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मुद्दा गरम!!!भर्ती घोटालों से UKSSSC Leak-नकल:सरकार की सख्ती!! तो आने वाले साल ईमानदारी से Selection की Guarantee के! किसी एक केस पर ऐसा सख्त Action-इतना बवाल देश में पहली बार

The Corner View

Chetan Gurung

उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) के पिछले रविवार को हुए इम्तिहान में हरिद्वार के एक केंद्र में नकल का एक प्रकरण सामने आया। पुलिस और सरकार की माने तो एक अभ्यर्थी खालिद ने एक फोन एक दिन पहले ही अधबनी इमारत वाले केंद्र पर जा के छिपा दिया था। अपनी बहन साबिया को परीक्षा शुरू होने के कुछ ही देर बाद छिपाए फोन से बाथरूम जाने के बहाने प्रश्नपत्र के कुछ पन्नों को Whats App पर भेजा। बहन ने नई टिहरी की एक सहायक प्रोफेसर (महिला) सुमन को पहले से तय योजना के मुताबिक ये पन्ने Whats App से भेजे। उसने जवाब वापिस भेजे या नहीं, साफ नहीं लेकिन उसने युवाओं के अगुवा बने बॉबी पँवार तक ये प्रश्न पत्र भेज दिए। ये पुलिस-सरकार का दावा है। बवाल होना था और हो उठा। सवाल ये उठ रहा कि महिला आरोपी सहायक प्रोफेसर ने किसी साजिश के तहत आरोपी भाई-बहन को झांसे में ले के प्रश्नपत्र Leak या नकल के बवंडर को जन्म दिया या फिर उसकी अंतरात्मा जाग उठी और नकल के खेल का खुलासा कर दिया।

सच को जानने के लिए CM पुष्कर सिंह धामी ने ऐसा कदम उठाया है जिस पर 25 साल के उत्तराखंड के इतिहास में किसी सरकार ने कभी अमल नहीं किया। अव्वल तो FIR दर्ज कर आरोपी भाई-बहन और महिला शिक्षक पर कार्रवाई कर दी। फिर Special Investigation Team का गठन Additional SP Rank जया बलूनी की अगुवाई में कर दिया। SIT कैसा काम कर रही, उसकी निगरानी के लिए भी HC-नैनीताल के Retired Judge BS Verma को नियुक्त कर दिया। ये कोई अजूबा भर्ती गड़बड़ी केस नहीं है। उत्तराखंड में तमाम भर्ती घोटाले हुए हैं। राज्य बनते ही बहुचर्चित Police दारोगा और पौड़ी में पटवारी भर्ती घोटाला सामने आया था। इसके बाद होम्योपैथिक चिकित्सक भर्ती घोटाला भी उसी दौरान सामने आया। मुझे ये प्रकरण खूब याद है। संयोग है कि तीनों का खुलासा मैंने किया था।

Chetan Gurung

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पहले दारोगा,फिर पटवारी और आखिर में होम्योपैथिक चिकित्सक भर्ती घोटालों पर मैंने Series लिखी। अहम पहलू इन घोटालों का ये रहा कि फर्जी भर्ती वाले दारोगा बर्खास्त हुए। पटवारियों की नियुक्तियाँ रद्द कर दी गईं। यही हाल Setting वाले होम्योपैथिक चिकित्सकों के साथ हुआ। UKSSSC भर्ती पर पुष्कर सरकार के रुख को बहुत अलग और खास दर्जा दिया जा सकता है। इस मामले में नकल में संलिप्त तीनों शख्स को 2 दिन के भीतर दबोच लिया गया। इसके बाद SIT का गठन भी कर दिया गया। कोई कमी न रह जाए। इसके लिए Retired HC Judge को जांच की निगरानी सौंप दी। दारोगा और पटवारी भर्ती घोटाले की जांच शुरुआत में उस वक्त के गढ़वाल के Commissioner सुभाष कुमार ने अकेले की थी। तब के CM ND तिवारी ने इसके लिए किसी जांच दल का गठन नहीं किया। दबाव के बावजूद न ही मामलों को CBI या Vigilance के हवाले किया।

