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मोदी-शाह की `पुष्कर’ को तवज्जो यानि उत्तराखंड की Branding-सियासी स्थिरता! 360 Degree वाले पहले CM

The Corner View

Chetan Gurung

PM नरेंद्र मोदी और देश के गृह मंत्री अमित शाह देवभूमि और इसके युवा CM पुष्कर सिंह धामी को तवज्जो देते हैं और खूब देने में यकीन रखते हैं। गाहे-बागाहे इसको सब देखते रहते हैं और जानते हैं। देश के जब 2 सर्व शक्तिमानों की नजरें इनायत हो तो उसका फायदा हर किस्म से मिलना स्वाभाविक है। संघ में भी वह प्रिय की श्रेणी में है। मोदी राज में केंद्र सरकार से चीन और नेपाल से सटे सबसे नए नवेले हिमालयी राज्य को Extra Budget-Projects और हर किस्म की इमदाद और मदद हमेशा फौरन मिल मिल रही। सबसे बड़ा पहलू ये है कि सियासी अस्थिरता के लिए कुख्यात राज्य और BJP दोनों को ही स्थिरता हासिल हो गई है। विकास के लिए ये बेहद अहम Factor होता है। Double Engine सरकार होने का ये सामान्य फायदा है। हकीकत है कि PSD ने खुद को कामकाज के मामले में All Rounder और 360 Degree (चारों तरफ देखने वाला) CM के तौर पर स्थापित करने में काफी मेहनत कर दिखाई है।

CM पुष्कर सिंह धामी को PM नरेंद्र मोदी के साथ ही HM अमित शाह के भी चहेतों में शुमार किया जाता है।

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पुष्कर ने हर वह कदम सफलतापूर्वक और रफ्तार के साथ उठाए हैं, जो मोदी-शाह के साथ ही संघ को भी अच्छा लगता है। देश के चर्चित चंद मुख्यमंत्रियों और BJP की नई पांत के प्रमुख चेहरों में पुष्कर को शुमार किया जाता है। कुदरती-नैसर्गिक सौंदर्य से सजे खूबसूरत ऊंचे-हरे-भर पहाड़-सेब के बागानों और बुग्यालों-गंगा-यमुना-भागीरथी-अलकनंदा-शारदा नदियों के वरदान से समृद्ध उत्तराखंड को दुनिया छोड़ दें, देश के नक्शे में भी आने में कम से कम 2 दशक लग गए। सरकार चाहे BJP की रही हो या फिर Congress गठबंधन की, अपने स्वाभाविक-प्राकृतिक खज़ानों को विकसित करने, उनकी Branding कर राज्य और लोगों के आर्थिक विकास की दिशा में आगे बढ़ाने पर उनका ध्यान क्षणिक रहा या फिर नजर अंदाज करते रहे।

Chetan Gurung

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हर सरकार और मुख्यमंत्री सियासी झंझावातों से जूझता रहा। मुख्यमंत्री कोई भी रहे, कुर्सी बचाने में ही ताकत लगाते रहे। डॉ रमेश पोखरियाल निशंक और BC खंडूड़ी को तो मुख्यमंत्री रहने के दौरान बगावत के चरम और फैसलाकून हो जाने की भनक तक नहीं थी। जिस दिन निशंक की गद्दी गई, उस दिन वह अपने महत्वाकांक्षी अंत्योदय यात्रा पर टिहरी गए थे। मुझे ये इसलिए याद है कि जाने से पहले मेरी और उनकी मुलाक़ात सचिवालय में हुई थी। दिन रविवार था शायद। सच ये है कि मैं उनसे सुबह के करीब मिलने के बाद उस वक्त के BJP प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल से मिलने यमुना कॉलोनी उनके घर गया था।

वहाँ 3 घंटे उनके साथ रहा। उनको भी कोई अंदेशा सियासी उथल-पुथल का नहीं था। न मुख्यमंत्री और न प्रदेश अध्यक्ष को ये ही मालूम था कि दिल्ली में दोपहर को उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन पर बैठक भी चल रही। मुझे दिल्ली से एक बड़े TV News Channel के Senior पत्रकार ने दिन में फोन पर बताया कि उत्तराखंड में निशंक फारिग कर दिए गए हैं और खंडूड़ी की विधानसभा चुनाव (साल-2012) से 6 महीने पहले बतौर CM वापसी हो गई है। मैंने फौरन निशंक और चुफाल से फोन पर बात की थी। दोनों ने इस पर अनभिज्ञता जताने के साथ ही इस खबर को अविश्वसनीय भी करार दिया था। थोड़ी देर बाद हालांकि दोनों को सच्चाई पता चल गई थी।

