि CBI जांच को हाथ में लेती भी है तो सरकार सीधे-सीधे सिर्फ नैतिक रूप से मामले में आती है। परीक्षा कराने का जिम्मा UKSSSC के पास है। सरकार उसको बुनियादी और जरूरी सुविधाएं-व्यवस्थाएँ उपलब्ध कराती है। सरकार सिर्फ एक Audio Recording की बिना पर उस हाकम सिंह को भी जेल में डाल चुकी है, जो पूर्व में Paper leak मामले में कुख्यात और दोषी पाया गया है। उसमें भी कुछ बहुत अहम कुछ सुनाई नहीं देता है। सिवाय उल्लू सीधा करने की कोशिश से जुड़ी आवाज के। अभी तक तो नकल मामले में हाकम सिंह की भूमिका भी नहीं दिखी है। लगता है इस बार वह मुफ्त में बेरहमी से मारा गया। इसलिए कहते हैं कि बद अच्छा,बदनाम बुरा। PSD ने आंदोलनकारियों के बीच जा के सिर्फ पाया है। खोया कुछ नहीं। विपक्षियों और प्रतिद्वंदियों को झटका दिया है। सियासी तौर पर कद में इजाफा करने के साथ ही आला कमान को आश्वस्त किया कि उत्तराखंड में उनको फिक्र करने की दरकार नहीं है। वह सरकार-BJP-संघ के Agenda को एक साथ चलाने में बेहद सक्षम नजर आए हैं।
उत्तराखंड देवी-देवताओं के वास के साथ ही दैवीय आपदाओं-कुदरती कहर की पसंदीदा धरती भी है। आपदा के चलते ही कभी Congress राज में CM रहे और अब BJP में विलीन हो गए विजय बहुगुणा, जो पुष्कर मंत्रिमंडल के सदस्य सौरभ के पिता हैं, आज तक दागी हैं कि आपदा राहत में खूब घपले-घोटाले हुए। आपदा राहत-बचाव का ढंग से संचालन नहीं कर पाए। पुष्कर उत्तराखंड के ऐसे वाहिद वजीरे-आला हैं, जो कुदरती आफत आने पर देहरादून के AC कक्ष या आवास से संचालन संभालते नहीं दिखते हैं। प्रभावितों के बीच फौरन पहुँच के उनके साथ ही ठहर के रात तक गुजारने से वह गुरेज नहीं करते। ऐसा कर के वे राहत-बचाव कार्यों को तेजी देने और लोगों में यकीन जगाने का काम भी करते हैं। सिल्क्यारा Tunnel में कामगारों के फंसने के दौर को याद कर सकते हैं। किसी CM को ऐसे कठिन हालात में सर्दी के बावजूद मौके पर ही तम्बू खींच के रातें गुजारने की मिसाल कब मिली? वे आखिरी कामगार के जिंदा-सुरक्षित निकलने तक वहीं रहे। धराली-थराली आपदा में भी वह मौके पर थे।
पुष्कर के लिए ये कहा जा सकता है कि मुसीबतों में घिर के निकलने के वह माहिर और ला-जवाब-हुनरमंद हैं। एक फिल्मी Dialogue है,`हार के जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं’। उत्तराखंड और BJP के संदर्भ में ये पुराना हो गया है। इसकी जगह नया Dialogue है। `फंसी बाजी जीतने वाले को पुष्कर सिंह धामी कहते हैं’। BJP के पास देश के अन्य राज्यों में भी ऐसा मुख्यमंत्री उपलब्ध नहीं है, जो संघ के धर्मांतरण-Land जिहाद और समान नागरिक संहिता (UCC) Agenda पर इतनी फुर्ती से अमल करे। 25 हजार सरकारी नौकरियाँ दे चुके हैं। एक के बाद के हर किस्म के छोटे-बड़े-आम-उप चुनाव में कमल के फूल को खिलाए रखा है। बाकी आलोचना के लिए सियासत में जगह सदा ही बनी रहती है और आलोचना जरूरी होती है।
आलोचना को सकारात्मक तौर पर लेने वाले इससे और निखरते हैं। PSD इसको भी निश्चित रूप से समझते हैं। वह उस ND तिवारी-भगत सिंह कोश्यारी परंपरा के हैं, जो मुख्यमंत्री रहने के दौरान विपक्षी दलों के लोगों का दिल अधिक जीतते थे। आज कई बार ऐसा महसूस होता है कि सरकार पर उतना कडक हमला नहीं हो रहा, जितना होना चाहिए तो ये मुख्यमंत्री की ही रणनीति और बर्ताव का नतीजा है, जो राजनैतिक तौर पर दुश्मनों को भी उन पर हमले से पहले सोचने को मजबूर कर देते हैं। आज इतना ही। कुछ बातें नौकरशाहों पर भी कहना चाहूँगा। जल्दी।