
Chetan Gurung
BJP सरकारों की कई बार तीखी आलोचना इस लिए भी होती है कि उसके राज में धर्म विशेष के लोगों को निशाने पर लिया जाता है, के आरोप चस्पा होते रहे हैं। ये भी कि हिंदुओं के हर किस्म के कर्म कांडों को सरकारी स्तर पर भी बर्दाश्त किया जाता है। UP-MP-राजस्थान में इसकी मिसालें भी सामने आईं। वहाँ के मुख्यमंत्रियों और BJP सरकार को इसके लिए विपक्ष से खुल के आक्षेप सहने पड़ते रहे हैं। Social Media में भी खूब प्रहार सरकार पर होते हैं। इस मामले में CM पुष्कर सिंह धामी अलग और विशेष नजर आ रहे। उनको धर्मरक्षक की प्रतिष्ठा और ख्याति हासिल हो रही है। वह पौराणिक स्थलों और खास तौर पर 4 धाम के विकास-प्रचार में बढ़-चढ़ के हिस्सा लेते रहे हैं। इस मामले में वह सही माने में PM नरेंद्र मोदी और संघ के कट्टर अनुयायी कहे जा सकते हैं। उन्होंने अवैध मजारों पर JCB चलाने में गुरेज नहीं किया और धर्मांतरण के महा रोग पर सख्त अंकुश लगा दिया। सरकारी भूमि को अवैध कब्जे से मुक्त कराते जा रहे। इस सबके बावजूद उन्होंने हाल ही में दो अहम कदम उठाए हैं, जिसकी तारीफ उनके आलोचक और कथित तटस्थ विचारधारा से जुड़े लोग भी करने में नहीं हिचक रहे। इनमें एक Operation `कालनेमी’ और दूसरा काँवड़ उठा के बेवजह तांडव करने वालों पर पुलिस सख्ती में कसर न छोड़ना प्रमुख है।
Operation कालनेमी वाकई कमाल का अभियान शामिल हो रहा। सैकड़ों ऐसे ढोंगी-पाखंडी लोग साधु-फकीर वेश में पुलिस के हत्थे चढ़ रहे, जो पूरी तरह संदिग्ध पाए जा रहे। कईयों की नागरिकता भारतीय नहीं हैं तो कई हिन्दू ही नहीं हैं। उनकी पृष्ठभूमि की आपराधिक इतिहास के नजरिए से भी जांच-छानबीन की जा रही। कई फकीरों को भी पुलिस ने फंदे में लिया है। सरकार की मंशा पर अंगुली नहीं उठाई जा सकती है। ये नहीं कहा जा सकता है कि धर्म विशेष के लोगों पर ही कार्रवाई की जा रही है। हकीकत जुदा है। पकड़े गए अधिकांश हिन्दू हैं। इस मामले में पुलिस और सरकार कोई ना-इंसाफ़ी किसी धर्म विशेष के खिलाफ नहीं कर रही है। जो है, जैसा है के आधार पर कार्रवाई की जा रही। माने कि जो पाखंडी और ढोंगी है, वह धर-दबोचा जा रहा। लोगों को उनके चंगुल में फँसने से सरकार रोक रही।
Chetan Gurung
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Operation कालनेमी के बाबत ये कहा जा सकता है कि PSD को शुरू से ही चौंकाने और बड़े कारनामों के लिए सुर्खियां मिलती रही हैं। ये उनकी Identity बन चुकी है। चाहे वह BJP को विकट और पस्त हालात के बावजूद लगातार दूसरी बार Assembly Elections जितवा के सरकार में लाना हो या फिर UCC-नकल विरोधी कानून-भ्रष्टाचारियों को जेल में ठूँसना-IAS-IFS और सियासतदाँ को भी न बख्शना या फिर सरकारी ज़मीनों पर अवैध कब्जों को हटाना-धर्मांतरण को सख्ती से रोकने का फैसला हो। उनके अधिकांश फैसलों ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खूब चर्चाएँ-तारीफ़ें लूटी हैं। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और कई राज्यों की सरकारों ने भी पुष्कर सरकार की नीतियों को अपनाने का ऐलान किया या फिर इनसे सहमति जताईं।
