
Chetan Gurung
नेपाल में उम्मीदों और नए इतिहास का सूर्य आज सुबह उग आया। Gen-Z-युवा पीढ़ी-Students ने KP ओली सरकार एक दिन की अहिंसक क्रांति में ही पलट दी। वे और पूरा देश 73 साल की सुशीला कार्की को अन्तरिम PM बना के बेहद खुश नजर आ रहे। सरकारी कत्लोगारत-भीषण अराजकता के दौरान बेगुनाह किशोर-युवाओं के खून से सनी राजधानी काठमांडू की सड़कों को जब बारिश अपनी फुहारों से धो रही थी तो भारत के साथ अच्छे रिश्ते रखने की झलक पहले ही दिखा चुकीं नेपाल की पूर्व Chief Justice सितल निवास के सभागार में शपथ ले रही थीं। महाराजा ज्ञानेन्द्र शाह के पदच्युत होने के बाद 17 साल के भीतर पशुपतिनाथ-सागरमाथा के लिए विख्यात देश में 14वीं बार ये समारोह हुआ। जाहिर है कि राजनीतिक अस्थिरता हमारे पड़ोसी मुल्क में Mount Everest (सगरमाथा) की तरह शीर्ष चोटी पर है और जल्दी सुधार न हुआ तो ये प्यारा सा-जांबाजों की धरती तबाह हो जाएगा। फिलहाल ये मुहाने पर आ चुका है। ओली ने भारत के साथ जिस सांस्कृतिक-धार्मिक-रोजी-रोटी और बेटी के रिश्ते को तकरीबन ढहा दिया था, उसके अब फिर से उठ खड़े होने की उम्मीदें जाग उठी हैं।

Gen-Z आंदोलन के अगुवा सुदन गुरुंग (बाएँ हाथ जोड़े) के साथ शपथ ग्रहण समारोह के बाद नई मनोनीत PM सुशीला कार्की
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Gen-Z के साथ अन्तरिम PM सुशीला कार्की
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हामी नेपाल के संयोजक 36 साल के सुदन गुरुंग ने Gen-Z (1997 से 2015 के बीच जन्में) के साथ आंदोलन को शुरू किया था। इसकी परिणिति इतनी जल्दी इतने बड़े परिवर्तन के तौर पर सामने आएगी, इसकी कल्पना खुद इस NGO संचालक ने भी नहीं की होगी। पहले दिन ही 20 किशोरों की पुलिस गोलीबारी में नृशंस हत्या ने हालात को बेकाबू और पूरे देश को इसके खिलाफ एकजुट कर सड़कों पर उतार दिया था। ये ऐसी क्रान्ति रही, जिसमें युवा और किशोरों की बहुतायत होने के बावजूद एक भी हत्या गैर सरकार के पक्ष से हुई हो। Gen-Z और Students-युवाओं को सफलता 24 घंटे बीतते-गुजरते मिल गई थी। ओली ने बहुत घटिया राज चलाया और नेपाल को चीन की झोली में डालने की भरसक कोशिश की। भारत के साथ रिश्ते अपने उल-जुलूल बयानों और हरकतों से बिगाड़ने की कहीं कसर नहीं छोड़ी। भारत की तारीफ होने चाहिए कि उसने फिर भी संयम और संतुलन को कायम रखने और सही वक्त का इंतजार करने के विकल्प को चुना।
नेपाल के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर चौथी बार बैठे ओली का इस्तीफा इतनी जल्दी आ जाना और कई मंत्रियों का उनसे भी पहले राजीनामा दे के भाग जाना या फिर अंतर्ध्यान हो जाना वाकई हैरान करता है। निहत्थे और तकरीबन अधिकांश अहिंसक किशोरों-युवाओं-छात्रों के सामने उनका समर्पण जितनी जल्दी हुआ, उतनी देर में तो वास्तव में दावे के बावजूद Maggi भी नहीं पकती। 5 बार PM रहे शेर बहादुर देऊबा और उनकी परराष्ट्र मंत्री पत्नी आरजू राणा की पिटाई दहला देने वाली रही लेकिन सच ये भी है कि Gen-Z की आढ़ में कई असामाजिक तत्व आंदोलन में घुस आए थे। हमले-लूटपाट-आगजनी के लिए ज़्यादातर लोग ऐसे ही तत्वों को जिम्मेदार करार दे रहे। मंत्रियों को लात-घूसों से सड़कों पर पिटते और हाथ खड़े हो के आत्म समर्पण कर के पंक्तिबद्ध हो के जाते प्रहरियों को देखना अभूतपूर्व था। उनको नदी-नहरों में पत्थरों से मारा जा रहा था। ये भी तथ्य है कि उनको बचाने के लिए भी Gen-Z ही आगे आ रहे थे। देऊबा-आरजू-प्रहरी और कई मंत्री सिर्फ किशोरों के ढाल बन जाने से जान बचा पाए।