संयोग है कि निशंक ने खंडूड़ी के विदा होने पर उनकी कुर्सी संभाली थी। साल-2007 में CM बनने से पहले से ही खंडूड़ी बनाम भगत सिंह कोश्यारी-निशंक-केदार सिंह फोनिया-हरबंस कपूर संघर्ष चुनाव जीतने की सूरत में मुख्यमंत्री बनने के लिए छिड़ा हुआ था। बाजी BCK ने मारी लेकिन वह कभी चैन से नहीं रह पाए। विरोधियों ने हमेशा उनकी नाक में दम किया। उनके पास वफ़ादारों का बहुत छोटा सा दस्ता था। इसमें अनिल गोयल और दिवंगत उमेश अग्रवाल का नाम सबसे आगे रहता था। खंडूड़ी को ख्वाब में भी इल्म नहीं था कि उनके खिलाफ बगावत इतनी बड़ी हो सकती है कि उनकी कुर्सी ही चली जाए। उनका आला कमान (आज के मोदी-शाह जैसा नहीं) पर अत्यधिक भरोसा उनको ले डूबा। मरियल Intelligence (LIU-Special Branch) और IB के साथ दोनों का कमजोर रिश्ता उनको सच्चाई से बाखबर रहने से दूर रखता रहा।

साल-2009 में जब लोकसभा चुनाव घोषित हुए तो खंडूड़ी के विरोधियों ने योजनाबद्ध ढंग से BJP को 5 की 5 Seats पर हरवा दिया। इसके बाद High Command के पास BCK विरोधी लगातार ये संदेश भेजते रहे कि नेतृत्व परिवर्तन न किया गया तो BJP विधानसभा चुनावों में भी डूब जाएगी। एक रात (शायद पौन 10 बजे)  कमल के फूल वाले 2 MLAs ने मुझे फोन पर कहा कि वे दिल्ली में हैं। खंडूड़ी के खिलाफ बगावत हो गई है। बड़ी खबर मिल सकती है आपको। तकरीबन 29 असंतुष्ट या नाराज MLAs दिल्ली पहुंचे हुए हैं। आला कमान से मिल के BCK को हटाने की मांग ले के। मैंने मुख्यमंत्री को फोन कर उनकी इस पर प्रतिक्रिया पूछी। उन्होंने जवाब देने के लिए ये कहते हुए वक्त मांगा कि उनकी जानकारी में ऐसा कुछ नहीं है। फिर कुछ देर बाद उन्होंने ये कहा कि उन्होंने मालूम कर लिया है सभी विधायक अपने क्षेत्रों में हैं। देर रात तक तख़्ता पलट की Script को आला कमान ने भी हरी झंडी दे दी थी।

खंडूड़ी के साथ ही फिर कुछ ऐसे बड़े चेहरों ने बाद में निशंक के खिलाफ खामोश सियासत कर दी, जो खुद मुख्यमंत्री नहीं बन पाए और निशंक ने भी मुख्यमंत्री बनने के बाद उन सहयोगियों को तवज्जो नहीं दी थी। साल-2017 में BJP की सत्ता में वापसी होने पर त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने सबसे करीबी प्रतिद्वंद्वी प्रकाश पंत (अब दिवंगत) को पीछे छोड़ के CM की कुर्सी संभाली। त्रिवेन्द्र निजी तौर पर बहुत अच्छे और सरल थे लेकिन नौकरशाही पर अति निर्भरता और अंदरूनी सियासत उनको उस वक्त ले डूबी, जब ये तय लग रहा था कि वह कार्यकाल पूरा करेंगे। वह 4 साल पूरा होने से कुछ दिन पहले अचानक दिल्ली बुला लिए गए। फिर घनघोर Covid-19 के दौर में तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बने। उन पर 4 महीने में ही Flop का तमगा लग गया। उनकी जगह पुष्कर को CM बना के मोदी-शाह ने BJP को 8 महीने बाद होने वाले Assembly Elections में फतह दिलाने का अविश्वसनीय जिम्मा सौंप दिया था। पुष्कर कभी राज्यमंत्री तक नहीं रहे थे। PM-HM को उनकी क्षमता-काबिलियत पर लेकिन भरपूर विश्वास था।