दो राय नहीं कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को मोदी और शाह के साथ ही संघ के सबसे वफादार-भरोसेमंद में उनकी काबिलियत के चलते शुमार किया जाता है। अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए मोदी तो दूर, केंद्र सरकार में Number-2 और संगठन के असली कमान धारी अमित शाह से मिलना भी टेढ़ी खीर साबित होता है। पुष्कर को मोदी से मिलने में कभी दिक्कत नहीं आती है। उनको BJP मुख्यमंत्रियों में PM-HM का Blue Eyed Man माना जाता है। पुष्कर अपनी धर्म रक्षक की छवि को निखारने में कमी नहीं छोड़ते हैं लेकिन उनकी तारीफ इस लिए भी हो रही कि वह इन दिनों काँवड़ यात्रा पर हरिद्वार आए और लौटने वालों का तब कोई लिहाज नहीं कर रहे, जब वह हुड़दंग पर या फिर कानून-व्यवस्था को हाथ में लेने पर उतर रहे।
कांवड़ियों को सरकार से भरपूर सुविधा और सम्मान दिया जा रहा है। इसके चलते कुछ को ये गलत फहमी शायद हो रही कि उनकी हर किस्म की हुड़दंग बाजी और हरकतों को पुलिस-प्रशासन नजर अंदाज कर देगा या फिर उनका साथ देंगे। शायद उत्तराखंड में BJP की सरकार होने के चलते वे ये सोच रहे हों। काँवड़ यात्रा के दौरान आम लोगों और कारोबारियों को हमेशा कांवड़ियों के क्रोध और हरकतों-हुड़दंग का खौफ रहता रहा है। काँवड़ खंडित होने का शोर एक बार उठ आए तो कानून-व्यवस्था को संभालना आसान नहीं रह जाता है। इस बार सरकार ने साफ संदेश पुलिस और प्रशासन को दिया है। कांवड़ियों को भरपूर सम्मान दिया जाए लेकिन कानून-व्यवस्था के साथ कोई समझौता न किया जाए।
अधिकांश कांवड़िए, जिनको श्रद्धा के अलावा कोई सरोकार किसी अन्य से नहीं, वे खामोशी से आ रहे,लौट रहे। इसके इतर ऐसे मामले भी सामने आ रहे, जिसमें कांवड़ियों ने किसी न किसी बहाने बरपूर धमाल मचाया। हरिद्वार में तहसीलदार की सरकारी गाड़ी पर हमला तक बोल दिया। एक महिला की दुकान भी उनके गुस्से का शिकार बनी। कांवड़ियों की ऐसी हरकतों पर मुख्यमंत्री बर्दाश्त नहीं कर रहे। उन्होंने इन पर सख्ती से अंकुश लगाने का आदेश प्रशासन और पुलिस को दिया हुआ है। इसका असर आए दिन Social Media में बखूबी दिख रहा है। कानून-व्यवस्था से खिलवाड़ करने वालों को सख्ती से समझाया जा रहा है कि वे खामोशी से धार्मिक अनुष्ठान को अंजाम दें। गंगा जल ले के लौटें।
ऐसे मामले और Videos-Fotos भी सामने आए हैं जब हुड़दंगबाज़ कांवड़ियों को पुलिस के घेरे में लड़खड़ाती टांगों के साथ देखा गया। जाहिर है कि पुलिस ने उनको अपने हिसाब से काँवड़ ढोने का प्रशिक्षण दिया। सरकार और प्रशासन के इस रुख से सरकार की छवि निखरी है। उस पर धर्म विशेष के लोगों को निशाना बनाने का धब्बा नहीं लग पा रहा है। हरिद्वार और काँवड़ मार्ग के लोग तथा खास तौर पर कारोबारी-दुकानदार खुश व चैन की सांस लेते नजर आ रहे हैं। कांवड़ियों के गुस्से का वे जब-तब पहले शिकार हुआ करते रहे हैं। सरकार की सख्ती और व्यवस्था का आलम है कि काँवड़ मार्ग (National Highway) पर Traffic प्रभावित नहीं हो रहा है। CM पुष्कर जो कर रहे हैं, उसके लिए जिगर चाहिए। Operation कालनेमी और कांवड़ियों को सीमा से बाहर न जाने देना और उनको सख्ती से समझाने का गुदा सभी सरकारों में या सभी मुख्यमंत्रियों में होना बहुत मुश्किल है।