1977 Batch के IAS सुभाष कुमार ने वाकई बहुत मेहनत से दोनों घोटालों की जांच की थी। हम दोनों के रिश्ते बहुत अच्छे थे और विश्वास से लबरेज आपसी पहचान सालों पुरानी थी। इस लिए हम दोनों आपस में बेहद सहज थे। ताज्जुब की बात नहीं होनी चाहिए कि नए-नवेले राज्य को बुरी तरह झकझोर डालने वाले दोनों घोटालों की जांच दर जांच और Progress-निष्कर्ष रिपोर्ट सिर्फ उसी `Amar Ujala’ में निरंतर और तकरीबन कई दिनों तक रोजाना छपती रही, जिसमें मैं नौकरी किया करता था। दारोगा भर्ती घोटाले में तत्कालीन DGP प्रेमदत्त रतूड़ी की कुर्सी से विदाई हो गई थी। शासन से और खास तौर पर प्रमुख सचिव (गृह) सुरजीत किशोर दास से उनकी बहुत बनती भी नहीं थी। मामला बढ़ा तो सरकार की प्रतिष्ठा बचाने के लिए एक दिन सुरजीत अपने साथ कंचन चौधरी भट्टाचार्य को ले के मुख्यमंत्री के पास पहुँच गए। जो उनकी ही तरह 1973 Batch की थीं। उस दौर में मुख्य सचिव-कार्मिक सचिव-गृह सचिव-वित्त सचिव बहुत रुतबा और इज्जत रखा करते थे। मुख्यमंत्री उनकी बातों को बहुत वजन दिया करते थे। सचिव (मुख्यमंत्री) और CM के तब के OSDs के जलवों की कथा आज भी बाँची जाती हैं।

सुरजीत ने मुख्यमंत्री को बताया कि कंचन वरिष्ठता में दूसरे नंबर पर और बेदाग हैं। Next Police Chief की काबिलियत रखती हैं। NDT ने उनको देश की पहली महिला DGP बना दिया। देश की पहली महिला IPS किरण बेदी थीं। मैंने रतूड़ी के हटने की खबर रात 1-डेढ़ बजे फोन से दफ्तर में भेजी। एक खबर को हटाने की एवज में ये खबर मुझे उस वक्त के मुख्य सचिव डॉ रघुनंदन सिंह टोलिया ने आधी रात गुजर जाने के बाद खुद फोन कर के दी थी। वह खबर कौन सी थी, जो वह हटवाना चाहते हैं, उस पर फिलहाल जिक्र बेकार है। इतना जरूर बता सकता हूँ कि मैंने वह खबर हटवाई भी नहीं और रतूड़ी के हटाए जाने की Breaking News भी उड़ा ली। तब अपन बहुत पेशेवर जो थे। जोश-ऊर्जा भी खूब थी। बेहतरीन Record वाले IG राकेश मित्तल दारोगा भर्ती घोटाले की भेंट चढ़ के Suspend कर दिए गए थे। मामला इतना बढ़ा था कि इस घोटाले को CBI ने खुद बा खुद अपने हाथ में ले लिया था। उसने सुभाष रोड स्थित Police Headquarter के संबन्धित हर Computer और File को छान मारा था। अफसरों को अपने दिल्ली और देहरादून स्थित दफ्तर तलब करते रहे। ये जांच आज भी शायद खत्म नहीं हुई है।

Retire होने के बावजूद सुरजीत दास, जिनको मैं भाई साहब कहता था, अपने खर्चे पर देहरादून के वसंत विहार वाले निजी घर से अदालत में तारीख पर जाते थे। जो वाकई विडम्बना है। नौकरी पूरी होने के बाद पद वाला अफसर क्यों तारीख पर जाए? ये कोई निजी मुकदमा नहीं था। पटवारी भर्ती घोटाले में पौड़ी के DM SK Lamba के साथ ही CDO कुँवर राजकुमार-SDM विनोदचन्द्र सिंह रावत और एक ADM (नाम याद नहीं) के साथ कुछ और कार्मिक मुअत्तल कर दिए गए थे। सेवा में रहने तक तो लांबा चुप रहे। मुअत्तली में ही Retire होने के बाद वह बर्खास्त भी कर दिए गए। इसके बाद मुझे उन्होंने 1 करोड़ रूपये की मानहानि का नोटिस भेजा था। मैंने बदले में उनको फोन किया। उनसे जुड़े कुछ अन्य अप्रिय मामलों का जिक्र किया। साफ बोला कि अदालत में जाना ही है तो फिर मैं उनको भी सार्वजनिक करूंगा। ये मामला बाद में खामोशी से दफन हो गया। राजकुमार बाद में बहाल हो गए। बामुश्किल PCS से IAS में Selection मिल पाया। दोनों बड़े भर्ती घोटालों के जिक्र का मकसद ये है कि उस वक्त की Congress सरकार ने सिर्फ Commissioner और प्रमुख सचिव बन चुके सुभाष कुमार से ही जांच कराने की हिम्मत दिखाई। उसको डर था कि CBI-Vigilance जांच कराई गई तो कई विधायक और मंत्री के साथ खुद उनकी सरकार लपेटे में आ सकती है।