किशोरों-युवाओं को समझने के लिए इतना काफी है कि वे प्रहरियों के हथियार छोड़ के भाग जाने पर उनकी राइफल सेना को लौटा रहे थे। आगजनी-लूटपाट कर रहे लोगों को रोकते दिखे। जेल से भाग रहे कैदियों को पकड़ रहे थे। कैदी भी शांति होते ही जेलों में लौट आए। गज़ब का नजारा इस पड़ोसी मुलुक में हाल के हफ्ते में देखने को मिला। ओली-मंत्रियों के इस्तीफे हुए तो वे नजारे भी दिखे जब लूटे माल को लोग फिर वापिस ले आए। सड़कों पर उनको रख दिया। अराजकता और पुलिस गोलीबारी से गंदी सड़कों की साफ-सफाई करने उतरे। Tree Guard फिर से लगाए। ऐसा दुनिया में इससे पहले कहाँ देखा गया! सुदन गुरुंग ने आंदोलन की अगुवाई की। फिर भी कभी नहीं लगा कि वह खुद कुछ अपने लिए चाहते हैं। वह अन्तरिम PM नियुक्ति के लिए कभी काठमांडू के बहुचर्चित Mayor बालेन साह (मधेसी बौद्ध) तो कभी सेना के अफसरों और सुशीला कार्की से बात करते रहे। सुशीला पर आखिर सहमति बनीं।
सेना-बालेन और आंदोलनकारियों ने एक सुशिक्षित और कानूनविद भारत के प्रति सकारात्मक सोच और करीबी रिश्ता रखने वाली महिला को अगली सरकार के गठन तक के लिए सरकार की कमान सौंप दी। ये छिपा-ढंका तथ्य नहीं है कि ओली पर चीन का हाथ था। उनकी राजनीतिक मौत हो चुकी है। देऊबा और पूर्व में जितने भी PM रहे हैं, फिर से प्रत्यक्ष राजनीति करने के बारे में सोच भी लेंगे तो उनकी रूह फना हो सकती है। ये सब पर्दे के पीछे से भले राजनीति कर लें लेकिन उनका अब सार्वजनिक रूप से घूमना-फिरना भी बहुत मुश्किल होगा। पूंजीवाद और सत्ता के खिलाफ रक्त-रंजित माओबादी आंदोलन (20 हजार लोगों की जानें गईं) दशक तक चलाने के बाद 3 बार PM बने पुष्प कमल दहल `प्रचंड’ के जलाए गए घर में जब कैमरा पहुंचा तो US Dollor की गड्डियाँ और महंगी Scotch की बोतलें जली हुई पाई गईं।
प्रचंड और माओबादियों के तथाकथित समानतामूलक समाज और शासन की पोल-पट्टी नेपाल के लोगों और दुनिया के सामने खुल चुकी है। Gen-Z ने दिखाया कि वे मानववादी भी हैं। इंसानियत का मुजाहिरा भी किया। एक बड़ा राजनेता अपनी जान बचा के भाग गया और लकवा पीड़ित पत्नी को बंगले में ही आंदोलनकारियों के रहमोकरम पर छोड़ गया। युवाओं-किशोरों ने उसकी पत्नी को सुरक्षित निकाला। कुछ लोग ये भी कह रहे कि नेपाल के राजनीतिज्ञों ने फिर भी शर्म दिखाई। आंदोलन शुरू होते ही पद से इस्तीफे दे दिए। कुर्सी पर जमे नहीं रहे। ये सही है लेकिन उनको इसका भी भान हो गया था कि वे जितने ज्यादा दिन कुर्सी से चिपके रहेंगे, उतना उनके लिए खतरा बढ़ता रहेगा। प्रहरी सरकार की पिट्ठू की तरह काम कर रही थी लेकिन सेना ने प्रतिष्ठा-इज्जत बहुत कमाई। सेना ने आंदोलनकारियों के साथ सहानुभूतिपूर्ण रुख दिखाया।
PM-Ministers-पूर्व PM-राजनेताओं को हेलीकाप्टर के जरिये सुरक्षित निकाला। जेलों की व्यवस्था हाथ में ले ली। प्रहरियों को आंदोलनकारियों पर जुल्म और गोली चलाने से रोक दिया। अन्तरिम प्रधानमंत्री के चयन में Gen-Z-आंदोलनकारियों (पूरा देश साथ आ गया था) के साथ मिल के अहम भूमिका निभाई। Army Chief General अशोक सिगदेल चाहते तो मार्शल लॉं प्रशासक भी बन सकते थे। सुशीला कार्की के अन्तरिम PM नियुक्त होने में 2 बाधाएँ थीं। वहाँ के संविधान में भारत की तरह बिना MP बने भी PM बनने का प्रावधान नहीं है। अगर संसद कायम है। एक दिक्कत ये भी है कि Retire होने के बाद Supreme Court के Chief Justice या Justice किसी भी सरकारी ओहदे को ग्रहण नहीं कर सकते। संसद भंग कर पहले कांटे को निकाल दिया गया लेकिन दूसरे प्रावधान का क्या ईलाज निकाला, वह भी जल्दी सामने आ जाएगा।