PSD ने खुद को सख्त, हिन्दू धर्म के रक्षक के साथ ही ऐसे उदारवादी प्रशासक के तौर पर भी निखारा है, जिसके लिए अवाम-अवाम है। सभी उसकी निगाहों में बराबर है। चाहे धर्म-वर्ण-वर्ग कुछ भी हो। इसमें शक नहीं कि बतौर बड़े राजनेता और कुशल-सफल प्रशासक स्थापित होने के लिए सख्ती के साथ उदारवादी या फिर सर्व धर्म समभाव की सोच का गुण रखना पहली Degree है। उनकी इस काबिलियत के साथ ही उनकी सियासी परिपक्वता गज़ब की है। चीते-Phantom के अंदाज में वह एक शहर से दूसरे शहर-राज्य तक में पल भर में पहुँच जाते हैं। मौका मिलते ही पहाड़ों में अधिक से अधिक वक्त गुजारने से नहीं हिचकते हैं।
आम लोगों से घुल मिल जाना-बुजुर्गों के चरण स्पर्श करना-बच्चों को गोद में ले के लाड़ करना और युवाओं के साथ Selfie खिंचवाना उनकी खास अदा हो गई है। इनसे उनकी USP में इजाफा हो रहा है। ये सभी मानते हैं। BJP के पूर्व CMs में ये गुण दिखाई नहीं देते थे। सादगी में बेशक त्रिवेन्द्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत भी कमाल के थे। या फिर अन्तरिम सरकार के CM रहे भगत सिंह कोश्यारी भी कमाल के सादगी पसंद थे। एक खास पहलू PSD का ये भी है कि उन्होंने नौकरशाही पर भी नियंत्रण अच्छा-खासा बना लिया है। कुछ नौकरशाहों को उनका खासमखास माना जाता है। तबादलों में उनकी राय को अहमियत दिए जाने का जिक्र होता रहता है।
कुछ हफ्ते पहले हुए दर्जनों IAS-PCS अफसरों के तबादलों में लेकिन सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री की खुद की छाप को नौकरशाही और मंत्रियों-Media ने साफ तौर पर महसूस किया। नौकरशाही सदा ही हर सरकार और उसके मुखिया CM के लिए भस्मासुर साबित होती रही है। पुष्कर ने इसको जल्द समझ लिया है। ऐसा दिखता है। ये बात दीगर है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों में अगर ND तिवारी को सर्वश्रेष्ठ नौकरशाहों की पलटन मिली तो PSD को सबसे अनुभवहीन या फिर पूर्ववर्तियों के मुक़ाबले सबसे कमजोर किस्म के IAS Officers की Team मिली। उनके पास चुनिन्दा नौकरशाह ही भरोसे लायक हैं। इनमें कुछ Direct (RR) और कुछ Indirect (PCS से IAS) शामिल हैं।
उत्तराखंड में वह दौर भी था जब मधुकर गुप्ता-डॉ रघुनंदन सिंह टोलिया-M रामचंद्रन-सुरजीत किशोर दास-इन्दु कुमार पांडे-विभा पुरी दास-नृप सिंह नपल्च्याल-विजेंद्र पाल-सुभाष कुमार-आलोक जैन-राकेश शर्मा किस्म के IAS Officers हुआ करते थे। उनकी काबिलियत और लोगों से व्यवहार और सरकार के लिए विघ्न हर्ता की भूमिका लाजवाब हुआ करती थी। PCS या फिर Indirect IAS अफसरों को याद किया जाए तो सोहनलाल (PCS थे और मिलने के बावजूद IAS नहीं लिया)-SS रावत-MC जोशी-भास्करानंद जोशी यहाँ तक कि सचिवालय सेवा के RC लोहनी भी गज़ब के थे। वित्त सेवा में भी एक से एक अफसर थे।
ये वे नौकरशाह थे, जो अपने Seniors-प्रमुख सचिवों-मुख्य सचिव और मंत्रियों-मुख्यमंत्री के सामने भी अपनी बात तर्कों के साथ धड़ल्ले से रखने में या तो सहमते-हिचकते नहीं थे या फिर बहुत होशियार थे। ये नस्ल अब डायनासोर (विलुप्तप्रायः) हो गई। आज कुछ बहुत तेज-कुछ बहुत बाबू किस्म के और कुछ बहुत सज्जन (मौजूदा बोली में ढीले) तो कुछ कामकाज से अरुचि रखने किस्म के नौकरशाह सरकार में हैं। इसका नुक्सान सरकार और अवाम को होता है। CM पुष्कर उनसे भी काम ले रहे हैं, ये भी उनकी काबिलियत है।