पुष्कर जब मुख्यमंत्री बने तो उनके पास न सिर्फ सरकार चलाने के अनुभव का खाली थैला था बल्कि मुख्यमंत्रियों से नाराज अवाम और कोरोना मौतों के चलते BJP एकदम बैठ चुकी थी। उत्तराखंड का सियासी इतिहास भी किसी सरकार के लगातार 2 बार बने रहने के उलट था। PSD की अगुवाई में BJP ने सरकार और अधिक सीटें जीत के बनाई। उत्तराखंड सियासत में नया इतिहास लिखा गया। घर के विभीषणों-जयचंदों-मीर जाफरों ने खटीमा के चुनाव में उनको हरवा दिया। मोदी-शाह तक सभी खबर थी। उन्होंने PSD की शानदार ढंग से फिर ताजपोशी बतौर मुख्यमंत्री कर दी। सभी को भौंचक्का और विरोधियों को जबर्दस्त झटका देते हुए।

मुझको हालांकि यकीन था कि चुनाव हार जाने के बावजूद BJP की सत्ता में वापसी कराने का अभूतपूर्व कारनामा करने वाले  PSD को ही मोदी-शाह पारितोषिक दे सकते हैं। दोनों की कार्य शैली परंपरागत लीक से हट के होने और पुष्कर का लाजवाब चुनावी प्रदर्शन इस विश्वास का ठोस कारण था। मैं ये सब अपने Column-Stories में लिखता भी रहा। बेशक खुद BJP के कई लोगों और पत्रकार साथियों-नौकरशाहों ने भी मुझे कहा कि हार गए शख्स को आप मुख्यमंत्री की दौड़ में कैसे लिख सकते हैं। मैं अधिकांश मौकों पर सिर्फ लिख के बताता रहा। बोला कम। पुष्कर का नाम जब मुख्यमंत्री के तौर पर सार्वजनिक हुआ भी नहीं था लेकिन भनक लग चुकी थी, तो उनमें से कई लोगों ने मुझे मेरे विश्लेषण के लिए बधाई दी। कुछ ने तो पुष्कर CM बनने की भी निजी बधाई दे डाली।

पुष्कर की तुलना कुछ लोग उत्तराखंड के सबसे सुलझे और बेहतरीन CM रहे नारायणदत्त तिवारी से भी करने लगते हैं। मैं इस पर ये राय रखता हूँ कि दोनों अलग-अलग दौर में और बहुत वक्त के अंतर से मुख्यमंत्री बने। NDT के दौर में उनकी आलोचना करने के लिए सिर्फ अखबार और News Channels थे। आज की तरह घातक-मारक-शक्तिशाली Social Media का जन्म भी नहीं हुआ था। उनके कार्यकाल में दारोगा-पौड़ी का पटवारी-होम्योपैथिक चिकित्सक भर्ती घोटाला हुआ। Sidcul-Eldeco जमीन घोटाला-जल विद्युत परियोजना और तमाम अन्य छोटे-बड़े घोटाले हुए। Police Headquarter पर CBI ने Raid मारी थी। दारोगा भर्ती घोटाले पर।