इस लिहाज से CM पुष्कर का SIT जांच कराना और पूर्व HC न्यायाधीश को इससे जोड़ना मामूली कदम नहीं है। खास तौर पर ये देखते हुए कि विपक्षी दल (Congress ही मुख्य है) के साथ ही अपनी ही पार्टी में भी चोरी-छिपे रणनीति चलने वाले कुछ अति महत्वाकांक्षी किस्म के लोगों से भी उनको दो-दो हाथ करने पड़ते हैं। BJP ही नहीं बल्कि Congress राज के दौरान भी इतने सक्रिय रहने वाले और हर किस्म के नतीजे आला कमान (PM नरेंद्र मोदी-HM अमित शाह सज्जित) को देने वाले वह अकेले और पहले CM होने की प्रतिष्ठा रखते हैं। उन्होंने BJP को हर किस्म के चुनाव जितवाए और Ground Zero पर मौजूदगी दर्ज कराने में गहरी छाप छोड़ी है। हैरानी नहीं होती कि UKSSSC Paper Leak (जो शायद नकल का मामला ज्यादा है) मामले में BJP के बड़े चेहरे और सरकार के मंत्री लगभग चुप्पी साधे हुए हैं। मानो उनको या तो इस मामले से कोई वास्ता नहीं है या फिर वे खुद इस मौके पर इंतजार कर रहे थे। इसमें दो राय नहीं कि मोदी-शाह का तगड़ा संरक्षण न होता तो अब तक PSD की कुर्सी खुल के हिलाने में वे कोई कसर न छोड़ते। पुष्कर ने मुख्यमंत्री की सक्रियता के नए मानक बनाए हैं।

UKSSSC भर्ती नकल या पेपर लीक आंदोलन किस परिणति को हासिल होगा या कब तक चलेगा, भविष्य बताएगा लेकिन इस मामले में हो रही जांच कुछ के लिए बहुत भारी पड़ सकता है, ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। रह-रह के ये सवाल तो आंदोलन के साथ समानान्तर ढंग से उठना स्वभाविक है कि आखिर सुमन की असल भूमिका क्या थी! उसने आरोपियों को धोखा दिया? आखिरी वक्त पर अन्य अभ्यर्थियों के साथ ना-इंसाफ़ी होते देख अंतरात्मा जाग उठी? या फिर वह किसी षड्यंत्रकारी रैकेट का हिस्सा थी? ये भी कि उसका विचार खेल का खुलासा करने का कब बदला और क्यों? क्या उसको इसका एहसास था कि वह जो भी कदम उठाने जा रही, उसमें वह खुद बहुत बहुत गहरे और घातक किस्म की जांच के दलदल में डूब सकती है? उसकी नौकरी-आजादी दांव पर लग सकती है। हरिद्वार और खालिद वाले केंद्र के अलावा किसी भी अन्य केंद्र से नकल की भी कोई शिकायत नहीं आई है। यही वजह है कि सरकार (CM PSD-CS आनंदबर्द्धन) बेधड़क दावा कर रहे हैं कि कोई Paper Leak नहीं हुआ। ये ज्यादा से ज्यादा उस किस्म की नकल की नाकाम कोशिश हुई, जैसी 10वीं-12वीं की Board परीक्षाओं में किसी जमाने में हुआ करती थीं। नकल विरोधी सख्त कानून के तहत अब तीनों (भाई-बहन और प्रोफेसर साहिबा) पर कार्रवाई होगी।

आंदोलनकारी युवा CBI जांच मांग रहे लेकिन विशेषज्ञों से बात करो तो वे नहीं मानते कि ये जांच CBI को सौंपी भी जाए तो वह स्वीकार करेगी। शायद ये उसकी जांच का मानक पूरा नहीं करते हैं। जो भी हो, निष्कर्ष का इंतजार सभी को है। ये भी तय है कि जितना बवाल और सरकार की बढ़ती सख्ती का आलम दिख रहा, वह इसकी तो Guarantee देता दिखता है कि आने वाले सालों में UKPSC हो या UKSSSC या फिर चिकित्सा भर्ती बोर्ड की चयन परीक्षा, एकदम साफ-सुथरे होंगे। जिसमें काबिलियत-दम होगा, वही सरकारी सेवक-हाकिम बन सकेगा। कथित भर्ती Mafia हाकम सिंह जैसों की छुट्टी हो चुकी है। अंदरखाने की खबर ये है कि हाकम तो इस बार मुफ्त में मारा गया। Paper Leak कराना उसके गुदे की बात नहीं है। उसका कोई हाकिम या हुक्मरान भी नहीं है और पैसों-पाई का मोहताज हो चुका है। इसका श्रेय जिसको देना चाहे, आप अपनी सुविधा के मुताबिक दे सकते हैं।

 

 

 

 

 

 

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