वाराणसी में उच्च शिक्षा हासिल करने वाली सुशीला को अपने फैसलों के चलते सरकार की नाराजगी का शिकार होने वाली CJN के तौर पर जाना जाता है। ये संयोग है कि अब वह खुद सरकार और देश चलाएंगी। अन्तरिम ही सही लेकिन PM की कुर्सी पर बैठने वाली वह देश की पहली महिला हैं। भारत के लिए उनका नियुक्त होना, बहुत शुभ साबित होगा। दोनों देशों की बीच बिगड़े रिश्ते फिर पटरी पर आने की पूरी उम्मेद है। मोदी सरकार की तारीफ की जानी चाहिए कि उसने नेपाल के मामले में सियासी तौर पर बहुत संवेदनशील और परिपक्व रुख का प्रदर्शन किया। रिश्तों को अपनी तरफ से खराब होने देने की कोई कोशिश नहीं की। नेपाल में आज अगर भारत विरोधी रुख अधिक है तो उसके लिए ओली सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। नेपाल के ताजा हालात और राजनीतिक घटनाक्रम से चीन को निस्संदेह झटका लगा है। नेपाल अब भारत के फिर करीब आएगा। दोनों देशों के बीच की बिखरी कड़ी फिर जुड़ने की पूरी उम्मीद है। सुशीला ने शपथ लेने से पहले ही बोल दिया था कि उनको भारत के PM नरेंद्र मोदी बहुत पसंद हैं। RSS के मोहन भागवत से भी अच्छे संबंध हैं।
नेपाल से हमको क्या सबक लेना चाहिए? किसी भी देश या राज्य के लिए राजनीतिक स्थिरता कितनी अहम होती है,ये खुल के पता चल रहा है। स्थिर और सुदृढ़ सरकार होती तो मेहनतकशों-वीरों और ईमानदारों की धरती के तौर पर दुनिया भर में पहचाने जाने वाला नेपाल राजशाही के दौर से भी बहुत पीछे न चला जाता। स्थिर सरकार में बड़े और अहम फैसले होते हैं। उत्तराखंड भी पुष्कर सिंह धामी के CM बनने से पहले घनघोर राजनीतिक अस्थिरता का मिसालयुक्त शिकार था। इसने गुजरे 20-21 सालों में राज्य के विकास के पहिये को या तो ब्रेक लगाए रखा या फिर पंक्चर किया। इतना कि यहाँ के लोग अवसाद और रोष के भाव का शिकार हो गए थे। सरकार चाहे BJP की रही हो या फिर Congress की। एक जैसा आलम रहा। मोदी-शाह ने दृढ़ यकीन दिखाया और आशीर्वाद दिया तो PSD ने कई ऐसे-ऐसे फैसले लेने का हौसला दिखाया, जिसको पहले केंद्र सरकार ने फिर अन्य राज्यों ने भी अपनाया।
उम्मीद की जानी चाहिए कि अब नेपाल में राजनीतिक स्थिरता का माहौल बनेगा और सुशीला की अगुवाई में अन्तरिम सरकार देश का विकास और भारत के साथ पुराने-खूबसूरत रिश्तों को फिर जल्दी बहाल करेगी। दोनों देशों के रिश्ते सिर्फ रोजी-रोटी-बेटी तक ही सीमित नहीं हैं। सुगौली संधि के चलते दोनों देशों के लोग एक-दूसरे के यहाँ रोजगार-व्यवसाय कर सकते हैं। बिना पासपोर्ट-Visa के आ-जा सकते हैं। खुली सीमाना हैं। Indian Army में भर्ती हो सकते हैं। नेपाल के सैकड़ों-हजारों नौजवानों ने भारत के लिए समर भूमि में या फिर आतंकवादियों का समूल नाश करने के Operations में शहादतें दी हैं। Operation Blue Star-Operation Vijay-Operation Rakshak-Operation Pawan में भारत के लिए परमवीर चक्र-अशोक चक्र-महावीर चक्र-कीर्ति चक्र-वीर चक्र-शौर्य चक्र जीते हैं। खेलों में भारत को Olympics-World Championship-Asian Games में गौरव के पल दिए हैं।