बहुचर्चित जैनी Sex Scandal सामने आया था। इसमें उस वक्त के मंत्री डॉ हरक सिंह रावत की कुर्सी चली गई थी। डॉ रावत ने विधानसभा में आँसू भरे चेहरों के साथ खुद को बेगुनाह और सियासत का शिकार बताते हुए Cabinet से इस्तीफे का ऐलान किया था। बाद में वह बेकसूर साबित हुए। NDT को UP और भारत सरकार से Trained-दक्ष अनुभवी IAS-IPS-IFS अफसरों की जमात मिली थी। उनमें खुद सरकार चला लेने की कुव्वत हुआ करती थी। अजय विक्रम सिंह सबसे पहले उत्तराखंड के Chief Secretary बने थे। वह देश के रक्षा सचिव बने। मधुकर गुप्ता उनकी जगह Chief Secretary बने और वह देश के Home Secretary बने। डॉ रघुनंदन सिंह टोलिया-M रामचंद्रन-सुरजीत किशोर दास-इन्दु कुमार पांडे-नृप सिंह नपल्च्याल-विभा पुरी दास-विजेंद्र पाल-सुभाष कुमार-S कृष्णन-केशव देसीराजू-आलोक जैन-N रविशंकर-राकेश शर्मा-शत्रुघ्न सिंह को उस दौर में जबर्दस्त अफसरों में शुमार किया जाता था। ईनमें अधिकांश CS तक या फिर भारत सरकार में सचिव तक बने।

केंद्र सरकार में भी कई दिग्गज उत्तराखंड Cadre के थे। सभी बेहतरीन अफसर और अवाम का दिल भी लुभाने वाले किस्म के सुलझे नौकरशाह हुआ करते थे। IPS अफसरों में जरूर उत्तराखंड की तकदीर उतनी अच्छी साबित नहीं हुई। AK शरण (राज्य के पहले DGP) की Extension को ले के उस वक्त के प्रमुख सचिव (गृह) सुरजीत किशोर दास से ठन गई थी। उनके बाद आए पूर्व Army Officer प्रेमदत्त रतूड़ी Emergency Commission वाले IPS थे। वह दारोगा भर्ती घोटाले में CBI के फंदे में घिर के हटाए गए। बेहद संभावनशील समझे जाने वाले राकेश मित्तल इसी घोटाले में Suspend हो गए थे। दिवंगत कंचन चौधरी भट्टाचार्य देश की पहली महिला DGP बनीं। वह सीधी-सरल और बेहद सहज महिला थीं। वह मेरे घर कुछ मौकों पर तब बिना बताए भी आईं जब मैं नहीं हुआ करता था। वह और दास एक ही साल (1973) IPS-IAS सेवा में आ थे। इसके बावजूद मैंने उनको दरवाजे से ही हमेशा पूछ के ही दास के दफ्तर में आते देखा।

1976 Batch वाले DGP सुभाष जोशी की शासन में नहीं बनती थीं और उनसे एक Batch Senior आलोक बिहारी लाल को शासन ने DGP नहीं बनाया। DGP बने ज्योति स्वरूप पांडे को IPS में IAS सुरजीत दास की Copy उनके चरित्र और बर्ताव के मद्देनजर समझा जा सकता था। उनके बाद कुछ अच्छे तो कुछ बहुत खराब किस्म के DGP आए। DGP बने M गणपति लेकिन वाकई काबिले तारीफ थे। वह जल्द ही भारत सरकार चले गए। उनकी कम उम्र-अनुभव-काबिलियत उनको IB-RAW Chief के लिए उपयुक्त बनाती थी लेकिन NSG Chief से Retire हुए। आज अंगुली में गिने जाने की संख्या में NDT काल के नौकरशाहों की तरह IAS-IPS अफसर पुष्कर सरकार में हैं। मुख्यमंत्री को इसके चलते प्रशासनिक फेरबदल करने में भारी दिक्कत होती है। NDT के पास विकल्पों की भरमार थी और आज विकल्पों की कमी का संकट है। आज तमाम अफसर सरकार के लिए सिर दर्द किस्म के हैं। उनकी प्रतिष्ठा बहुत खराब या फिर धूमिल हैं। मजबूरी के चलते पुष्कर उनसे भी काम ले रहे हैं। यह भी कम गौर करने वाली बात नहीं।