Victoria Cross (Britain का सर्वोच्च वीरता पदक) विजेता गजे घले के सामने 1947 में British फौज ने विकल्प रखे थे। अपने मूल देश नेपाल चले जाएँ या फिर उसके साथ Britain की फौज में रहें। तीसरा विकल्प ये दिया कि भारत की सेना में रहें। घले ने तीसरे विकल्प को ये कहते हुए चुना कि उनका देश अब भारत है। वह उत्तराखंड आंदोलन में बढ़-चढ़ के हिस्सा लेते रहे। अल्मोड़ा में उनके नाम पर छावनी क्षेत्र में Park है। वह साल-2000 तक जीवित रहे। ये विडम्बना है कि उत्तराखंड में सरकार और समाज उनके बारे में या तो जानती नहीं या फिर उनको सम्मान के लायक नहीं मानती। उनके नाम पर कोई सरकारी योजना या Award हो सकता था। `जन-गण-मन अधिनायक जय है’ राष्ट्रगान और `कदम-कदम बढ़ाए जा’ की अमर धुन बनाने वाले गोरखाली राम सिंह ठकुरी ने देश की आजादी के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस की INA में रह के बरतानवी हुकूमत के खिलाफ आजादी की जंग लड़ी।
Mount Everest को एडमंड हिलेरी के साथ फतह करने वाले तेनजिंग नोर्के भी नेपाल के थे। बाद में दार्जिलिंग बस के भारतीय हो गए। उनको दोनों देशों के लोग अपना मानते हैं। शहीद दुर्गा मल्ल भी ऐसे ही गुमनाम नायकों में हैं। देहरादून के डोईवाला में जन्मे गोरखाली दुर्गा पहले ब्रिटिश फौज में भर्ती हुए। दूसरे World War में जापानियों के हाथों बंदी बने। वहाँ सुभाष चन्द्र बोस के आह्वान पर INA से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ युद्ध में उतरे। फिर युद्ध बंदी बने। मौत की सजा पाई। उनकी कहानी बेहद प्रेरणादायी है। उनके आगे ब्रिटिश सरकार की तरफ से विकल्प रखा गया। माफी मांगे कि भारत की आजादी के लिए फिर कभी नहीं लड़ेंगे। ये बोले कि उनको बहकाया गया था। ऐसा करते हैं तो उनको छोड़ दिया जाएगा और फिर से फौज में ले लेंगे।
इस नौजवान वीर ने माफी पर लाल किला में फांसी के फंदे को चूमने का विकल्प चुना। ये दुर्भाग्य है कि देश में इस जाँबाज का जिक्र कहीं नहीं किया जाता है। सिर्फ देहरादून में साल में एक उनकी जयंती मनाई जाती है। नेपाल के अधिकांश राष्ट्रपति और प्रधानमंत्रियों ने भारत में उच्च शिक्षा पाई। साल-2001 में नेपाल शाही परिवार नर संहार में कत्ल की गई राजकुमारी श्रुति शाह ने Mayo College,अजमेर से पढ़ाई की। नेपाल की तमाम राजकुमारियों की शादी हिन्दुस्तानी राज परिवार में हुई हैं। टिहरी की माहारानी माला राज्यलक्ष्मी भी शादी से पहले नेपाल के राणा परिवार की राजकुमारी थीं। साल-1951 में राणा शासन के खिलाफ नेपाली Congress की अगुवाई में जनक्रान्ति हुई तो उस वक्त के नेपाल नरेश ने भारत में ही शरण ली थी।
नेपाल में रामबरन यादव राष्ट्रपति और परमानंद झा उप राष्ट्रपति और CJN बने। जिस Mayor बालेन का इन दिनों जलवा है, वह भी मूल रूप से बिहारी बौद्ध है। तमाम भारतवंशी नेपाल में मंत्री और अन्य उच्च सरकारी ओहदों पर हैं। दोनों देशों के नेताओं को ये समझना होगा। मिल के चलेंगे तो दोनों का नफा होगा। भारत के लिए अच्छा ये होगा कि वह नेपाल को चीन की गोद में बैठने से रोक सकेगा। नेपाल को तो भारत के साथ मिल के फायदा ही फायदा है। वह ये भी नहीं भूलेगा कि नेपाल के एक लाख से ज्यादा नौजवान Indian Army-Para Military Force और State Police में हैं। दोनों देशों के पास आपस में रिश्ते बिगाड़ने का विकल्प है ही नहीं। ओली समझ नहीं पाए। दफा हो गए। अच्छा हुआ। उम्मीद करें कि नेपाल की नई निर्वाचित सरकार भी सुशीला सरकार की सोच को आगे बढ़ाएगी। भारत-नेपाल मैत्री जिंदाबाद!अमर रहे!
 
					