PSD को आप हर दिन और हर वक्त कुछ न कुछ करते (बाढ़-भू स्खलन प्रभावित इलाकों-बड़े Projects स्थलों का दौरा-आला अफसरों की बैठक-VC-प्रमुख कार्यक्रमों में शिरकत करते-केंद्र सरकार के मंत्रियों और सबसे ऊपर PM मोदी-HM शाह से मिलते) पाएंगे। सिल्क्यारा Tunnel में मजदूर फंस गए थे तो वह वहीं डेरा डाल के तब तक बैठ गए थे, जब तक सभी सुरक्षित नहीं निकाल लिए गए। पूर्व के अधिकांश मुख्यमंत्रियों को आम तौर पर देहरादून में या फिर अपने आवास और सचिवालय में ही देखा जा सकता था। कोश्यारी जुदा किस्म के थे लेकिन वह अन्तरिम सरकार के CM थे। वह आज भी कार्यकर्ताओं के चहेतों में हैं। PSD भी उनको बेहद सम्मान देते हैं।  PM-HM रह-रह के उत्तराखंड और बद्रीनाथ-केदारनाथ आना पसंद करते हैं। अब आदि कैलाश और उत्तरकाशी भी फ़लक पर आ गए हैं। PSD उधर भी व्यस्त रहते हैं।

बड़े कानून और कदम (UCC-नकल विरोधी-Land Law-धर्मांतरण-महिलाओं-खिलाड़ियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण) वह ले आए। 1 लाख करोड़ रूपये के निवेश की Grounding कराने में कामयाब रहे। 3.5 लाख करोड़ रूपये के निवेश का करार देश-दुनिया के बड़ी कंपनियों से हुआ है। इसका फायदा राज्य और यहाँ के लोगों को प्रत्यक्ष-परोक्ष तौर पर मिलना ही है। National Games को आयोजित करने का कारनामा कर दिखाया। Medals भी उत्तराखंड ने 100 के पार पहली बार जीते। Uttarakhand Olympic Association-IOA ने सरकार का कंधे से कंधा मिला के साथ दिया तो इसकी वजह भी मुख्यमंत्री थे। पुष्कर की हर काम में तेजी-सियासी परिपक्वता और मोदी-शाह के प्रति निष्ठा और वफादारी साफ दिखाई देती है। वह Phantom (Popular Worldwide Hero) की तरह हर जगह पलक झपकते नजर आते हैं। BJP को एक के बाद एक चुनाव जितवा के तोहफे देते रहे हैं। बेशक ये संयोग हो लेकिन वह जहां भी प्रचार करते हैं, वहाँ BJP का Victory Strike Rate बहुत High रहता है।

अपने अंदाज (गाँव-पहाड़ के आम लोगों और बच्चों में भी घुलमिल जाना) और फैसले लेने में तेजी उनको तमाम पूर्ववर्तियों से अलग बनाती है। देश भर के BJP शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों में पुष्कर की गिनती उनमें की जाती है, जो सिर्फ PM-HM के खास नहीं हैं बल्कि केंद्र सरकार में उनकी गुजारिशों और अनुरोधों पर Positive कार्यवाही जरूर होती है। सियासी विश्लेषक PSD को BJP की नई लहलहाती तेजी से बढ़ती पौध के तौर पर देखने से गुरेज नहीं करते हैं। आला कमान ये भी देखता है कि उत्तराखंड में विपक्षी दलों को भी साधने में उनके युवा मुख्यमंत्री काफी हद तक कामयाब हैं। BJP को जो दिक्कत और झंझावातों का सामना अन्य राज्यों में करना पड़ रहा है, उससे वह पुष्कर के राज्य में मुक्त है।

भ्रष्टाचार पर सरकार का डंडा जिस तेजी और सख्ती से पड़ रहा, उससे भी सरकार की छवि पुख्ता हुई है। ऐसा पहली बार है कि भ्रष्टाचारी अफसर-कर्मचारी जेल जा रहे। Vigilance महकमे को Free Hand दिया गया है। इसके Chief V मुरुगेशन को बनाया गया है, जो 1997 Batch के IPS हैं। उनकी छवि जबर्दस्त है। पुष्कर की एक खासियत निजी तौर पर देखी जा सकती है। उनके संघर्ष या गुजरे दिनों के अधिकांश सहयोगियों-मित्रों-नौकरशाहों का वह भरपूर ख्याल रखते हैं। कुर्सी के साथ बदल नहीं गए। कई नौकरशाह और BJP के छोटे-मोटे अंजान किस्म के कार्यकर्ता भी इसके चलते अहमियत पा रहे हैं। ये गुण हर किसी में दिखाई नहीं देता है।

 

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